सवालों से बचकर निकल गयी ‘आजादी-आजादी’ का नारा देने वाली जेएनयू की एसएफ़आई नेत्री दिप्सिता धर
बीते 27 अगस्त को जेएनयू की छात्रा और एसएफ़आई की संयुक्त सचिव दिप्सिता धर प० बर्धमान जिले के अंडाल में आई थी । डीवाईएफ़आई सहित अन्य 12 वामपंथी संगठन द्वारा आगामी 12-13 सितंबर को नवान्न चलो अभियान बुलाया गया है । उसी के प्रचार के लिए अंडाल आई थी दिप्सिता धर ।
अपने भाषण में सरकार द्वारा धारा 370 हटाये जाने की खूब निंदा करती रही । उन्होने कहा कि इस सरकार के कार्यकाल में देश में बेरोजगारी बढ़ी है इत्यादि जो प्रायः सभी विपक्षी पार्टियों के नेता भाजपा के खिलाफ बोलती है।
सवालों का सीधा जवाब देने के बजाय अपने एजेंडे का प्रचार करती रही दिप्सिता धर
उनके वक्तव्य समाप्त होने के बाद मैंने उनसे कुछ सवाल करना चाहा परंतु सवाल का सीधा जवाब देने के बजाय वह अपने एजेंडे का ही प्रचार करती रही ।
क्या आप पाकिस्तान के साथ नहीं खड़े हैं …….!
उनसे पूछा गया कि आज जब पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी है । केवल पाकिस्तान को छोड़ दुनिया के किसी भी देश ने धारा 370 हटाने का विरोध नहीं किया है तो फिर आपलोगों को यह नहीं लगता है कि आप पाकिस्तान के साथ खड़े हैं और भारत में रह कर पाकिस्तान का झण्डा बुलंद कर रहे हैं ।
जिस पर इन्होने वही रटा-रटाया जवाब दिया जो इनके शीर्ष नेतागण बोलते हैं । पाकिस्तान इनके बयानों का अपने दुष्प्रचार के लिए जो इस्तेमाल कर रहा है उसपर इन्होंने कोई जवाब नहीं दिया । लेकिन 28 अगस्त को जिस प्रकार राहुल गांधी को यू टर्न लेना पड़ा वैसे ही इन्हें भी यू टर्न लेना पड़ेगा ये इंतजार कर रहे हैं पाकिस्तान द्वारा इनके नाम का भी उल्लेख करने का
मैंने ये सवाल उनसे 27 अगस्त को पूछा था और 28 अगस्त को क्या हुआ पूरी दुनिया ने देखा । पाकिस्तान ने राहुल गांधी , तृणमूल कॉंग्रेस , वामपंथी और कई विपक्षी नेताओं के बयानों का हवाला देकर संयुक्त राष्ट्र को चिट्ठी लिखा है कि कश्मीर में मानवअधिकारों का उल्लंघन हो रहा है ।
अब राहुल गांधी को लगा कि बुरे फंसे हैं तो गला फाड़-फाड़ का सफाई दे रहे हैं कि पाकिस्तान को भारत के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए ।
कोई राहुल और उनके साथियों को समझाये कि धारा 370 जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जब वो कहते हैं कि वहाँ मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा है तो फिर उसे पाकिस्तान क्यों नहीं उठाएगा । पाकिस्तान भी तो 5 अगस्त से यही कह रहा है । या तो राहुल गांधी और उनके साथ खड़ी पार्टियां पाकिस्तान की भाषा बोल रहे थे या पाकिस्तान उनकी ।
अब आते हैं एसएफ़आई की नेत्री पर । वह अपने बड़े-बड़े नेताओं के भाषणों को रटे – रटाए अंदाज में मंच से बोल रही थी जो भारतियों को कम और पाकिस्तानियों को ज्यादा पसंद आएगा ।
जम्मू – कश्मीर में डीवाईएफ़(आई) क्यों नहीं है
डीवाईएफ़आई माकपा की युवा शाखा है । पूरा नाम है डेमोक्रेटिक यूथ फेडेरेशन ऑफ इंडिया (भारत का गणतांत्रिक युवा संगठन) जिस पाकर से एसएफ़आई माकपा की छात्र शाखा है उसी प्रकार । मेरे सवाल के के जवाब में वो बार-बार कहती रही कि कश्मीर भारत का हिस्सा है लेकिन जब उनसे पूछा गया कि जब जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है तो फिर भारत के तरह वहाँ डीवाईएफ़(आई )क्यों नहीं है । वहाँ डीवाईएफ़आई से आई (इंडिया ) को हटा कर जे एंड के लगा दिया गया है डीवाईएफ़ (जे एंड के ) , ऐसा क्यों ?
