मेरी बात,,,, औरत एक पहेली,,,, अरुण कुमार लेखक सह पत्रकार
औरत एक पहेली,,,,, आज का यह टॉपिक कि वाकई औरत एक पहेली ही हैँ तो यह कहना सत्य सा प्रतीत हो रहा हैँ या ये कहे की सत्य ही हैँ क्योंकि एक महिला के बारे मे अक्सर यह बातें आती हैँ कि ना वो हालात समझ पाती हैँ, और ना ही जज्बात समझ पाती हैँ, यह तो उन औरतों से पूछे जो की अपनी समझ से जिंदगी की पूरी किताब समझ जाती हैँ कहने और सुनने में तो थोड़ा अटपटा और चटपटा लग रहा है किन्तु आज के तारीख में यही सत्य हैँ कि एक औरत के मन का ख्याल स्वयं को परिभाषित करने में चला जाता हैँ अगर बचता हैँ तो सिर्फ और सिर्फ उसका अल्हड़पन या बड़बोलापन किया कारण हैँ फ्रेंड्स की आज की औरतें अपने आप में ही ज्यादा ख़ुशी की तलाश में रह रही हैँ वो जीवन जो हमसबके दादियों या नानियों या हमारी माँ ने निभाया उसका एक प्रतिशत भी आज की औरतें नहीं कर पा रही हैँ इसलिए आज की औरतें एक पहेली से कम भी नहीं हैँ अहम् और वहम उनके दिमाग़ में घर कर गया हैँ आज की औरतें नाटक, कहानी और फ़ोन वों फ्रेंड में इतना वयस्त हो गई हैँ कि उनका जीवन भी वयस्तम में ही बीत रहा हैँ आज की महिलाएं स्वयं को परिभाषित करने की काफी कोशिश कर रही होती हैँ किन्तु हो नहीं पा रहा हैँ किया कारण हैँ कि वो अपने जीवन में सहज़ नहीं दिख पा रही हैँ तो इसका मुख्य कारण उन महिलाओ के मन में अहम् और वहम का होना हैँ आज कि महिलाओ को यह समझना होगा की कल तो वों भी किसी की सास और किसी की दादी और किसी की नानी बनेंगी तो फिर आज की जो दादी और नानी हैँ किया उनका महत्व नहीं हैँ या आज की औरतें उन रिश्तों को अहमियत ही नहीं देना चाहती हैँ तो ऐसे कैसे चलेगा, इन औरतों को समझना होगा की आपकी शादी से पहले आपके पति किसी के भाई तो किसी के बेटे थे आप बाद में आई हैँ तो आपका मूल्य भी बाद के मूल्यांकन वाला होना चाहिए फिर कैसे और किस परिस्थिति में आज की औरतें यह अपेक्षा रखती हैँ की मेरा पति सिर्फ मेरा हैँ जबकि पहले वाले रिश्ते की अहमियत किया बेईमानी हैँ तो कदापि नहीं आज की औरतें की यही एकल सोच उन्हें सभी जगह से तिरस्कार दिलाने का कार्य करता हैँ जबकि सच तो यह हैँ कि एक औरत को हमेशा अपने घर की चिंता होनी चाहिए ना की औरों को देखते हुए यह बातें अपने दिमाग़ में रखनी चाहिए कि वों इस तरह से हैँ हम भी उसी तरह से करेंगे यही स्वयं वाली भावना उन्हें कभी भी परिवार की ओर समर्पित नहीं होने देती हैँ तभी आज भी औरत एक पहेली ही नजर आती हैँ,,,,, अरुण कुमार,, लेखक सह पत्रकार,,
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