क्रिसमस पर, जूठन से पिकनिक मनाता एक बदहाल तस्वीर

पिकनिक की कोतुहल से परिपूर्ण मैथन की हसीन वादियों में जहां विकसित भारत की झलक हमें साफ दिखाई देती है, चमक दमक और पश्चिमी सभ्यता की अनुभूति कराती है, विकास की मशीन स्मार्ट फ़ोन से भले ही आज हर हाथ भरे हो,….. किन्तु हजारों की भीड़ में एक भूखे भारत की तस्वीर साफ झलक रही थी। जो सैलानियों की जूठन से अपना भूख मिटाने की जंग लड़ रही थी। एक बूढी माँ अपने दो बेटियों की भूख मिटाने के लिए फेंके गए बोटियों पर निगाह टिकाये बैठी थी। …..और अपनी बारी का इन्तेजार कर रही थी । किन्तु वनभोज के दौरान सैलानियों की चूल्हे से निकलने वाली मटन, और चिकन की सुगंध इनकी बर्दास्त की सीमा को लाँघ चुकी थी। मागने पर पर्यटक इन्हें फटकारते हुए दूर रहने को कहते और बाद में आना कह कर टाल देते। दिन ढलने को थी । भूख भी परवान पर चढ़ चुकी थी ऐसे में दानियो के हाथ भी ब कंजूसी की कमान संभाल चुकी थी। किन्तु शायद बर्बाद होते भोजन पर इनका ही हक़ होता है। ऐसे में भोजन एकत्रित करते करते परिवार के पास जरुरत से ज्यादा भोजन जमा हो चुका था। पूछने पर क्या करेंगे इतने भोजन का….? बाबु चावल को सुखा कर फिर से बाद में भात बना लेंगे। ऐसी पकवान शायद ही पहले कभी कानों ने सुनी होगी। किन्तु एक भूखा भारत आज भी है और यह दृश्य इस बात को चरितार्थ करती है|

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