मेरी बात – “समय को और समय देने की हैँ जरुरत “– अरुण कुमार ( लेखक सह पत्रकार )
“समय को और समय देने की हैँ जरुरत ” – अरुण कुमार ( लेखक सह पत्रकार ) == आज का यह टॉपिक कि ” समय को और अधिक समय देने की हैँ जरुरत ” तो यह कहने की आवश्यकता आज के डेट में आन पड़ी हैँ क्योंकि इस समय के कुचक्र से कोई भी नहीं बच पाया हैँ हाँ वो बात अलग हैँ कि एक सही मनुष्य की पहचान भी आपको अपने समय के साथ करने की जरुरत हैँ अन्यथा वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब आप अपने अपेक्षा के अनुरूप उस इंसान को अपने से दूर खड़ा पाएंगे मैं मेरे हिसाब से कोई भी बात रखता हूँ और करता भी हूँ किन्तु विधि का विधान कहें या समय का दोष कुछ इंसान को मेरी बातें अबुझ एक पहेली सी लगती हैँ और मेरे हिसाब से लगनी भी चाहिए क्योंकि मेरी ज्यादातर बातें हाई लेवल की जो होती हैँ और इसको समझने के लिए आपको भी हाई लेवल के तर्ज पर सोचना और जानना होगा जबकि समय का एक चक्र उन सारी बातें को बड़े ही ध्यान पुर्वक देखता रहता हैँ और वो जानता भी हैँ कि मैंने जो बातें कही हैँ वो शास्वत सत्य होने वाला भी हैँ फिर भी कुछ लोग उस समय को और समय के तहत टाल देते हैँ इसी को आप सब समय को और समय देने की संज्ञा दे सकते हैँ अब बात आती हैँ कि कुछ मनुष्य स्वयं इतने परिपक्व होते हैँ कि उन्हें कोई भी निर्णय लेने में ज्यादा देर नहीं लगती हैँ और वे स्वयं निर्णय के हिसाब से अपनी ओर से निर्णायक भूमिका में आ जाते हैँ अपितु कुछ इंसान इतने मंदबुद्धि होते हैँ कि वे अपना स्वयं का निर्णय नहीं ले पाते हैँ इसतरह के इंसान को हमसब बिहारी लोग एक उपनाम से सम्बोधित करते हैँ उस उपनाम को मैं यहाँ नहीं लिख सकता हूँ किन्तु एक बात तो मैं वैसे लोगों को बतलाना चाहता हूँ कि महोदय अभी भी बहुत देर नहीं हुई हैँ और समय रहते हुए आप सब अपने आपको स्वयं के लिए परिपक्व बना लें अन्यथा वो दिन दूर नहीं ज़ब समय आपको समय नहीं देगा और आपसबों को पछताने के अलावे कोई दूसरा रास्ता नहीं मिलेगा, और हाँ समय का भी एक दूरगामी प्रभाव होता हैँ तभी तो समय अपनी वेग गति से चलता रहता हैँ और इंसान उस समय को दरकिनार करके उससे दो – दो हाथ करने को लेकर उत्साहित रहता हैँ सो फ्रेंड्स बी केयरफुल अभी भी अगर आपको हमारी भाषा का अभिप्राय समझ में नहीं आ रहा हो और ये एक प्रकार का भाषण जैसा लगे या एक उपदेश जैसा महशुस हो रहा हो तो आप सब जान जाए कि अभी भी आपकी सोच समय के हिसाब से सही नहीं हो पाया हैँ और अभी भी आप सब पुराने ख़्यालात में जिए जा रहे हैँ हाँ एक बात हैँ कि आप समय को थोड़ा और समय दे सकते हैँ जो की समय के लिए भी कुछ हद तक सही जैसा होगा वहीँ समय को जाते देर नहीं लगती हैँ और यही विधि का विधान भी हैँ अब समय आ गया हैँ समय को परिभाषित करके चलने का अन्यथा समय का चक्र आपसबों को कहीं का नहीं छोड़ेगा,

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