welcome to the India's fastest growing news network Monday Morning news Network
.....
Join us to be part of us
यदि पेज खुलने में कोई परेशानी हो रही हो तो कृपया अपना ब्राउज़र या ऐप का कैची क्लियर करें या उसे रीसेट कर लें
1st time loading takes few seconds. minimum 20 K/s network speed rquired for smooth running
Click here for slow connection


छठ महापर्व से जुड़ी ये कथा नहीं जानते होंगे आप, जानिए कौन हैं छठी माता

प्रकृति के इस महापर्व की आस्था इतनी है कि आज यह बिहार व झारखण्ड के गाँवों से निकल कर महानगरों तक दिखाई देती है, आज घाट पर कई छठ वर्ती स्नान व पूजा की यह पर्व देश की सीमाओं से परे दुनिया के कई कोने अबऐसे हैं, जहाँ मिट्टी के चूल्हे पर कढ़ाई चढ़ी है। आम की लकड़ी जल रही है और देशी घी में ठेकुआ छन कर निकाला जा रहा है। आस्था का यह लोक रंग इतना गहरा कैसे है?

सतयुग के आखिरी में राजा प्रियंवद ने की थी छठ पूजा

प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न देवी हैं छठ की माता दीपावली बीतने के साथ ही इस वक्त बिहार में छठ महापर्व की धूम है। कभी गाँव के पोखरों-तालाबों तक ही सीमित रही आस्था की यह धारा दुनिया भर में ऐसी फैली है कि, श्रद्धा का महासागर बन गई है। कार्तिक मांस की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को जब सूर्य देव विदा ले रहे होते हैं और सप्तमी तिथि को जब उनका आगमन होता है, तो कमर तक पानी में डूबी व्रती महिलायेंं उनका अनुष्ठान करती हैं।

सीमाओं से परे छठ महापर्व

प्रकृति के इस महापर्व की आस्था इतनी है कि आज यह बिहार के गाँवों से निकल महानगरों तक दिखाई देती है। देश की सीमाओं से परे दुनिया के कई कोने अब ऐसे हैं, जहाँ मिट्टी के चूल्हे पर कढ़ाई चढ़ी है। आम की लकड़ी जल रही है और देशी घी में ठेकुआ छन कर निकाला जा रहा है।

आस्था का यह लोक रंग इतना गहरा कैसे है?

ऐसा सवाल उठता है तो जवाब किसी लोककथा का हवाला थमा देते हैं। अब तक छठ को लेकर कई तरह की कथाएं सामने आई होंगी, लेकिन एक अनोखी कथा ऐसी है, जिससे लोक भी अब धीरे-धीरे अंजान हो रहा है।

सतयुग की एक कथा

पुराणों के अनुसार एक थे राजा प्रियंवद। कहते हैं कि राजा को कोई संतान नहीं थी। ये बात सतयुग के आखिरी चरण की बताई जाती है। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया और राजा प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। रानी ने खीर खाई और इसके प्रभाव से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति तो हुई लेकिन वह बच्चा मृत पैदा हुआ।

राजा को हुई पुत्र प्राप्ति

प्रियंवद अपने मृत पुत्र के शरीर को लेकर श्मशान गया और पुत्र वियोग में अपने भी प्राण त्यागने लगा। तभी भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और उन्होंने प्रियंवद से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। है राजन तुम मेरा पूजन करो और दूसरों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से सच्चे मन से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। कहा जाता है, कि तब से लोग संतान प्राप्ति के लिए छठ पूजा का व्रत करते हैं। कालांतर में यही देवी देवसेना, षष्ठी देवी या फिर छठी माता कहलाई. जिनकी आज पूजा की जाती है, यह छठ महापर्व साफ सफाई का मूल प्रतीक हैं ऐसा भी आप कह सकते हैं इसकी महिमा अपरम्पार हैं, जो कोई भक्त सुद्ध भाव के मन से माँ के इस पर्व को करते हैं छठ माँ उनसबों की मनोकामना अवश्य पूरी करती हैं। इस लोकपर्व के अद्भुत व अविश्वणीय संयोग हैं कि माँ कि महिमा पर भक्तों का पूर्ण विश्वास होता हैं तभी छठ माँ कि महिमा आज देश से निकलकर विदेश में भी भी अपनी अलौकिक छठा विखेर रही हैं जय छठ माँ।

Last updated: नवम्बर 7th, 2021 by Arun Kumar
Arun Kumar
Bureau Chief, Jharia (Dhanbad, Jharkhand)
अपने आस-पास की ताजा खबर हमें देने के लिए यहाँ क्लिक करें

पाठक गणना पद्धति को अब और भी उन्नत और सुरक्षित बना दिया गया है ।

हर रोज ताजा खबरें तुरंत पढ़ने के लिए हमारे ऐंड्रोइड ऐप्प डाउनलोड कर लें
आपके मोबाइल में किसी ऐप के माध्यम से जावास्क्रिप्ट को निष्क्रिय कर दिया गया है। बिना जावास्क्रिप्ट के यह पेज ठीक से नहीं खुल सकता है ।
  • पश्चिम बंगाल की महत्वपूर्ण खबरें



    Quick View


    Quick View


    Quick View


    Quick View


    Quick View


    Quick View
  • ट्रेंडिंग खबरें
    ✉ mail us(mobile number compulsory) : [email protected]
    
    Join us to be part of India's Fastest Growing News Network