मेरी बात — “अपना घर “लेखक सह पत्रकार अरुण कुमार,
मेरी बात – “अपना घर”,लेखक सह पत्रकार अरुण कुमार – आज का यह टॉपिक कई मायनों में खास हो जाती हैँ और हो भी क्यों ना जब बात आ जाती हैँ “अपना घर” की तो एक खास तरह की अनुभूति मन के अंदर गुदगुदाने भी लगती हैँ किन्तु आज की तारीख में यह एक बहुत बड़ी विडंबना आन पड़ी हैँ कि कुछ लोग इस वाले अपना घर को भूल जाने को लेकर आतुर हुए पड़े है क्योंकि एक घर को बनाने में उस घर के मालिक पर किया बीती होती हैँ यह तो उस घर को बनाने वाला ही बता सकता हैँ और जब आज वहीँ घर एक खंडर में ज़ब तब्दील हो रहा होता हैँ तो उस घर के बनाने वाले पर किया बीतेगी यह किसी को किधर पता होता हैँ जबकि आज गाँव के लोग शहर की ओर रुख कर रहे हैँ वे सब बीघे और कट्ठे को छोड़ शहर में घर बनाने के लिए गज में जमीन खरीद रहे हैँ जबकि उनके पास कई विघो में उनका स्वयं का खेत मौजूद हैँ तथापि वे इसको भूलकर गाँव को छोड़कर शहर की ओर अपना झुकाव अवतरित कर रहे हैँ उन्हें तो अब वो अपना घर लगता ही नहीं हैँ जबकि सच्चाई यह हैँ कि ज़ब तक आप जिस घर में रह रहे होते हैँ अगर उसे अपना नहीं समझेंगे तो कहीं से भी बरक्क्त नहीं होने वाली हैँ सबसे पहले घर को कोशना बंद कर दें अन्यथा आज जो अपना घर दिख रहा हैँ वो पता नहीं कब दूसरों का हो जाए ये भी कहना गलत नहीं होगा क्योंकि मेरे हिसाब से अभी आप जिस घर में रह रहे हैँ जबतक आप उसे अपना घर नहीं समझेंगे तब तक वो आपका अपना नहीं हो सकता हैँ और आपका विकास भी उसी घर से शुरू होकर उसी घर पर ख़तम भी होता हैँ ये भी एक कड़वी सच्चाई ही हैँ किन्तु कुछ लोग अहम और वहम के चक्कर में पड़कर अपने बसे बसाये खुशहाल घर परिवार को टूट के कगार पर ले जा रहे हैँ जबकि सच्चाई यह हैँ कि आप जिस घर में रहते हैँ उसी घर को “अपना घर ” समझें जिससे की वो घर भी आपको अपना पूरा 100% दे पाए क्योंकि उसी ” अपना घर “में आपके बच्चों की यादें, शादी विवाह और ना जाने कितनी यादें उस घर से आपके साथ जीवनभर जुड़ी रहती हैँ और एक कहावत अक्सर बोली जाती हैँ कि अपना घर का छूटा व्यक्ति को कहीं और आसरा नहीं मिल पाता हैँ जो की एक कड़वी सच्चाई भी हैँ,तो फ्रेंड्स घर अगर होगा अपना तो सपने होंगे अपने और सपने होंगे अपने तो आशा भी होगा और उम्मीद भी रहेगा और खट्टी मीठी यादें भी रहेंगी और वास्तविकता यह भी हैँ कि घर की कीमत घर को बनाने वाले ही समझ सकते हैँ ना की उसको ध्वस्त करने वाले को मालूम होता हैँ कि उन्होंने किया खोया और किया पाया,क्योंकि “अपना घर “तो अपना ही होता हैँ,
अरुण कुमार, मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क, ( भागवत ग्रुप कारपोरेशन )
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