क्या सुप्रीम कोर्ट निरस्त कर देगा धारा 370 समाप्ति का आदेश ? पढ़िये धारा 370 का सम्पूर्ण विश्लेषण

आपने अक्सर कश्मीरी नेताओं को कहते हुये सुना होगा कि धारा 370 ही कश्मीर को भारत से जोड़ती है और धारा 370 की  समाप्ति से कश्मीर का भारत से रिश्ता टूट जाएगा ।

हमने जम्मू-कश्मीर के गठन से लेकर अब तक के इतिहास को बहुत बारीकी से खंगाला है और जो कुछ हमें समझ में आया उसके अनुसार धारा 370 भारतीयों के साथ एक धोखा था

भारत में जम्मू-कश्मीर का विलय भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल और महाराजा हरि सिंह द्वारा एक संधि के जरिये हुआ था । जिसे “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन ऑफ जम्मू एंड कश्मीर ” कहते हैं । इसे समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा ।

सम्पूर्ण भारत पर ब्रिटिश सरकार का सीधा शासन नहीं था

हमलोग सभी जानते हैं कि भारत पर अंग्रेजों का शासन था और 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ लेकिन यह पूरा सच नहीं है । पूरे भारत पर अंग्रेजों का शासन तो था लेकिन प्रत्यक्ष रूप से नहीं था ।

भारत के करीब आधे से कुछ कम हिस्से पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष शासन था जिनमें, बंगाल, बिहार, दिल्ली इत्यदि आते हैं । भारत के बड़े हिस्से पर अंग्रेजों का अप्रत्यक्ष शासन था । भारत में कई रियासतें या रजवाड़े थे । यह एक प्रकार से अपने एक छोटे से राज्य (जिसे समझने के लिए देश भी कह सकते हैं ) के राजा थे जैसा कि अंग्रेजों के आने के पहले की स्थिति थी ।

ब्रिटिश सरकार के एजेंट के रूप में  काम करते थे देशी राजा

अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति और युद्धकौशल के बल पर इन छोटे-छोटे राज्यों को अपने नियंत्रण में ले लिया लेकिन उन पर सीधा शासन नहीं किया बल्कि उन राजाओं को एक तरह से अपना एजेंट बना लिया जो सालाना एक निश्चित रकम अपने जनता से कर के रूप में वसूल करके ब्रिटिश हुकूमत को सौंपते थे । बदले में ब्रिटिश हुकूमत उन्हें अपने रियासत का राजा कहलाने का अवसर देते थे । ऐसा शायद इसलिए भी था क्योंकि अंग्रेज़ यहाँ पैसा कमाने के लिए आए थे उनका शासन करने का कोई इरादा नहीं था ।

हमलोग जानते हैं कि भारत 1947 में आजाद हुआ लेकिन भारत का राजनीतिक तानाबाना आजादी से बहुत पहले ही बुन दिया गया था और आजादी के बाद भी भारत उसी ताने-बाने पर चल रहा है जिसमें समय-समय पर कई बदलाव हुये हैं ।

वर्ष 1935 में ही पड़ गयी थी आजादी की नींव

चूंकि सम्पूर्ण भारत पर अंग्रेजों का सीधा शासन नहीं था इसलिए ब्रिटिश राजा के आदेश पर भारत सरकार अधिनियम 1935 जारी किया गया जिसके तहत जो देशी रजवाड़े  सीधे तौर पर अँग्रेजी हुकूमत में नहीं आते थे उन्हें भारतीय राज्य समूह का हिस्सा बनने के लिए कहा गया । इसे भारत के वर्तमान स्वरूप के तरह समझ सकते हैं जिसमें अलग-अलग राज्य कुछ विशेष अधिकारों के साथ के भारत गणराज्य का हिस्सा है । और सभी राज्यों पर एक केंद्रीय सत्ता का राज्यपाल नियुक्त होता है । जिसे राज्य पर केंद्र के शासन के रूप में देख  सकते हैं ।

कमोबेश यही सिद्धान्त भारत सरकार अधिनियम 1935 में लागू किया गया जिसे आप भारत के पुनर्गठन की नींव या फिर आजादी की नींव भी कह सकते हैं। इस अधिनियम के जरिये भारत को “ब्रिटिश डोमिनियन” बनाने की कोशिश की गयी । “डोमोनियन” का शाब्दिक अर्थ होता है किसी के नियंत्रण में रहने वाला अर्ध स्वतंत्र राज्य ।

“इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन” के जरिये रियासतों को पहले इंडिया डोमिनियन में मिलाया गया

इस अधिनियम में एक समझौता पत्र तैयार किया गया जिसे “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन” (विलय का साधन ) नाम दिया गया । यह एक पहले से लिखा हुआ ड्राफ्ट होता था । जिसमें देशी रजवाड़े के राजा केवल अपना नाम और विवरण भरकर ” ब्रिटिश इंडिया डोमिनियन”में स्वयं के विलय के लिए हस्ताक्षर करते थे ।

वर्ष 1947 में ब्रिटिश संसद ने भारत स्वतन्त्रता अधिनियम पारित किया जिसके तहत भारत को दो “डोमिनियन” इंडिया और पाकिस्तान में विभाजित किया गया । चूंकि सम्पूर्ण भारत पर ब्रिटिश सरकार का सीधा शासन नहीं था इसलिए वे पूरे भारत को सटीक प्रकार से दो हिस्सों में नहीं बाँट पाये । केवल वे हिस्से बाँटे गए जो ब्रिटिश सरकार के सीधे शासन में थे । जैसे पंजाब और बंगाल का दो हिस्सों में बंटवारा तय हुआ था ।

बाकी जो देशी रियासतें थी जिनपर ब्रिटिश सरकार का सीधा शासन नहीं था उन्हें उसी “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन” के जरिये इंडिया या पाकिस्तान में विलय करने के लिए कहा गया ।

वर्तमान भारत के पूर्व के ज़्यादातर रियासतों ने बिना किसी झंझट के भारत में स्वयं को विलय कर लिया । कुछ में परेशानियाँ हुई और कुछ में शक्ति का इस्तेमाल करना पड़ा लेकिन लगभग सभी का इसी “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन” के तहत भारत में विलय हुआ । कुछ का बाद में अलग-अलग कानूनों के जरिये भी भारत में विलय हुआ ।

जम्मू -कश्मीर का भी इंडिया डोमिनियन में बाकी रियासतों की तरह ही विलय हुआ था

यहाँ चर्चा हो रही है जम्मू-कश्मीर की तो जम्मू कश्मीर का विलय भी इसी “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन” के तहत भारत में विलय हुआ ।

उदाहरण के लिए मैं यहाँ दो “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन” का लिंक दे रहा हूँ। एक जम्मू-कश्मीर का और दूसरा मैसूर का । दोनों को पढ़ने के बाद आप समझ जाएँगे कि एक निश्चित ड्राफ्ट के तहत दोनों रियासतों का विलय हुआ। उसी प्रकार भारत की ज़्यादातर रियासतें इसी निश्चित ड्राफ्ट के तहत भारत में शामिल हुयी जिसमें कि जम्मू-कश्मीर भी एक रियासत हैं । मैं इन दस्तावेजों की प्रामाणिकता का दावा नहीं करता हूँ लेकिन लगभग सभी जगह इन्हीं तथ्यों का जिक्र है इसलिए इसे प्रामाणिक मानता हूँ ।

इतने लंबे लेख लिखने का उद्देश्य यह स्पष्ट करने के लिए था कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया था वह बाकी रियासतों के तरह ही “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन” ड्राफ्ट के जरिये भारत में शामिल हुआ था जो वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम के जरिये ब्रिटिश सरकार ने बनाया था ।

“राज-प्रमुख” के जरिये इंडिया डोमिनियन का रियासतों पर नियंत्रण था

इन रियासतों पर उस भारत के गवर्नर जनरल का नियंत्रण होता था जो “राज प्रमुख” के जरिये इन रियासतों पर नियंत्रण रखते थे। समझने के लिए इस वर्तमान समय के राष्ट्रपति और राज्यपाल के उदाहरण से समझ सकते हैं ।

इन रियासतों को चार वर्गों में बाँटा गया था “ए,बी,सी,डी”। वर्ग के हिसाब से उन्हें कुछ अधिकार और उस पर भारतीय डोमोनियन का अधिकार स्थापित किया गया था । जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद, मैसूर सहित 9 रियासतें “बी ” वर्ग में रखे गए थे।

