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रांची ले जाते वक्त रास्ते में किडनी मरीज की मौत, एंबुलेंस के अभाव में पड़े थे पीएमसीएच में

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बरवाअड्डा निवासी 45 वर्षीय दिलीप विश्वकर्मा जो किडनी रोग से ग्रसित थे। और जिनका इलाज धनबाद के पीएमसीएच में चल रहा था। शनिवार देर रात पीएमसीएच से रांची रिम्स ले जाते वक्त रास्ते में उनकी मौत हो गई।

मृतक दिलीप के दो बच्चे हैं एक पुत्र आशीष एवं एक पुत्री सपना। सपना जन्म से ही विकलांग है। घर की माली हालत काफी दयनीय है। दिलीप पहले घड़ी मिस्त्री का काम करता था। लेकिन बाद में मोबाइल आ जाने के बाद घड़ी बनाने का कारोबार ठप पड़ गया। और उसने लोन लेकर एक टेंपो निकाला। समय पर किस्त का पैसा जमा नहीं करने के कारण फाइनेंसर उन्हें कई माह पूर्व गाड़ी भी छीन लिया। आमदनी का कोई जरिया नहीं बचा। पत्नी लोगों के फटे पुराने कपड़े सिलाई कर परिवार का पेट भर रही थी एवं दिलीप का इलाज भी करवा रही थी।

धनबाद पीएमसीएच की कुव्यवस्था बनी दिलीप की मौत का जिम्मेदार

धनबाद पीएमसीएच की कुव्यवस्था बनी दिलीप की मौत का जिम्मेदार।  दिलीप विश्वकर्मा किडनी रोग से ग्रसित थे जो पैसे के अभाव में प्राइवेट अस्पताल में ना जाकर धनबाद के सरकारी अस्पताल पीएमसीएच में अपना इलाज करवा रहे थे।

दुर्भाग्य से हमेशा की तरह अपनी बद इंतजामी एवं लापरवाहियों  से सुर्खियों में रहने वाला धनबाद का एकमात्र सरकारी अस्पताल पीएमसीएच का डायलिसिस करने का मशीन खराब था।

जहाँ शनिवार को दिलीप विश्वकर्मा को अपना डायलिसिस करवाना था डॉक्टरों ने डायलिसिस मशीन खराब होने की बात कहकर दिलीप को रांची रिम्स रेफर कर दिया। समय पर सरकारी एंबुलेंस मिल जाता तो बच सकती थी दिलीप की जान । अपनी बीमारी एवं गरीबी से लड़ाई करने वाले दिलीप विश्वकर्मा के पास एंबुलेंस के पैसे नहीं थे। परिजनों ने सरकार द्वारा निःशुल्क एंबुलेंस सेवा 108 नंबर पर डायल कर एंबुलेंस मंगवाने की कोशिश की लेकिन उधर से जवाब आया कि प्राइवेट एंबुलेंस में मरीज को ले जाए अंत में धनबाद उपायुक्त के हस्तक्षेप के बाद के एंबुलेंस उपलब्ध हो पाया। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी धनबाद से रिम्स ले जाते वक्त दिलीप ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर पीएमसीएच के डायलिसिस मशीन ठीक रहती तो दिलीप को रिम्स रेफर करने की नौबत नहीं आती अगर नौबत आ भी गई थी तो समय पर सरकारी एंबुलेंस नहीं मिल पाया। और दिलीप अपनी बीमारी गरीबी और जिला प्रशासन की कुव्यवस्था से लड़ते-लड़ते दुनिया छोड़ कर चला गया। अब दिलीप की पत्नी विधवा और बच्चे अनाथ हो गए हैं। अगर जिला प्रशासन के द्वारा दिलीप के पत्नी और बच्चों को मदद किया जाता है तो कुछ हद तक उनकी जिंदगी पटरी पर होगी । अन्यथा पत्नी और अनाथ बच्चे दर दर की ठोकर खाने को मजबूर होंगे।

धनबाद की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे

एक तरफ जहाँ झारखंड सरकार प्रतिवर्ष अपने प्रचार प्रसार में अरबों रुपए खर्च कर रही है वहीं दूसरी ओर धनबाद जो प्रतिवर्ष अरबों रुपए टैक्स के रूप में सरकार को प्रदान कर रहा है उस धनबाद में एक भी ट्रामा सेंटर नहीं है। धनबाद में एक भी सरकारी न्यूरो सर्जन नहीं है। धनबाद में एक भी सरकारी यूरो सर्जन नहीं है ।धनबाद में एक भी कार्डियक सर्जन नहीं है। और सबसे बड़ी बात ना तो धनबाद के किसी जनप्रतिनिधि ने कभी लोकसभा या विधानसभा में गंभीर मुद्दों को लेकर सवाल उठाया है। दिलीप की मौत धनबाद जिला प्रशासन पर एक कुठाराघात है।

लोकसभा चुनाव 2019 सामने है फिर से धनबाद के नेतागण बड़े-बड़े लोग लुभावने वादे लेकर जनता के सामने आने वाले हैं। लेकिन क्या है न भैया यह पब्लिक है सब जानती है, चुनाव खत्म बादे खत्म।

अस्पताल में पड़ा है किडनी मरीज, रांची रिम्स रेफर, नहीं दे रहे हैं एंबुलेंस

Last updated: मार्च 24th, 2019 by Pappu Ahmad
Pappu Ahmad
Correspondent, Dhanbad
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