विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य पर आदिवासी एभेंन अखाड़ा मधुपुर के तत्वावधान में एकदिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन
मधुपुर । विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य पर आदिवासी एभेंन अखाड़ा मधुपुर के तत्वावधान में एकदिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन बुलाहट संस्था परिसर पसिया में किया गया। कार्यक्रम में कोविड-19 के मद्देनजर कार्यक्रम स्थल को सैनिटाइज किया गया था। प्रवेश द्वार पर स्कैनिंग मशीन से सबों को जाँच करवाकर व मास्क पहनाकर अंदर जाने की अनुमति थी। कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि भारत प्राचीन आदिवासी कोल जाति कल्याण समिति के केंद्रीय अध्यक्ष उमानाथ कोल द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया।
साथ ही सिद्धो-कान्हू, पंडित रघुनाथ मुर्मू, बिरसा मुंडा के प्रतिमा पर मुख्य अतिथि के साथ मंचासीन सभी अतिथियों ने सामूहिक रूप से माल्यार्पण किया। मंच पर पूर्व शिक्षक जीवन मुर्मू, बाबूलाल कोल, पूर्व शिक्षिका पद्मिनी मुर्मू, एभेन अखाड़ा के अध्यक्ष भुवनेश्वर कोल, सचिव ओदिन हांसदा, कोषाध्यक्ष बहामुनी हेम्ब्रम, प्रभुजोन हांसदा, प्रभु कोल, सीताराम मुर्मू आदि मौजूद थे। कार्यक्रम में आए अतिथियों का स्वागत आदिवासी अखाड़ा टीम द्वारा गीत के माध्यम से किया गया। कार्यक्रम का विषय प्रवेश प्रशांति मुर्मू के द्वारा किया गया ।
उन्होंने कहा कि आदिवासी और प्रकृति एक -दूसरे के पूरक है । आदिवासियों के तमाम रीति-रिवाज प्रकृति के अनुरूप चलते हैं। इसी सोंच के तहत संयुक्त राष्ट्र संघ में तमाम शोधकर्ताओं ने यह पाया कि प्रकृति को बचाना है तो सबसे पहले आदिवासियों को बचाना होगा। इस निर्णय के आधार पर ही विश्व के आदिवासियों के संरक्षण, संवर्धन एवं अपनी संस्कृति को जीवित रखने के लिए विश्व के आदिवासियों के लिए 9 अगस्त का दिन निर्धारित किया गया। मुख्य अतिथि उमानाथ ने कहा कि आज भी आदिवासियों के लिए विशेष कानून बनने के बावजूद आदिवासी शोषित और हाशिए पर है।
तमाम आदिवासी समुदाय से अपील किया कि अपनी संस्कृति को हरसंभव बचाना है। उपस्थित सभी आदिवासियों ने संकल्प लिया कि हमारे मधुपुर में भी वीर शहीद महापुरुषों का प्रतिमा स्थापित किया जाए। सरकार से हमारी मांगे हैं कि विश्व आदिवासी दिवस के दिन राष्ट्रीय छुट्टी घोषित करें। कोविड-19 के कारण कई अन्य कार्यक्रम नहीं हुए । लेकिन गीतों के द्वारा लोगों ने कम संख्या में बंद कमरे में कार्यक्रम को मनाया।
इस कार्यक्रम को सफल बनाने में बाल किशोर, जुगल किशोर ,प्रभु जोन, बहामुनी, ओदीन ,वेरना दत्त तिर्की ,दिनेश्वर, सुरेश मांझी अरुण कोल, बाबूलाल, मुनेश्वर तथा एवं अखाड़ा के तमाम सदस्यों की सराहनीय भूमिका रही।
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