विलय के समय “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन” ड्राफ्ट में रियासतों को कुछ विशेष अधिकार दिये गए थे । रियासतों के अपने राजा की कुछ शक्तियाँ निहित थी। जो भारतीय संविधान के अंगीकार के बाद स्वतः समाप्त हो गए थे । ज़्यादातर राजाओं को अपने राज्य का राज-प्रमुख बना दिया गया जिसे वर्तमान के गवर्नर के रूप में समझ सकते हैं । सभी राज्यों में चुनाव हुये और चुनाव के बाद पहली लोकसभा गठन के साथ ही भारत पूर्ण स्वतंत्र गणराज्य के रूप में स्थापित हो गया ।

वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के बाद सभी रियासत भारत का अभिन्न हिस्सा बन गए

वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत राज्यों का वर्गीकरण समाप्त कर दिया गया और भाषा के आधार राज्यों की सीमाएं बदल दी गयी । इसी के साथ ही रियासतों के राजाओं की बची-खुची शक्तियाँ भी समाप्त हो गयी।

लेकिन जम्मू-कश्मीर का धारा 370 बना रह गया । इसी धारा का इस्तेमाल करके जम्मू-कश्मीर ने धारा 35 ए संविधान में जुड़वा लिया । जिसके कारण जम्मू-कश्मीर में कई विवादित नियम लागू हो गए । 35 ए को भी सदन की मंजूरी से नहीं बल्कि राष्ट्रपति के आदेश से लागू किया है। तत्कालीन सरकार यदि चाहती तो इस तरह के संविधान को लागू करने से मना भी कर सकती थी क्योंकि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हो चुका था ।

कुछ अन्य राज्यों को भी मिले हैं विशेष अधिकार

कई राज्य 1956 के बाद भारत में शामिल हुये और उन राज्यों के लिए भी कुछ विशेष कानून बने हुये हैं जो उन राज्यों को कुछ विशेष अधिकार देते हैं ऐसे राज्यों में सिक्किम, मिजोरम, नागालैंड सहित कुछ राज्य है लेकिन वे सभी धारा 370 की तरह नहीं हैं ।

यहाँ तक आप समझ गए होंगे कि जम्मू-कश्मीर भारत के अन्य रियासतों के तरह ही था और अन्य रियासतों के तरह ही उसका विलय हुआ तो फिर जम्मू-कश्मीर कैसे बाकी रियासतों से अलग बन गया और उसे धारा 370 जैसा कवच कैसे मिल गया ? इसे आगे समझते हैं ।

किसी अंदरूनी समझौते के तहत देश को अंधेरे में रखकर धारा 370 देश पर थोपा गया था

भारत के संविधान को भारत की संविधान सभा ने वर्ष 1949 में अंगीकार कर लिया । जिसमें जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने के लिए धारा 370 शामिल था । मतलब साफ है संविधान को लिखते समय जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष कानून को लिखा गया । जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय वर्ष 1948 में हुआ था और संविधान को वर्ष 1949 में अंगीकार किया गया था । जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र में कहीं भी जम्मू-कश्मीर के लिए अलग से कानून बनाने की मांग नहीं कि गयी है तो फिर किस मंशा और किस अंदरूनी समझौते के तहत धारा 370 को संविधान में जोड़ा गया था इसे तो बताने वाला अब कोई जिंदा ही नहीं है।

कई खबरों के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर के लिए अलग संविधान देने का वादा किया था । इसकी पुष्टि हम नहीं करते हैं लेकिन ज़्यादातर इतिहासकार यही मानते हैं ।

नेहरू भी कश्मीरी पंडित थे

पाठकों को बता दें कि प० जवाहरलाल नेहरू भी   कश्मीरी पंडित  ही  थे । हालांकि उनके पिता मोतीलाल नेहरू और दादा गंगाधर नेहरू दिल्ली में पले-बढ़े । उनके परदादा और उनके पूर्वज के बारे में अधिक जानकारी नहीं है लेकिन उनके स्वयं के अनुसार वे कश्मीरी पंडित ही थे ।

देश की जनता के साथ धोखा  है धारा 370

मेरी नजर में धारा 370 और उसके विशेष अधिकार पूरे भारत के साथ एक धोखा है क्योंकि देश की जनता के पैसे से जम्मू-कश्मीर का भरण-पोषण होता है और उसी जनता का जम्मू-कश्मीर पर कोई अधिकार नहीं है । वे वहाँ जाकर बस नहीं सकते , मकान नहीं बना सकते, कारोबार नहीं कर सकते हैं।

क्या धारा 370 की समाप्ति कानून सम्मत है ?

