भारतीय राजनीति में महिलाओं को कब मिलेगा बराबरी का अधिकार ?

यह लेख विश्व महिला दिवस के अवसर पर भारतीय महिलाओं को समर्पित है।

यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता ।

अर्थात , जहाँ महिलाओं की पूजा की जाती है, वहाँ पर भगवान प्रसन्न होते हैं, और “जहाँ महिलाओं का सम्मान नहीं होता, उनका हर प्रयास विफल हो जाता है”

राजनीति में भारतीय महिलाओं की भागीदारी अपेक्षाकृत कम क्यों है?यह विषय मेरे दिमाग में कई बार कौंधता है कि जिस देश में लगभग 50% महिलायें हैं वहाँ राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व केवल 12 % के आस-पास ही क्यूँ है।

महिलाओं की राजनीति में भागीदारी का विषय वाकई चिंता का विषय है कि महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के मामले में भारत बाकी दुनिया से लगातार पिछड़ता जा रहा है। अगर महिलायेंं देश की आबादी का आधा हिस्सा हैं तो राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व इतना कम क्यों है? विडंबना यह है कि आजादी के 72 साल बीत जाने के बाद आज भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है। वाकई यह स्थिति चिंताजनक है। औरतें जीवन के हर क्षेत्र में आगे आकर अपनी क्षमता साबित कर रही हैं, मगर सियासत के लिए वे अहम नहीं हैं। राजनीति दल बस उन्हें फूलमाला पहनाने, गुलदस्ता भेंट करने, तालियाँ पीटने और नारे लगाने तक सीमित रखना चाहती हैं। वे उन्हें राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं देना चाहतीं। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में महिलाओं की भागीदारी संसद के दोनों सदनों में कुल 12 प्रतिशत है, वहीं देश की विभिन्न विधानसभाओं में उनकी हिस्सेदारी करीब 9 प्रतिशत है।

ऐसा देखा जाता है कि राजनीति में महिलायेंं आती है तो अधिकतर परिवारवाद की पंरपरा का चादर ओढ़कर आती है। राजनीति में महिलायेंँ आ रही है ठीक है लेकिन और भी महिलायेंँ है उनको भी हिस्सेदारी दीजिए वो भी तो महिला है।

महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण की व्यवस्था घोषणा कर देने से राजनीति दलों ने कितने महिला उम्मीदवार खड़े करने की हिम्मत दिखाई है? महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यसथा ला देने से महिला आरक्षण लागू नहीं हो जाती है। जब महिलाओं की राजनीतिक हिस्से में भागीदारी बराबर होंगी तब ही महिला आरक्षण पूर्ण रूप से सफल होगी नहीं तो क़िताब के पन्नों में बंद हो कर रह जाएगी या हम सभी महिला आरक्षण की व्यवस्था को पढ़ते रह जाएँगे बस इतना तक ही महिलाओं की आरक्षण व्यवस्था सीमित रहेंगी। इसलिए महिला आरक्षण के साथ-साथ राजनीति में हिस्सेदारी भी देना होगा।

कहीं न कहीं राजनीति में भारतीय महिलाओं की भागीदारी अपेक्षाकृत कम का विषय लैंगिक असमानता को दर्शाता है।भारतीय राजनीति में चुनाव के समय महिलाओं को महत्त्वपूर्ण माना जाता है उन से प्रचार, सभा को संबोधित सभी कराते है लेकिन उन्हें पावर शेयर नहीं किया जाता है सोचते है कि महिलायेंँ देश को नहीं चला पाएँगी। जब महिलायेंँ हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर अपनी पकड़ अच्छी बना रही है तो राजनीति में क्यूँ नहीं? ये हमारी गलत मानसिकता सोच के कारण होता है कि महिलायें देश को नहीं चला पाएंगे।आज महिलायेंँ अंतरिक्ष में पहुँच गई है। जहाँ से वो पूरी देश को महसूश कर सकती है लेकिन हमलोग अब भी सोचते है कि महिलायें राजनीति में न आए अगर आएंगे तो ये पुरुष के बराबर हो जाएँगे। जब हमलोग लैंगिक समानता की बात करते है तो राजनीति में भी लैंगिक समानता मिलना चाहिए।महिलाओं को संसद में आरक्षण के अधिकार की बात करते है लेकिन वास्तव में देखा नहीं जाता है।

राजनीत में महिलाओं को सिर्फ पद देने से महिला सशक्तिकरण नहीं हो जाती पदों के साथ-साथ देश का नेतृत्व भी दीजिए। आज भी महिला को कमजोर माना जाता है। कुछ लोग ऐसे हैं जो उसे चार दीवारी के बीच ही देखना चाहते है। ये नहीं सोचते है कि उसे वोट देकर जिताएगा कौन ? क्योंकि महिलाओं की संख्या 50% है। देश की महिलाओं को अगर राजनीति में भी सामान दर्जा मिले तो शायद देश को नई ऊंचाइयों पर जाने से कोई नहीं रोक सकता है।

राजनीति में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ाने के लिए कानूनी मजबूरी का सहारा लेना पड़ता है। इसी परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए 1996 में महिला आरक्षण बिल संसद में लाया गया था और इसमें यह प्रस्ताव किया गया था कि लोकसभा और विधानसभाओं की 33 फीसद सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जायेंगी। हालांकि महिला आरक्षण बिल में कुछ कमजोरियाँ थी लेकिन 22 साल बाद भी उसपर चर्चा न होना राजनीतिक दलों की मानसिकता तो दर्शाता ही है।संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत जैसे देशों में यदि महिलाओं की भागीदारी इसी तरह से कम रही तो लिंग असंतुलन को पूरा करने में 50 वर्ष से अधिक समय लगेंगे।

(इस लेख में महत्त्वपूर्ण तथ्य को सरकारी वेबसाइट से ली गई है। आकड़े कुछ उपर-नीचे हो सकते हैं  लेकिन जो इसमें राजनीति में महिलाओं की भागीदारी का विषय और उसके विचार को प्रस्तुत किया गया वो मेरे द्वारा किया गया है। )

– सागर प्रसाद (राजनीति विज्ञान का छात्र )

Last updated: मार्च 8th, 2019 by Sagar Prasad

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