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खेल में भाग लेना केवल प्रतिस्पर्धा में भाग लेना नहीं बल्कि, अपने देश की क्षमता को विश्व को बताना होता है-भागवत

धनबाद में चल रहे क्रीड़ा भारती के तृतीय राष्ट्रीय अधिवेशन में आज समापन के दिन आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत के साथ-साथ राज्य के मुखिया रघुवर दास ने भी मंच को साझा किया । इस दौरान सर संघ संचालक मोहन भागवत ने क्रीड़ा भारती एवं खेल के ऊपर अपना विचार रखते हुए कहा कि जैसे व्यापार के जगत को दुनिया मानती है, सैनिक बल को दुनिया मानती है, वैसे खेल जगत और खेल के बल को भी दुनिया मानती है।

अपने देश के खेल जगत को दुनिया के सिरमौर खेल जगत बनाना ही क्रीड़ा भारती का लक्ष्य है

खेल जगत में सिर्फ स्पर्धा जीतकर ही नहीं आगे आया है, इसमें दुनिया की विकृति अभी समाने आई है, क्योंकि खेल व्यापार बन गया है, खिलाड़ियों की नीलामी होने लगी है । उन्होंने कहा कि दुनिया के सारे हीरा मोती एकत्र करने के बाद भी मनुष्य की तुलना नहीं हो सकती ऐसा मनुष्य खेल में तैयार होता है। भागवत ने कहा कि स्पर्धा में जीतने के लिए ड्रग्स का उपयोग करते हैं, मैच फिक्सिंग का भी खेल होता है, भारत का खेल जगत इन विकृतियों से शुद्ध इन विकृतियों से मुक्त अत्यंत अनुकरणीय खेल जगत होगा ,और दुनिया का सिरमौर होगा, यह क्रीड़ा भारती सोचती है। लेकिन क्रीड़ा भारती सिर्फ इतना ही नहीं सोचती है, यह अगर होना है तो सरकार को अपनी नीतियों में भी सुधार करनी होगी, सुझाव देने होंगे सरकार को भी कुछ सहायता करनी होगी,

खेल सिर्फ स्पर्धा जीतने के लिए नहीं है

मूल में खेल मनुष्य की शक्तियाँ और उसे शील बनाने के लिए है। इसलिए गाँव-गाँव तक खेल पहुँचने चाहिए भारत में अनेक प्रांतीय खेल है, जो काफी प्रचलित है और खेल के क्षमताओं के दृष्टि से उसके कौशल को तैयार करने वाली यह सारी खेलें हैं, और जीवन में मनुष्य को जूनुन को शक्ति देने वाली है सारी खेल है। अच्छा खिलाड़ी कभी भी जीवन से हार कर आत्महत्या नहीं करता है क्योंकि खिलाड़ी कभी हारता नहीं है वह हार से भी संघर्ष करना सीखता है और जीवन की चुनौतियों को पार कर उसे जीत कर उसके सर पर पैर रखकर खड़ा हो जाता है खेल मनुष्य को क्षमता शक्ति एवं शील देता है। भागवत ने कहा कि हम स्वतंत्र देश हैं दुनिया की हम सारी खेल खेलेंगे लेकिन हमारे देश का भी जो खेल है उसे भी बढ़ाएंगे उसका भी गौरव हमें है, दुनिया के समाने ले जाकर पूरे दुनिया में गौरव को प्राप्त करना भी हमारी क्षमता एवं दक्षता को दिखाता है। यह स्वतंत्र देश के स्वाभिमानी मन की बात है।

खिलाड़ी कभी भी जीवन से हार कर आत्महत्या नहीं करता है क्योंकि खिलाड़ी कभी हारता नहीं

