सर्पों की देवी माँ मनसा के बारे में ये बातें शायद नहीं जानते होंगे आप

सांपो की देवी माँ मनसा देवी की पूजा प0 बंगाल एवं झारखंड के कुछ हिस्सों में मनायी जाती है। 17-18 अगस्त को यह पूजा मनाई गई। कुछ जगहों पर यह पूजा एक महीने तक चलती है।

भगवान शिव की लाडली बिटिया है माँ मनसा, जिसका आदेश मानते हैं दुनिया के सभी सर्प

भगवान शिव के परिवार का जब भी चित्रण किया जाता है तो देवी पार्वती और गोद में गणेश के साथ कार्तिकेय को दिखाया जाता है। जिससे ऐसा लगता है कि भोलेनाथ के मात्र दो पुत्र ही हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव को एक पुत्री भी है जिनका नाम है मनसा देवी, जो अपने पिता की बेहद लाडली मानी जाती है। मनसा देवी को भगवान शिव ने नागलोक का साम्राज्य प्रदान किया है।

मां मनसा देवी के देश में कई जगह उनके प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहाँ मनोकामना पूर्ति के लिए उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है खुश होने पर भक्तों की इच्छा मात्र से मनसा देवी उनकी हर जरूरत पूरी कर देती हैं क्योंकि वह भक्तों के मन में निवास करती है।

मन में निवास करती है माँ मनसा

मनसा देवी के जन्म को लेकर यह मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती मानसरोवर में जल क्रीड़ा कर रहे थे तब दोनों का तेज इकट्ठा होकर कमल के एक पत्ते पर जमा हो गया जिसका संरक्षण करने के लिए वहाँ मौजूद पाँच सर्पिणियों ने इस तेज को अपनी कुंडली में लपेट कर किया। समय आने पर महादेव और जगदंबा का यह तेज एक कन्या के रूप में बदल गया।

शिव ने माँ मनसा को दिया नागलोक का साम्राज्य

बाद में जब मनसा देवी भगवान शिव और माता पार्वती के पास कैलाश पहुँचीं तो महादेव के गले में लटके नागराज वासुकि ने भगवान शिव से प्रार्थना कि मनसा देवी को नागलोक भेज दिया जाए. क्योंकि विश्व के प्रमुख अष्टनागों(अनंत, वासुकि, पद्य, महापद्य, तक्षक, कुलीर, कर्कोटक और शंख) की कोई बहन नहीं है.

भगवान शिव ने वासुकि की बात मानते हुए उन्हें नागलोक का साम्राज्य प्रदान किया। इस प्रकार मनसा देवी संपूर्ण नाग जाति की बहन और पुत्री मानी गईं और संपूर्ण नागजाति को उनके अधिकार में माना जाता है। कोई भी सर्प उनके आदेश को टाल नहीं सकता है।

मनसा देवी के पुत्र ने धरती पर सर्पों के अस्तित्व को बचाया

नाग जाति पर मनसा देवी का एक बड़ा अहसान यह भी है कि भगवान कृष्ण के भांजे परीक्षित को तक्षक नाग ने जब डंस लिया तो उनके बेटे जनमेजय ने सर्प यज्ञ कराया, जिसकी वजह से दुनिया से सर्प जाति के विलुप्त होने लगी। इस यज्ञ को मनसा देवी के बेटे आस्तीक ने बंद करा दिया जिसकी वजह से धरती पर सर्प जाति का अस्तित्व बचा।

देवी के एक हाथ में अमृत और एक हाथ में विष का कलश होता है

मनसा देवी का आसन हंस माना जाता है. उनके मुकुट और अंगरक्षक के तौर पर विशिष्ट सर्प उन्हें घेरे रहते हैं। उनके दो हाथों में अमृत भरा सफेद और विष भरा लाल कमल होता है, जिनके जरिए वो लोगों को उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करती हैं।

सर्प भय से मुक्ति के लिये देवी सात नामों का करें जाप

इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता। ये नाम इस प्रकार है जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी। हरिद्वार और चंडीगढ़ में मनसा देवी के विश्वप्रसिद्ध मंदिर है। भारत के अलग अलग हिस्सों में कई जगह सर्प मंदिर भी बनाए गए हैं।

Last updated: अगस्त 18th, 2020 by Arun Kumar
Arun Kumar
Bureau Chief, Jharia (Dhanbad, Jharkhand)
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