तलाक-तलाक-तलाक.. एक साथ बोले तो तीन साल की सजा
ट्रिपल तलाक पर क्यों बरपा है हंगामा
तीन तलाक को लेकर देश में काफी हंगामा मचा हुआ है. खासकर मुस्लिम धर्म गुरु इसे लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साहित और नाराज दिख रहे है. क्योंकि सबसे बड़ा हमला उनकी दुकानदारी पर ही हुआ है. जबकि केंद्र सरकार द्वारा ट्रिपल तलाक पर लाये गए अध्यादेश पूरी तरह से इस्लामिक कानून को ध्यान में रखकर ही लाया गया है या यूँ कहे कि यह अध्यादेश शरियत के अनुसार है. लोकसभा से पारित अध्यादेश में साफ़ लिखा है कि एक साथ तीन तलाक गैरकानूनी है, जो इस्लाम और शरियत दोनों कहती है.
मतलब कि कोई भी शौहर अपनी बीबी को एक बार में तीन तलाक कहता है तो वह कानूनन जुर्म समझा जायेगा. जबकि शरियत के हिसाब से भी यही कानून लागु है कि एक साथ तीन तलाक देने से वह मान्य नहीं होगा. लेकिन मुस्लिम धर्म गुरुओ ने तीन तलाक मामले को इतना पेचीदा बना दिया था कि कोई भी, कभी भी, कही से भी, किसी भी माध्यम से तीन तलाक कह देता और अपनी शादीशुदा जिंदगी से आजाद हो जाता, लेकिन उसके पीछे उसकी पत्नी का क्या होगा इसकी जिम्मेवारी कोई लेने वाला और ना ही हाल पूछने वाला था.
धर्म के ठेकेदार भी इस फैसले में सहमती जताकर अपना पल्ला झाड़ लिया करते थे. आज जो ये मुस्लिम धर्म गुरु चिल्ला रहे है, ये खुद शरियत के खिलाफ जाकर उस पत्नी को कह देते थे कि हां तलाक हो गया. लेकिन आज यह कानून बन जाने से मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को राहत मिलेगी. मुस्लिम समुदाय को इस बात के लिए केंद्र सरकार को धन्यवाद देना चाहिए कि जो सदियों से उनके धर्म गुरु नहीं कर पाए, बल्कि अँधेरे में रखे रहा, उसे आज भारत सरकार ने कर दिया.
वाकई केंद्र सरकार और उच्चतम न्यायलय ने शरियत को बचाने का कार्य किया है और अब उन धर्मगुरूओ के बहकावे में ना आये. क्योंकि इस्लामिक किताबो में कहा गया कि यदि तुम नहीं करोगे तो खुदा किसी के भी जरिये अपना काम करवा सकता है.
एक साथ ट्रिपल तलाक कई मुस्लिम देशो में अमान्य
गौरतलब है कि ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पिछले वर्ष 22 अगस्त 2017 को आया था और केंद्र सरकार द्वारा भी इसे क़ानूनी जामा पहनाने के लिए लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन राज्यसभा में मामला अटक गया. उसके बाद 19 सितम्बर 2018 को लोकसभा में इस अध्यादेश को लाया गया और केन्द्रीय मंत्री मंडल ने सहमती जताई, जिसके बाद इस अध्यादेश पर राष्ट्रीयपति ने भी मुहर लगा दी और यह कानून बन गया.
हालाँकि देश को आजाद हुए 71 वर्ष हो गए और यदि पिछली सरकारों ने इस ओर ध्यान दिया होता तो आज कई मुस्लिम महिलाओं के घर-संसार मजहब के नाम पर कुर्बान नहीं हुए होते. जबकि विश्व के 22 मुस्लिम देशो में एक साथ तीन तलाक को बहुत पहले ही गैरकानूनी करार दिया जा चुका है. यहाँ तक कि पाकिस्तान जैसे कट्टर मुस्लिम देश भी 1956 में ही एक साथ तीन तलाक को अमान्य कर दिया है. तो फिर भारत देश क्यों पीछे रह गया था. इससे साफ जाहिर है कि यहाँ का राजनीति पूरी तरह से धर्म-मजहब में मिश्रित है.
क्या कहता बिल
“द” मुस्लिम वीमेन (प्रोटेक्शन ऑफ़ राईंट ऑफ़ मैरिज) बिल-2017 नामक अध्यादेश में साफ़ तौर पर कहा गया है कि अब एक बार में तीन तलाक कहना गैरकानूनी होगा, और जो ऐसा करेगा उसे तीन साल की सज़ा का प्रावधान है, बिल के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी को बोलकर, लिखकर या किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से तीन तलाक नहीं दे सकता है,
इस अध्यादेश में पीड़ित महिला और उसपर आश्रित बच्चों के लिए भत्ते का प्रावधान किया गया है, जो न्यायधीश तय करेंगे, यदि बच्चे नाबालिग हैं, तो वे अपनी माँ के पास ही रहेंगे, पुलिस में शिकायत सिर्फ पीड़ित महिला,और उसके रिश्तेदार ही कर पाएंगे, इसके अलावा केस दर्ज होने के बावजूद पत्नी की पहल पर समझौता भी हो सकता है,
क्योंकि बहुत बार लोग गुस्से में तलाक दे देते हैं और फिर पछताते हैं, हालांकि ये समझौता मजिस्ट्रेट के सामने उचित शर्तों के साथ होगा, इसमें ज़मानत का भी प्रावधान है और न्यायधीश ज़मानत दे सकते है. लेकिन पीड़िता का का पक्ष रखने के बाद.
हालांकि इसकी कुछ विसंगतियाँ भी है, कुछ महिलायें इसका गलत इस्तेमाल भी कर सकती है. जैसा की दहेज प्रथा कानून को लेकर देखा गया है.

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