उन्होंने कहा कि हमारे देश का हर व्यक्ति क्षमता से और मनोवृति से खिलाड़ी होगा। उन्होंने कहा कि खेल में या भावना होता है कि सबका साथ लेकर सब का ख्याल रखकर सब के साथ खेलना सिर्फ अकेले के लिए खेलना नहीं सिर्फ अकेले के लिए करना नहीं, यह भी हमें खेल सिखाता है। खेल जैसी एकता की भावना कहीं नहीं होती है इसलिए हमारे देश को एक सूत्र में बांधना और एकता को दर्शाना खेल के जरिए ही सिखाया जा सकता है इसलिए खेल एकता के लिए अनुकरणीय एवं आदरणीय है। भागवत ने कहा कि खेल एक ऐसी मनोवृति देता है कि हम चुनौतियों को स्वीकार करते हैं चुनौतियों से हम भागते नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जीवन में हार जीत तो लगी रहती है लेकिन खिलाड़ी कभी भी निराश नहीं होता है। हार और जीत तो खेल में होती है लेकिन जीत भी एक तरह का दुःख देने वाला बन जाता है तब जब आदमी जीतकर उसने बह जाए तो अवनति का कारण बन जाता है, उसे भी सहन करने की ताकत खेल से मिलती है उन्होंने कहा कि यह सारे गुण हमारे भारत वासियों में होनी चाहिए, इसलिए क्रीड़ा भारती खेल का न्यूनतम ग्रामीण्य संपूर्ण समाज में प्रकट हो ऐसा भी प्रयास करें। यह क्रीड़ा भारती का मुख्य कार्य हो और इसीलिए क्रीड़ा भारती बनाया गया है।

कल्याण के काम में हम जितना अपना हाथ लगाएंगे इससे हमारा अपना भी कल्याण होगा- भागवत

उन्होंने कहा कि हमारे समाज के प्रत्येक व्यक्ति का शरीर प्रत्येक व्यक्ति का मन और हमारे समाज के प्रत्येक व्यक्ति का बुद्धि सधी होनी चाहिए। भागवत ने कहा कि स्वयं के जीवन में देश के जीवन में और कल चल करके दुनिया के जीवन में वह सारी चुनौतियाँ उपस्थित हैं उनका धीरे से उपाय खोज कर उनका मुकाबला कर सर्वत्र आनंद और शांति लाने वाला भारत खड़ा करने के लिए भारत का समाज विशेषकर नई पीढ़ी का वर्ग युवा वर्ग खिलाड़ियों का वर्ग होना चाहिए ऐसा सोचकर क्रीड़ा भारती को आगे बढ़ना चाहिए काम करना चाहिए।

खेल की प्रवृत्ति में आप जितना ज्यादा आगे जा सकते हैं जाइए

उन्होंने सभी भारतीय से अपील की कि यह हम सबके जीवन को अच्छा करने का काम है ऐसा सोचकर खेल की प्रवृत्ति में आप जितना ज्यादा आगे जा सकते हैं जाइए और जिस तरह भी हो आगे आई और क्रीड़ा भारती की मदद कीजिए। भागवत ने कहा कि वह क्रीड़ा भारती को जन्म के दिनों से कम और अधिक दूरी से देखते हुए आए हैं बहुत परिश्रम पूर्वक एक अखिल भारतीय स्वरूप उन्होंने खड़ा किया है इसलिए वह अपने 2 दिन निकाल कर इस राष्ट्रीय अधिवेशन में धनबाद आए हैं। इसलिए वे आए हैं कि किसी एक का हित का काम नहीं है यह सब का हित का काम है सबके कल्याण का काम है इसलिए इस कल्याण के काम में हम जितना अपना हाथ लगाएंगे इससे हमारा अपना भी कल्याण होगा और इस देश का भी कल्याण होगा और साथ-साथ उसके बाद हम विश्व का भी कल्याण कर सकेंगे। भारत देश दुनिया के कल्याण का निर्माण करता है।

वीडियो देखें

Last updated: दिसम्बर 30th, 2018 by Pappu Ahmad

Pappu Ahmad
Correspondent, Dhanbad
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