हड़ताल के खिलाफ इस बार तृणमूल कॉंग्रेस नहीं उतरी सड़क पर , मौन समर्थन का दिखा असर
तृणमूल कॉंग्रेस का शुरू से ही सिद्धान्त रहा था कि वो हड़ताल का विरोध करेगी । इससे पहले जितने भी हड़ताल हुए सभी का तृणमूल कॉंग्रेस ने विरोध किया था जिस कारण बहुत अधिक असरदार हड़ताल कम से कम शिल्पांचल में देखने को नहीं मिला था लेकिन इस बार 26 नवंबर को माकपा द्वारा बुलाये गए हड़ताल का असर दिखा । हालांकि कोलियारियों में उत्पादन पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा । कोलियरी में तृणमूल ने हड़ताल के विरोध में सभा भी की लेकिन बस परिचालन पूरी तरह ठप्प रहने से बाजार पर असर दिखा । अधिकांश दुकाने बंद ही दिखी और बाजार में चहलकदमी कम देखी गयी ।
बसों का परिचालन पूरी तरह से ठप्प रहने के कारण लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा । राज्य सरकार की ओर से कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं की गयी थी और न ही कोई दिशा निर्देश जारी किया गया । स्टेट बसें सड़क पर दिखी लेकिन वे अपने सामान्य रूट एवं समय तालिका के अनुसार ही चल रही थी । हड़ताल से निपटने के लिए स्टेट बस की ओर से कोई पहल नहीं दिखी ।
इससे पहले के हड़ताल में तृणमूल कॉंग्रेस बसें चलवाने और दुकान खुलवाने के लिए सड़क पर उतरती थी लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं दिखा मानों तृणमूल कॉंग्रेस ने इस हड़ताल को मौन समर्थन दे दिया हो ।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर तृणमूल कॉंग्रेस अपने सिद्धान्त से पीछे क्यों हटी ? क्या तृणमूल कॉंग्रेस माकपा के प्रति नरम हो रही है । क्या विधान सभा चुनाव में कोई सांठगांठ हो सकती है ? हालांकि इस पर कहीं से कोई बयान नहीं आया है लेकिन इस बार हड़ताल के प्रति लगभग मौन रहकर तृणमूल कॉंग्रेस ने कुछ संकेत जरूर दिये हैं ।
बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा कि बढ़त ने प0 बंगाल में तृणमूल कॉंग्रेस को परेशानी में डाल दिया है । उसपर पाँच सीटें लाकर पूरे देश में सबको चौंकाने वाली असदुद्दीन ओवैसी की की पार्टी एआईएमआईएम ने बंगाल में भी चुनाव लड़ने की घोषणा करके मुश्किलों को और भी बढ़ा दिया है । अल्पसंख्यक वोटो के सहारे चुनाव लड़ने वाली पार्टियों के माथे पर बल पड़ गया है । प0 बंगाल में विधानसभा चुनाव के लिए समीकरण बदलने लगे हैं और आगे कई बड़े उलट फेर देखने को मिल सकते हैं ।
2019 लोकसभा चुनाव के नतीजों ने तृणमूल कॉंग्रेस को माकपा के प्रति नरम बना दिया ।
तृणमूल कॉंग्रेस ने हिसाब लगाकर देखा कि उसका वोट प्रतिशत 2019 में भी बरकरार था लेकिन लेफ्ट पार्टियों का वोट प्रतिशत भाजपा की ओर शिफ्ट हो जाने से प0 बंगाल में भाजपा को 18 सीटें मिली । तभी तृणमूल कॉंग्रेस वाम के प्रति नरम हो गयी है और तृणमूल कॉंग्रेस की अब कोशिश है कि वाम अपना खोया जनाधार फिर से वापस पा ले जिससे भाजपा को रोका जा सके ।
कुल मिलाकर देखें तो प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से तृणमूल कॉंग्रेस अब माकपा पर निर्भर हो गयी है और माकपा के सहारे भाजपा को रोकना चाहती है ।

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