अब सवाल उठता है कि क्या धारा 370 (1) को छोड़कर बाकी को समाप्त करना कानून सम्मत है ?

मेरा मानना है कि यह बिल्कुल कानून सम्मत है । जम्मू-कश्मीर का विलय “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन ” के तहत बाकी अन्य रियासतों की तरह ही हुआ था जिसमें धारा 370 का जिक्र नहीं है । हालांकि उसमें इस बात का जिक्र है कि राष्ट्रपति अपनी मर्जी कोई कानून नहीं थोप सकते हैं , उनके या उनके उत्तराधिकारी की अनुषंशा पर वे कानून बना दे सकते हैं । यह जिक्र  लगभग सभी रियासतों के “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन” में दर्ज है । उदाहरण के लिए आप मैसूर के “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन “ को पढ़ कर समझ सकते हैं कि यह तो बिल्कुल जम्मू-कश्मीर के “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन” जैसा ही है केवल राजा का  नाम और पता अलग है ।

भारत की संविधान द्वारा संविधान को अंगीकार करने से ही “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन ” का भी भारत में विलय हो गया । और सभी रियासत बिना किसी विशेष अधिकार के भारत का हिस्सा बन गए । जिसमें केंद्र के सभी कानून राज्य पर लागू होते हैं और केंद्र और राज्य के अलग-अलग अधिकार क्षेत्र तय किए गए हैं जिसे संघीय ढांचा कहते हैं ।

जब भारतीय संविधान ने अधिकार दिये हैं तो वह छीन भी सकता है

 जिस भी धाराओं के तहत राज्यों के लिए जो अलग से कानून बनाए गए हैं वे भारत की संविधान ने बनाए हैं और भारत की संविधान के पास यह अधिकार है कि वह अपने किसी भी धारा और अनुच्छेद में संसोधन कर सकती है।

इस हिसाब से भारतीय संविधान ने जो धारा 370 बनाया था उसे वह स्वयं हटा सकती है । राज्यों से संबन्धित धाराओं में संसोधन के लिए  राज्य विधान सभा की मंजूरी आवश्यक होती है।  चूंकि कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है इसलिए केंद्र की दोनों सदन ही जम्मू-कश्मीर की विधान सभा है इस हिसाब के केंद्र सरकार संसद की मंजूरी से राज्य के किसी भी बिल को संसोधित कर सकती है।

धारा 370 में संसोधन के लिए सदन की मंजूरी आवश्यक ही नहीं थी

धारा 370 मामले में तो सदन की मंजूरी भी आवश्यक नहीं है  क्योंकि धारा 370 के दस्तावेज़  के मुताबिक धारा 370 (1) के तहत राष्ट्रपति राज्यपाल की सहमति से राज्य के लिए कानून बना सकती है।

इस पेंच को भी थोड़ा अच्छे से समझ लें 

धारा 370 (1) में पहले यह उल्लेखित था कि राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर के महाराजा या उसके उत्तराधिकारी की सहमति से जम्मू-कश्मीर के लिए कानून बना सकते हैं ।

वर्ष 1952 में शेख अब्दुल्ला की सिफ़ारिश पर तत्कालीन प्रधानमंत्री प० जवाहरलाल नेहरू की अनुषंशा पर राष्ट्रपति ने एक आदेश जारी करके महाराजा के स्थान पर “सदर – ए – रियासत” करवा दिया ।  उस वक्त जम्मू -कश्मीर के “सदर – ए – रियासत” अर्थात राष्ट्रपति महाराजा हरी सिंह के पुत्र कर्ण सिंह थे और “वजीर – ए-आजम” अर्थात प्रधानमंत्री शेख-अब्दुल्ला थे ।

कांग्रेस भी खत्म कर सकती थी धारा 370

तब के जनसंघ के भारी विरोध कि एक देश में दो निशान , दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेगा के आंदोलन के बाद जम्मू-कश्मीर से सदर-ए- रियासत और वजीर-ए-आजम को खत्म करके राज्यपाल और मुख्यमंत्री कर दिया गया । लेकिन धारा 370 के बाकी प्रावधानों को बरकरार रखा गया । अब सवाल उठता है कि जब तब की केंद्र सरकार वहाँ के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति  तक को निरस्त कर सकती थी तो फिर धारा 370 के विवादित प्रावधानों को भी  निरस्त क्यों नहीं कर सकती थी ।

