दुर्गामंदिर की दुर्गा पूजा 112 वर्ष पुरानी
लोयाबाद दुर्गामंदिर की दुर्गा पूजा करीब 112 वर्ष पुरानी है। इस वर्ष पूजा को लेकर करीब सारी तैयारियाँ पूरी कर ली गई है। वैसे तो लोयाबाद क्षेत्र में कई जगह दुर्गोत्सव मनाया जाता है। क्षेत्र के कनकनी, सेन्द्रा व बांसजोड़ा में दुर्गोत्सव होती है।परन्तु लोयाबाद दुर्गामंदिर का पूजा सबसे पुरानी मानी जाती है। यहाँ होने वाली पूजा एक अलग स्थान रखती है। आज के इस आधुनिकता के दौर में भी यहाँ परम्परागत पूजा के लिए विख्यात है। यहाँ एक ही पाटा पर स्थापित माँ विराजमान होती है। बंग्ला पद्धति से होने वाली इस पूजा में संधि पूजा का बड़ा महत्त्व है। पूजा के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पाती है। चुंकि वैष्णवी मंदिर होने के कारण इस पूजा में शर्करा की बलि दी जाती है पूजा में यहाँ भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता था। परन्तु दो वर्ष से कोविड महामारी के कारण इस वर्ष भी मेला व दुकान नहीं लगाया जाएगा।जिससे क्षेत्र के बच्चों में काफी मायूसी है।
बर्ड कंपनी के समय बना मंदिर
पूजा कमिटी के पूर्व संरक्षक वयोवृद्ध हो चुके,80 वर्षीय राधा रमन पांडेय व पूजा कमिटी के सचिव बिजेंद्र पासवान सहित अन्य जानकारो की माने तो यहाँ के लोग करीब 112वर्ष पहले पूजा उत्सव मनाने झरिया जाया करते थे। उस समय ऐसी व्यवस्था थी कि मजदूरों के साथ उस समय के बर्ड कम्पनी में सीएमई रहे मंडल साहब माँ दुर्गे के दर्शन करने झरिया जाते थे। मेले में एक बार वहाँ के लोगों के द्वारा कुछ अभद्र व्यवहार किया गया। इससे मंडल साहब नाराज हो गये। उन्होंने कोलियरी कार्यालय में मजदूरों की बैठक बुलाकर दुर्गामंदिर की स्थापना करने का निर्णय लिया। तब लोयाबाद के उक्त जगह पर टीन के शेड डालकर मंदिर का निर्माण किया गया। जो आज एक भव्य मंदिर के रूप में परिवर्तित हो चुका है।
बंग्ला पद्धति से होती है पूजा
जानकारो की माने तो आज का धनबाद वर्षों पूर्व बंगाल के अधीन था और बंगाल में शुरू से ही दुर्गोत्सव धुमधाम से मनाने की परंपरा रहा है। तब के धनबाद में यहाँ बंगाली समुदाय के अधिक लोग रहा करते थे। इसलिए मंदिर स्थापना के बाद से ही बंग्ला पद्धति से पूजा अर्चना की शुरूआत हुई। जो आज तक यह परम्परा जारी है। उस समय सभी समुदाय के मद्देनजर बिरहा, कव्वाली, बंग्ला यात्रा सहित अन्य रंगारंग कार्यक्रम हुआ करता था।
ढाक की थाप पर होती है आरती
ढाक की थाप पर यहाँ की महाआरती देखते बनता है। यहाँ होने वाली आरती का बड़ा महत्त्व है। पुजारी अमोल कृष्ण भट्टाचार्य के अनुसार कई तरह से माँ की आरती उतारी जाती है। इसमें शंख, पुष्प माला, बेलपत्र, कपूर, धुना,वस्त्र,आदि चीजे शामिल है। पूजा के दौरान सप्तमी, अष्टमी व नवमी को करीब दो घंटे तक रोज संध्या में ढाक की धुन पर होने वाली आरती में भक्त थिरकने लगते है। महिलायेंं और युवती भी इसका हिस्सा बनती है। कहा जाता है कि ऐसा आरती जिले के केवल हीरापुर मंदिर में किये जाने की परंपरा है। महाआरती के दौरान भक्तों की काफी भीड़ होती है। दूर दराज से यहाँ लोग आरती में भाग लेने आते है।
मां करती है मनोकामना पुरी
45 वर्षों से लगातार पूजा सम्पन्न कराने वाले पुजारी अमोल कृष्ण भट्टाचार्य बताते है।यहाँ देवी की स्थान में काफी शक्ति है। बहुतो कि मन्नते पूरी हुई है। भक्तों द्वारा माँ के श्रृंगार के चढ़ावा पर पता चलता है कि माँ से किस किस को आशीर्वाद मिला है। पुजारी ने बताया कि भक्तों की मनोकामना पुरी होने पर यहाँ सोना,चांदी के आभुषण सहित अन्य चढ़ावा चढ़ाते है।
नवरात्र की पहले दिन से दीप जलाने की परंपरा
शारदीय नवरात्र के पहले दिन से ही संध्या के समय लोयाबाद दुर्गामंदिर में दीप जलाने के लिए महिलाओं व युवतियो की भीड़ उमड़ पड़ती है। वर्षों से जारी इस परंपरा को पालन करते हुए श्रद्धालुओं द्वारा माँ दुर्गा से अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना की जाती है। हालांकि इस समय कोविड को देखते हुए सरकारी गाइड लाइन का पालन करते भी देखा जा रहा है। विधि व्यवस्था के लिए कमिटी के सदस्य के अलावा लोयाबाद पुलिस भी सक्रिय रहती है।
सुत्रधर परिवार तीन पीढ़ीयो से बना रहे माँ की मूर्ति
एक खास बात यह भी है कि यहाँ की माँ दुर्गा की मूर्ति एक ही परिवार के लोग बना रहे है। वर्तमान में मुर्ति बना रहे 52 वर्षीय छोटा अंबोना निवासी कल्लू सुत्रधर ने बताया कि सबसे पहले मेरे दादा स्व तीनकौड़ी सुत्रधर पिता स्व मदन सुत्रधर फिर बड़े भाई स्व सुनिल के बाद मैं इस काम में काम में लगा हुआ हूँ मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार की यह तीसरी पीढ़ी है।यह हमलोग का खानदानी पेशा है।
साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल है यहाँ की पूजा
यहाँ के पूजा को साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल दी जाती है। उत्सव के दौरान सभी धर्मों के लोग आयोजन में भागीदारी निभाते हैं। पूजा कमिटी में मुस्लिम समूदाय के लोग भी सदस्य है। पूजा सफल बनाने में क्षेत्र के विभिन्न समासेवी संस्थाओं के अलावे मुस्लिम कमिटी का भी सहयोग रहता है।क्षेत्र के प्रबुद्ध लोग पूजा की निगरानी में लगे रहते है।
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