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क्या पुष्पा भालोटिया मानव नहीं थी

आज विश्व मानवाधिकार दिवस है. पूरे विश्व में आज मानवाधिकार दिवस मनाया जा रहा है. आसनसोल-दुर्गापुर क्षेत्र में भी ढेर सारे तथाकथित मानवाधिकार संगठन क्रियाशील हैं. इनमें से ज्यादातर मानवाधिकार संगठन पुरष्कार-सम्मान देने और लेने में ही व्यस्त रहते हैं. सत्ताधारी नेताओं के साथ फोटो खिंचवा कर सोशल साइट्स पर फैला रहे हैं. बहुत ज्यादा सक्रिय हैं तो कम्बल और बिस्कुट, चोकलेट बाँट रहे हैं. कुछ संगठन तो घरेलु मियाँ-बीबी के झगड़े सुलझा रहे हैं. मानवाधिकार संगठन का मजाक बना कर रख दिया है. जब असल में मानवाधिकार रक्षा की बारी आती है तो शुतुरमुर्ग के तरह बालू में गर्दन गाड़ लेते हैं. मैं बात कर रहा हूँ पुष्पा भालोटिया की . पूरे शिल्पांचल में ऐसा एक भी मानवाधिकार संगठन नहीं है जिसने पुष्पा भालोटिया की हत्या पर अपनी आवाज उठाई हो.

हत्या के करीब एक महीने तक तो प्रथिमिकी ही दर्ज नहीं हुयी थी

करीब एक महीने बाद उसके भाई ने रानीगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी तब जाकर यह हत्या का मामला बना इससे पहले तो पूरा सिस्टम इसे आत्महत्या बताने पर ही तुला हुआ था. होना यह चाहिए था कि रानीगंज पुलिस को स्वतः ही इस हत्या मामले पर प्राथमिकी दर्ज करती क्योंकि बहुत ही संदिग्ध परिस्थिति में उनकी मौत हुयी थी. डेढ़ महीने बाद रानीगंज की एक संस्था शोक सभा करने के लिए जागी तो उसमें अड़चन उत्पन्न की गयी. रानीगंज की प्रतिष्ठित संस्था लायंस क्लब शोक सभा के लिए एक जगह भी मुहैया नहीं करा पायी. पहले हाँ करके फिर गेट में ताला लगा दिया.

आसनसोल से उठी थी आवाज पर भी सब मौन

आसनसोल से कोई मुस्तकिन नाम के व्यक्ति ने दो-तीन दिन तक तो खूब शोर मचाया. एक निजी चैनल पर उनका साक्षात्कार देखकर महसूस हुआ अब शायद पुष्पा भालोटिया को न्याय मिल जाए लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि वे भी शांत हो गए. झारखण्ड से कोई मिलियन स्माइल नाम की संस्था विरोध करने वाली थी . बाकायदा प्रेस कांफेरेंस करके 30 नवंबर की तारीख भी घोषित की गयी थी . लेकिन सब टांय-टांय फिस्स. फिर उनकी ओर से बयान आया कि रानीगंज पुलिस ने उन्हें विरोध करने की अनुमति नहीं दी. हो सकता है कि रानीगंज पुलिस ने अनुमति न दी हो तो मानवाधिकार संस्था का यही तो काम है कि वो व्यवस्था पर दबाव बनाये . विरोध प्रदर्शन हर नागरिक मौलिक अधिकार है . एक मानवाधिकार संगठन यदि अपना विरोध का अधिकार भी इस्तेमाल नहीं कर पाती है तो फिर उसे मानवाधिकार संगठन कहलाने का कोई हक़ नहीं है. जो अपना ही अधिकार नहीं ले पा रही है वो दुसरो को क्या अधिकार दिलाएगी. या कुछ और मामला है . कारण जो हो लेकिन आज मानवाधिकार दिवस पर भी यदि पुष्पा भालोटिया किसी को याद नहीं आई तो ऐसे मानवाधिकार संगठनों से आम जनता को सतर्क रहने की जरुरत है.

Last updated: दिसम्बर 10th, 2017 by Pankaj Chandravancee

Pankaj Chandravancee
Chief Editor (Monday Morning)
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