पुराने आजमाए हुये तरीके से ही हुआ है यह संसोधन

धारा 370 (1) के जिन शक्तियों का इस्तेमाल करके प० जवाहरलाल नेहरू की अनुषंशा पर तत्कालीन राष्ट्रपति धारा 370 में संसोधन करते रहे उन्ही शक्तियों का इस्तेमाल करके 5 अगस्त 2019 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने जम्मू कश्मीर पर भारत के सम्पूर्ण संविधान को लागू कर दिया साथ ही धारा 370 (1) को छोड़कर बाकी सभी धाराओं को निरस्त कर दिया।

सम्पूर्ण संविधान लागू होने के साथ ही जम्मू-कश्मीर भारत के अन्य राज्यों के तरह बन गया और उसके पहले के कोई भी ऐसी धारा जो भारतीय संविधान से मेल नहीं खाती है सब स्वतः निरस्त हो गयी है ।

सुप्रीम कोर्ट में भी नहीं टिक पाएगा यह मामला

मेरे हिसाब से सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला टिक नहीं पाएगा और जम्मू-कश्मीर अब भारत एक राज्य है जिसे दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बाँट दिया गया है । यह बंटवारा सदन से पारित हुआ है और यह भी पूर्ण रूप से वैध है ।

फिर भी यदि मान लें कि सुप्रीम कोर्ट धारा 370 के पक्ष में फैसला कर देती है जैसा कि वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुकी है। तब भी हमारी संसद के पास यह अधिकार है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट सकती है । यहाँ एक बात ध्यान देना जरूरी है कि धारा 370 का पहला वाक्य यही है कि यह एक अल्पकालिक धारा है ।

जम्मू-कश्मीर संविधान सभा भंग होने के साथ ही धारा 370(3) निरस्त हो गयी थी

अब कुछ  लोग यह दलील दे रहे हैं कि धारा 370 (3) के मुताबिक केवल जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की अनुषंशा पर ही राष्ट्रपति धारा 370 को समाप्त कर सकते हैं । चूंकि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा भंग हो चुकी है इसलिए धारा 370 समाप्त नहीं हो सकता है ।

जो लोग यह दलील दे रहे हैं , उनके हिसाब से  अब धारा 370 स्थायी व्यवस्था बन गयी है लेकिन धारा 370 का जो पहला लाइन है कि यह अस्थायी धारा है तो फिर उसका क्या ?

मेरे हिसाब से जब वर्ष 1951 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा भंग हुई तो उसी के साथ धारा 370 (3) समाप्त हो गयी । क्योंकि धारा 370 अल्पकालिक धारा थी और इस अल्पकालिक धारा में संविधान सभा का जिक्र है । चूंकि संविधान सभा स्वयं भी अल्पकालिक ही होती है इसलिए संविधान सभा के भंग होने के साथ ही इसकी मांग करने वाले अल्पकालिक प्रावधान भी स्वतः ही निरस्त हो गए

धारा 370(1) को छोड़कर बाकी की दो धाराओं को निरस्त कर विवाद समाप्त कर दिया गया

अब बच गए धारा 370 (1) और (2) जो राष्ट्रपति को यह अधिकार देते हैं कि राज्य सरकार की सहमति से वे यहाँ कानून बना सकते हैं । राष्ट्रपति शासन में राज्यपाल ही सरकार होते हैं इसलिए उनकी सहमति धारा 370(1) को छोड़कर सभी धाराएँ समाप्त कर दी गयी और भारत का सम्पूर्ण कानून लागू कर दिया गया ।

 

दस्तावेज़

जम्मू-कश्मीर का “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन”

मैसूर का “इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन “

धारा 370 की प्रति

धारा 370 पर वर्ष 2018 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले की न्यूज़

(यह लेख इन्ही  दस्तावेजों को आधार मानकर लिखा गया है जो प्रामाणिक प्रतीत होती है लेकिन हम इसकी प्रामाणिकता का दावा नहीं कर सकते हैं )

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Last updated: अगस्त 8th, 2019 by Pankaj Chandravancee
Pankaj Chandravancee
Chief Editor (Monday Morning)
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