क्या माकपा पहले ही यह मान चुकी थी कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है इसलिए वहाँ डीवाईएफ़(आई) नहीं बल्कि डीवाईएफ़ (जे एंड के ) होना चाहिये ।
टाका और रुपया पर गलत बयान दे गयी दिप्सिता
इन दिनों सोशल मीडिया में एक फेक न्यूज़ ट्रेंड कर रहा है कि बंगालदेशी टाका भारतीय रुपया से आगे हो गया हैं । सुनी सुनाई बातों और फेक न्यूज़ के आधार पर देश को बदनाम करने की एक बार फिर इनकी कोशिश उस वक्त दिखी जब अपने भाषण के दौरान उन्होने मोदी सरकार पर लानत भेजी और शर्म करने के लिए कहा क्योंकि टाका रुपए से मजबूत हो गया ।
पाठकों को बता दें कि बंगालदेशी टाका कभी भी भारतीय रुपए से ऊपर नहीं हुआ है। हाँ अंतर बहुत कम जरूर हुआ है और फिलहाल मात्र 16 पैसे का अंतर है ।
इससे पहले इन्हीं के संगठन से जुड़ी शेहला रशीद एक ट्वीट करके फंस गयी कि कश्मीर में भारतीय सैनिक घरों में घुसकर महिलाओं के साथ अत्याचार कर रहे हैं । जब कानून का डंडा चला, जगह और तारीख पूछी गयी तो अपना बयान वापस लेते हुये कहती है कि उन्होने सुनी-सुनाई बातें पोस्ट की थी ।
सवालों से बचकर निकल गयी जेएनयू की छात्र नेता
हमारे तरकश में और भी कई सवाल थे जिसका जवाब देने से पहले नेत्री ने वहाँ से निकल जाना बेहतर समझा । हमारे जिन सवालों से वो बच गयी उसे मैं पाठकों के अवलोकनार्थ यहाँ रख रहा हूँ ।
कश्मीरी पंडितों के हक और आजादी पर मौन क्यों ?
विपक्षी पार्टी के नेता को यह पूरा हक है कि वह सरकार की आलोचना करे . उसकी खामियों को सामने लाये और यह स्वस्थ लोकतन्त्र के लिए बहुत जरूरी भी है । लेकिन 370 हटाने का विरोध करने वाले ये नेता कश्मीरी पंडितों के हुये मोब लिंचिंग की निंदा तो दूर कभी कोई जिक्र ही नहीं करते हैं ।
दलितों को नागरिकता नहीं दिये जाने पर मौन क्यों ?
बीते 60 वर्षों से कश्मीर में रह रहे उन बाल्मीकी परिवारों के बारे में कुछ नहीं बोलते हैं जिन्हें वहाँ सफाई करने के अलावे कोई काम करने का अधिकार नहीं है क्योंकि उन्हें आज तक वहाँ की नागरिकता ही नहीं दी गयी है जबकि पाकिस्तानी दामाद को वे एक दिन में ही नागरिकता दे देते हैं ।
कश्मीरी बेटियों के मौलिक अधिकार हनन पर मौन क्यों
बेटियों के भारतीयों से शादी करने पर उनसे संपत्ति का हक छिन लेते हैं । क्या यह एक महिला के मौलिक अधिकार का हनन नहीं है । हक और आजादी की बात करने वाले ये वाम पंथी नेता इन मुद्दों पर कभी अपना मुंह नहीं खोलते हैं ।
शेष भारत में आरक्षण के लिए गला फाड़ने वाले ये नेता इस बात पर चुप क्यों हो जाते हैं कि जम्मू-कश्मीर में आरक्षण लागू नहीं था ।
कश्मीर में भरष्टाचार और उसके जांच की मांग क्यों नहीं करते हैं ?
धारा 370 की आड़ में भारतीय पैसों से वहाँ भ्रष्टाचार का जो खेल चल रहा है उस पर कुछ नहीं बोलते हैं। पूरे भारत के तरह जम्मू-कश्मीर में जांच एजेंसियां भ्रष्टाचार के मामले की जांच नहीं कर पा रही थी ।जम्मू कश्मीर के भ्रष्टाचारी नेता जो पैसा डकार रहे थे क्या उससे देश के गरीबों का भला नहीं होता ?
क्या कुछ हजार अलगाववादी – पत्थरबाज पूरे जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करते हैं
वे कश्मीर के मात्र कुछ हजार युवाओं को ही पूरे जम्मू-कश्मीर का आवाज साबित करने की कोशिश करते हैं जबकि वास्तविकता यह है धारा 370 हटने पर पूरे लद्दाख में जश्न का माहौल है । पूरा जम्मू खुश है । कश्मीर के बड़े हिस्से को भी कोई विशेष आपत्ति नहीं है । केवल घाटी के कुछ हिस्से में विरोध चल रहा है वो तो पहले भी होता था ।
जो कल तक सेनाओं पर पत्थर फेंकते थे वे रातों – रात गुलाब तो नहीं फेंकने लगेंगे लेकिन वे जम्मू कश्मीर का प्रतिनिधि नहीं हैं । वे कुछ अलगाववादी लोग हैं जो पाकिस्तान से पैसे लेते हैं और भारत में आतंक फैलाते हैं । उनकी इच्छा को क्या पूरे जम्मू-कश्मीर पर थोप देना चाहिए ।
ये सरकार को उन कश्मीरी नेता से बात करने की बात करते हैं जो खुद भारत सरकार को पाकिस्तान से बात करने की बात करते हैं । क्या आपको लगता है कि 370 के आड़ में भ्रष्टाचार की मलाई खा रहे ये नेता कभी चाहेंगे कि धारा 370 हटाई जाये । ये लोग पाकिस्तान के साथ भी नहीं जाएंगे क्योंकि उन्हे भारत से सुख-सुविधा भी चाहिए और धारा 370 का सुरक्षा कवच भी ।
जब ये कहते हैं कि विशेष शर्तों के साथ जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हुआ था तो इन्हें पूरी इतिहास की जानकारी ही नहीं है । मैं अपने पिछले संपादकीय लेख का लिंक यहाँ दे रहा हूँ । उसे पढ़कर आप समझ जाएँगे कि जम्मू-कश्मीर का विलय उन्हीं प्रावधानों के तहत हुआ था जिसके तहत बाकी के रियासतों का विलय हुआ था । जब बाकी के रियासत को धारा 370 नहीं मिला तो केवल जम्मू-कश्मीर को क्यों ? क्या उस वक्त की सरकार द्वारा की गयी गलतियों को सुधारा जरूरी नहीं है ।
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प्रधान संपादक – पंकज चंद्रवंशी
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