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कोरोना के बढ़ते प्रकोप एवं लॉकडाउन के कारण रोजी-रोटी की तलाश में भटक रहे किन्नर

कतरास। किन्नर शब्द मानो समाज के लिए एक मजाक का पर्याय बनकर रह गया है। इस समाज के बारे में अभिजात वर्ग और न ही हमारी सरकारें चिंतित हैं। नतीजतन महामारी के इस दौर में इनके समक्ष भी रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं। ग्राहकों की तलाश में किन्नरों को इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। मालूम चला कि लेटायल धौड़ा सिक्स ए बस्ती में रजनी नाम की एक किन्नर रहती है। वह अभी पाँच महीना पूर्व काफी बीमार थी। लीवर में इंफेंक्शन हो गया था।

ग्रुप के सदस्यों ने यूपी के एक अस्पताल में उसका इलाज करवाया। अब वह ठीक है। मैं जब उसके आवास पर पहुँचा तो उदास दिखीं। उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि पहले बीमारी अब भूख से मरने की नौबत आ गई है। लॉकडाउन और कोरोना ने उनके पेट में आग लगा रखा है। जब से कोरोना महामारी का दौर चला है उनके पास काम नहीं है। बड़ी मुश्किल से सौ-डेढ़ सौ कमा पाती हैं। कई दिन उन्हें बैरंग ही घर लौटना पड़ता है। जब मैंने कहा बच्चे तो पैदा हो ही रहे हैं तो काम क्यों नहीं है। इसपर उसने कहा कि पहले की तरह वे अब किसी के घर में बेधड़क नहीं घुस पाती हैं। जिसके घर जाती भी हैं तो वह इतना पैसा नहीं मिल पाता, जिससे उसका गुजारा चल सके। जो मिलता है उसमें से पच्चीस प्रतिशत हिस्सा गुरु अर्थात सरदार का हो जाता है। शेष रुपये को बाकी सदस्यों में बाँटा जाता है।

रजनी ने बताया कि उसके गुरु का नाम राधा है। वह कुसुंडा में रहती हैं। उनकी टीम में कारी, रीना, मालती, गुलाबी आदि अन्य सदस्य हैं। उनका क्षेत्र कतरास पड़ता है। वे सभी सुबह कतरासगढ़ रेलवे स्टेशन पहुँच जाते हैं। स्टेशन में बैठकर ग्राहक का इंतजार करते हैं। बातों बातों में रजनी गुरु राधा और एक अन्य सदस्य रीना को फोन लगा दिया। राधा और रीना ने भी फोन पर ही अपनी आप बीती सुनाये।

इधर रजनी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि माँ और पिताजी अब इस दुनिया में नहीं हैं। तीन बहन की शादी हो गयी। वह अकेले इस घर में रहती है। घर उसने अपनी कमाई से ही बनाया है। मेरी बीमारी की सूचना पाकर मेरी भगनी और उसके बच्चे मुझे देखने आए हुए हैं। रिस्तेदार बीच-बीच में आते रहते हैं। सभी के सेवा सत्कार करता हूँ। पूछे जाने पर बताया कि अभी हाल ही में राशन कार्ड बना है। राशन अभी नहीं मिला है। सरकार के तरफ से किसी प्रकार की अन्य कोई सुविधा नहीं मिली है। अपने दम पर कमाता और खाता हूँ। लेकिन महामारी ने उनके आगे रोजी-रोटी की संकट खड़ी कर दी है।

Last updated: मई 11th, 2021 by Arun Kumar
Arun Kumar
Bureau Chief, Jharia (Dhanbad, Jharkhand)
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