मेरी बात — “बाढ़े पुत्र पिता के धर्मे, खेती उपजे अपने कर्मे ” @ अरुण कुमार, लेखक सह पत्रकार
मेरी बात — # बाढ़े पुत्र पिता के धर्मे और खेती उपजे अपने कर्मे # — आज का यह टॉपिक लिखने से पहले मैं तमाम ऊँन माँ – बाप को समर्पित करना चाहता हूँ जिन्होंने अपनी जिंदगी के तमाम पल को अपने पुत्रों के साथ साथ अपने सभी सगे सम्बन्धियों में अर्पित कर दिया हैँ हालांकि इस टॉपिक के सन्दर्भ में अगर बात किया जाए तो टॉपिक का मुख्य उदेश्य हर एक गार्जियन को अहसास भी दिला देने के लिए काफी हैँ कि एक अभिभावक का धर्म अपने पुत्रों के प्रति किया रहता हैँ और किया रहना चाहिए व किया होना चाहिए और साथ ही साथ एक पुत्र का धर्म भी अपने गार्जियन के प्रति किया हो यह भी कुछ संक्षिप्त में जानकारी देने की एक प्रकार से कोशिश की गई हैँ क्योंकि कहने का तात्पर्य यह हैँ कि एक पिता का धर्म स्वयं में धार्मिक होकर अपने पुत्रों को अज्ञानता से दूर रखकर समाज में जोड़ देने वाला होना चाहिए और साथ ही सदैव अपने पुत्रों के हीतों को ध्यान में रखकर एक सामाजिक माहौल को केंद्र विन्दु में रखकर उच्च गुण संपन्न का ज्ञान अपने पुत्रों में अवश्य स्थापित करानी चाहिए और भी कई कार्य हैँ जो कि एक पिता के धर्म के अनुरूप उनके पुत्रों के लिए अवश्यमभावी हैँ जिसका की ज्ञान हर एक गार्जियन तुल्य अभिभावक को अवश्य होनी चाहिए जबकि कई मामलों में अक्सर यह देखा गया हैँ कि एक पिता स्वयं में अपने धार्मिक प्रवीर्ति को भूलकर अपनी जगहसाई करा लेते हैँ जो की आज के डेट में कहीं से भी सही नहीं हैँ मैं इसी बात को ध्यान में रखकर कहना चाहता हूँ कि आप एक गार्जियन हैँ और सम्भवतः आप सब काफी समझदार हैँ किन्तु अगर ज़ब बात समाज में अपनी क्षमता को आंकनी की आ जाए तो बेसक अपने मन की अंतरात्मा से अपने आपको अवश्य जानने की कोशिश करें क्योंकि समाज को उपेक्षित करके आप नहीं चल सकते हैँ,अब बारी आती हैँ एक पुत्र के धर्म और कर्म की तो स्वाभाविक हैँ कि हर एक पुत्र अपने पिता के बताये हुए सन्मार्ग पर चले और कोशिश करें कि उसके द्वारा किया गया सभी कार्य धर्म और कर्म के अनुरूप ही हो जो की आज के इस कलयुग रूपी समाज में देखने को नहीं मिल पा रहा हैँ वहीँ एक पुत्र का विकास उसके पिता के द्वारा किए गए सभी धार्मिक कार्यों पर भी निर्भर करता हैँ जो की शास्वत सत्य की ओर एक ईशारा भी करती हैँ जबकि हमसबके जीवन का एक व्यवहारिक उदेश्य भी इसी ओर इशारा भी करती हैँ और हमसबको बताने की भी एक प्रकार से पहल ही करती हैँ कि इंसान कितना भी एकाग्र हो जाए किन्तु उसका उत्थान उसके द्वारा किए गए कार्यों के अनुरूप ही उनको मान्यता प्रदान करता हैँ तो क्यों ना आज से ही इस बात को हमसभी जो की कल के गार्जियन बनने जा रहे हैँ सभी ध्यानपुर्वक अपने कार्य को अंजाम देने का काम करें जिससे की यह कहावत जो की हमारे बड़े बुजुर्ग कह गए हैँ कि # बाढ़े पुत्र पिता के धर्मे और खेती उपजे अपने कर्मे चरितार्थ हो जाए,
सबों का आभार,
अरुण कुमार
मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क ( भागवत ग्रुप कारपोरेशन )
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