सर स्कुल से सभी सामग्री ले ली, शिक्षा कहाँ से लेनी है
आसनसोल -मार्च महीने के शुरूआत होते ही शिक्षा माफियाओं का खेल शुरू हो जाता है, फिर विभिन्न प्रकार के डोनेशन के नाम पर अभिभावकों से मोटी रकम ऐठने के आलावा किताब, कॉपी, स्कूल यूनिफार्म के कमीशन वसूलने का शिलशिला जारी रहता है. इसमें क्या छोटा और क्या बड़ा सभी निजी स्कूलों की भागीदारी लगभग एक सी रहती है और सोने पे सुहागा यह कि इनमे से कुछ एक ही सीबीएससी की मार्गदर्शिका का पालन करते है और पंजीकृत है, बाकीयो का तो इससे कोई लेना- देना भी नहीं है, कईयों ने तो आज तक सीबीएससी की गाईड लाइन भी नहीं पढ़ी होगी और कईयों का अस्थाई पंजीकरण की तिथि भी समाप्त हो चुकी है. फिर भी इनके आन- बान और शान में कोई कमी नहीं दिखती. उसपर से इनकी ख्याति इतनी है कि अब तो शोशल मिडिया में तरह- तरह के कार्टून व जोक बनाकर निजी स्कूलों की कसीदे पढ़े जा रहे है. फिर भी इन्हें कहाँ की हया, इन्हें तो सिर्फ रकम से मतलब है. अब देश का भविष्य रहे या बचे, इन्हें कोई मलाल नहीं. इनके बच्चे तो महंगी, नामी और ब्रांडेड स्कूलों में जो पढ़ते है, उनका भविष्य तो सेटल है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005 में तत्कालीन संप्रंग (एनडीए) की केंद्र सरकार ने राईंट टू एजुकेशन (शिक्षा का अधिकार) बिल लागू किया था. जिसके तहत देश के हर बच्चे को शिक्षा ग्रहण करवाना सरकार, सरकारी अधिकारी और स्कूलों के जिम्मे है. लेकिन सरकार की ढुलमुल रवैये के कारण इतनी उत्तम योजना खटाई में चली गई है.
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