मेरी बात,,,, नववर्ष की नई यादें,,,,अवधेश कुमार
मेरी बात,,,, नववर्ष की नई यादें कि जा रहे हो दिसंबर तो चले जाओ किन्तु ये वादा रहा तुमसे कि अगली बार जब मिलोगे तो उन हालातों से लड़ते हुए थोड़े और भी मजबूत हो पाएंगे जिनसे इस बार हम सब लड़ नहीं पाए थे। वह सारी ख्वाहिशें जो अधूरी रह गई इस साल वो अगले साल तक अवश्य पूरी कर लेंगे। दिसंबर तुम अगली बार आओगे ना तो बहुत सी यादें और खुशनुमा लम्हों को साथ में बिताएंगे.
एक और साल गुज़र गया।
वक़्त कहाँ लगता है वक़्त बीतने में! वक़्त और जवानी रेत की तरह फिसल जाती है जब एकांत के पल में बैठकर आज सोच रहा हूँ कि इस साल मैंने क्या पाया और क्या खोया, तो मन व्याकुल हो जाता हैँ कि बहुतों का प्यार पाया, वहीं कुछ लोगों को शायद नाराज़ भी किया। कुछ नए इक्वेशन जुड़ते गए और वहीँ कुछ पुराने रिश्तों पर धूल की परत जमा होती गई। पल पल में किसी को हँसा दिया तो वहीं किसी को शायद रुला भी दिया। कभी छुपकर किसी के लिए कोने में आसूँ के दो कतरे बहा लिए, तो कहीं किसी को गले लगाकर उसके संग मेरे आंसू बहा भी लिए । प्यार, दोस्ती, राजनिती, सेल्फी और ना जाने क्या क्या इमोशन की नदियाँ बहती रही। कोई अपना छूटा हुआ फिर जुड़ गया तो कोई जुड़ा हुआ न जाने कहाँ छूट गया।जो बहरहाल मेरे साथ रहा वह थी मेरे अंतरआत्मा की अवाजे,जब कुछ गलत किया तो खुद को डांट लिया और जब जो सही लगा उसे डंके की चोट पर किया। बहुत लोगों और चीज़ों को लेकर नज़रियां बदला। बीते साल में शायाद काफी हद तक जीने का अंदाज़ व सलीका बदला। लेकिन जो बहरहाल रहा वह था मेरे अपनों के लिए मेरा प्यार! शायद बयां करने का तरीका बदल गया, खुद को एक बेबाक, अल्हड़, बेपरवाह इमेज में तब्दील होने का मेरा उद्देश्य और उसमें महारथ भी शायद मुझे हासिल हो गया।
जो समय बीत गया उसका न गिला है न शिकवा। जो समय आनेवाला है न उसका कोई पछस्ताप ना कोई प्लान। बचपन से ही नए साल का कोई रिज़ोल्यूशन बनाने का आदी नहीं रहा, क्योंकि फ्यूचर प्लानिंग मुझसे कभी हुआ ही नहीं.जैसे जैसा वक़्त आता गया वैसे वैसे उसे उसी अंदाज़ में जीता गया। नए साल की खुशी मनाऊँ या साल के आखरी दिन का गम यह मैं नहीं जानता। क्या कसमे खाऊँ क्या वादे निभाऊ यह भी मैं नहीं जानता। किसी को मनाऊँ या अब सिर्फ खुद की सुनू यह भी मैं नहीं जानता।हाँ मैं तो इतना ही जानता हूँ कि जो है वह आज है और मैं हर आज को बीते साल के आखरी दिन और आनेवाले साल के नए दिन की तरह जी लेना चाहता हूँ और उस पल को याद कर लेना चाहता हूँ जब इस नए साल को स्वयं के द्वारा परिभाषित कर सकूँ जीने की याद कहूँ या मरने का सुकून सच तो ये हैं कि यह पल भर का जीवन हर पल नया हैँ इसे सुकून से जी लें,,
अवधेश कुमार की प्रस्तुति,,,
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