मेरी बात -” झरिया की दुर्दशा ” लेखक सह पत्रकार ( अरुण कुमार )
प्रिय पाठक गण आज जो मैंने यह फोटो आपसबों के लिए अपने न्यूज़ के माध्यम से लगाया हैँ तो इसके कई कारण हो सकते हैँ क्योंकि यह कोई जंगल में लगी हुई आग नहीं हैँ दोस्तों ये आग हैँ बी सी सी एल द्वारा संचालित आउटसोर्सिंग कंपनियों की जो की कतरास मोड़ में स्तिथ आर के माइंस की यह भयावह दृश्य को जानने व समझने एवं समझाने के लिए प्रयाप्त हैँ कि कैसे यह आग बृहद पैमाने पर फैली हुई हैँ और झरिया से सटे ईलाके को कैसे उजाड़ रही हैँ जबकि बी सी सी एल प्रबंधक कितनी भी बातें बना ले किन्तु वे आजतक इस तरह का दृश्य स्वयं देखने को आतुर नहीं हैँ वहीँ इनके द्वारा संचालित आउटसोर्सीग कंपानिया स्वयं मालिक बन बैठी हैँ तभी मैंने अपने पहले वाले लेख में लिखा था कि “बिल्ली की गले में घंटी बांधेगा कौन “जिसका जवाब आजतक नहीं मिला हैँ वहीँ बी सी सी एल को केवल कोयला से मतलब हैँ बाकी जनता कहीं जाए वहीँ आए दिन मारपीट व रंगदारी की घटना पुरे धनबाद के कोयलाँचल में हो ही जा रही हैँ किन्तु इन कंपनियों पर कोई भी पाबंदी और नकेल नहीं लगाई जा सकी हैँ और तो और ये आउटसोर्सिंग कम्पनियाँ अपनी मन मर्जी से जहाँ तहाँ के भू खंड को अपने आगोश में लेते जा रही हैँ अगर समय रहते इनको नहीं बांधा गया तो झरिया ही नहीं धनबाद कोल कैपिटल का नाम इनके सुनहरे अक्षर से विलुप्त होने से कोई नहीं रोक पाएगा और आज की राजनीती इतनी ज्यादा गन्दी हो गई हैँ कि कोई भी राजनेता कुछ भी बोलने से परहेज कर बच कर निकल जा रहे हैँ और यही गड़बड़ हो जा रही हैँ अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब यह भयावह आग और भी ख़तरनाक रूप अख्तियार कर ले फिर आगे की कोई भी गुंजाईश ना बचे अब समझना हैँ जनता को और यहाँ के जनप्रतिनिधि को कि झरिया चाहिए या धनबाद ✍️✍️

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