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स्थानीय मुद्दे ही स्थानीय सरकार बनाती है, बड़ी पार्टी से टिकट मिलना जीत की गारंटी नहीं

धनबाद में शांति पूर्ण मतदान सम्पन्न होने के बाद सभी प्रत्याशियों के भविष्य ईवीएम में बंद हो गया है। सभी प्रत्याशियों ने अपनी जीत के लिए जी तोड़ मेहनत की।भाजपा, कॉंग्रेस एवं जेएएम गठबंधन के अलावे आजसु, जेवीएम, आप, लोजपा तथा निर्दलीय, सबों ने अपने-अपने अंदाज में वोटर को लुभाने की कोशिश की।

यदि बात करें दो राष्ट्रीय पार्टी की तो एक के साथ झारखंड में मजबूत स्थिति में क्षेत्रीय पार्टी जेएमएम का साथ है। इसलिए कुछ मजबूत स्थिति में कॉंग्रेस दिख रही है।

वहीं भाजपा की बात करें तो लोकसभा में प्रचण्ड बहुमत आने के बाद पार्टी के हाई कमान इतने उत्साहित और ओवर कंफिडेंट के चक्कर में अपने सहयोगी दल आजसु और लोजपा से झारखंड में दूरी बनाकर अपने दम पर चुनाव लड़ना मुनासिब समझा। डबल इंजन की सरकार और डबल विकास की सब्जबाग जनता को दिखाया। लेकिन बात तो स्पष्ट हो गया कि राममंदिर और धारा 370 की लहर कहीं दिखाई नहीं दी। कमोबेश यह स्थिति सभी 6 विधानसभा में देखने को मिली।

बाघमारा की बात करें तो वहाँ भी ढुल्लू महतो भाजपा को कॉंग्रेस के जलेश्वर महतो कड़ी चुनौती देते नजर आ रहे हैं। वहीं टुंडी में सबा अहमद, राजकिशोर महतो, मथुरा महतो, दीप नारायण सिंह, विक्रम पांडेय, के.के. तिवारी के बीच में मुकाबला है। जनता की पसंद को अभी पकड़ पाना थोड़ा कठिन है। सभी अपनी जीत का दावा ठोंक रहे हैं। क्योंकि रोड शो और शक्ति प्रदर्शन की भीड़ किसी भी प्रत्याशी में कम नहीं थी।

निरसा की बात करें तो एक बार मंत्री रहीं अपर्णा सेन की टक्कर मासस के अरूप चटर्जी के साथ है। लाल गढ़ में कमल का इस बार खिलना इतना भी आसान प्रतीत नहीं हो है। भाजपा ने लाल झंडा को उखाड़ कर कमल खिलाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।

सिंदरी में शहरी वोटरों का रुझान तो बीजेपी के ओर स्पष्ट दिखाई दिए, लेकिन बलियापुर क्षेत्र में फूलचंद मंडल और मासस के आनंद महतो की ओर ज्यादातर लोगों का रुझान साफ दिखाई दे रहा है। अब हमें परीक्षा के परिणाम का इंतजार करना चाहिए।

एक बात ये जरूर उभर कर सामने आई है कि स्थानीय मुद्दे ही स्थानीय सरकार बनाती है। केंद्र की योजना को लेकर मार्केटिंग करना यह बड़ी पार्टी को नुकसान पहुँचा सकती है। इस लिए हर विधायक को अपने क्षेत्र में नजर आने चाहिए और कार्य करना चाहिए।

जनता से सीधे संवाद और संपर्क जरूरी है। किसी बड़े दल का चिन्ह मिल जाने से जीत हासिल नहीं कि जा सकती है। ये बात हमारे जनप्रतिनिधि को भलीभाँति समझनी चाहिए। इतनी जागरूकता अभियान चलाने के बाद भी मतदान का प्रतिशत कम होना निराशाजनक रहा ।

Last updated: दिसम्बर 20th, 2019 by Nazruddin Ansari
Nazruddin Ansari
Correspondent- Gomoh(Dhanbad)
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