हाइकु कवि नलिनीकान्त को दी गयी श्रद्धांजलि,
बीते शनिवार 11 अगस्त को अंडाल हिन्दू हिन्दी प्राथमिक विद्यालय में हाइकु कवि स्व0 नलिनीकान्त की याद में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गयी ।
सभा का संचालन शिक्षक सनत नन्दन ने किया । इस श्रद्धांजलि सभा में उनके ज्येष्ठ पुत्र प्रकाश तिवारी , उनके नाती-पोते सहित अंडाल कई शिक्षक शामिल हुये जिनमें मुख्य रूप से शिक्षक डीएन गोस्वामी, विनोद पाण्डेय, डीडी राय , विजय ठाकुर, विजय आर्या, रमाशंकर लाल , मो0 अख्तर हुसैन एवं अन्य शामिल थे । सभा का समापन विद्यालय के शिक्षक प्रभारी रंजीत साव ने “जाने कहाँ गए वो दिन …….” गीत गाकर किया ।

95 वर्ष की आयु में अंडाल स्थित अपने निवास में 2 अगस्त 2019 को उन्होने शरीर त्याग किया । उनका जन्म संथाल परगना, झारखंड के छोटे से गाँव बंदनवार में हुआ था जो उस वक्त बिहार राज्य का ही हिस्सा था ।

राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हाइकु कवि नलिनीकान्त प० बर्धमान जिले के अंडाल में एक शिक्षक के रूप में कार्यरत थे । अंडाल ही उनकी कर्म भूमि थी और यहीं से वे जीवन के आखिरी समय तक हाइकु कविता लिखते रहे । उन्होने अपने जीवनकाल में काव्य संग्रह, फुटकर काव्य , उपन्यास सहित कई साहित्यिक रचनाएँ की है जो आने वाले समय में कालजयी साबित होंगी ।

हमारे आस-पास की शायद ही कोई ऐसी विषय हो जिस पर नलिनीकान्त जी ने चार पंक्तियाँ न लिखी हों । समाज, राजनीति, त्योहार, धर्म, उत्सव, बाल-सुलभ, प्रकृति चित्रण, हर्ष, अवसाद सहित अनगिनत विषय रहे हैं जिनपर नलिनीकान्त जी ने हाइकु कविता लिखी है ।
उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकें –
“भैरवी (उपन्यास) – 1962 “
“हेडमास्टर साहब का बरगद (1964)”
“दिगंत की किरणें (1967)”
“गुप्त गोदावरी (1969)”
“आईना न टूटा होता तो (1993)”
“माटी की गंध मुझे लौटा दो (1994)”
“बादलों के उस पार (1997)”
“ज्योति विहग (2000)”
“सर्वमंगला (2001)”
“हाइकु शब्द छवि (2004)”
“हाइकु गीत वीणा (2005)”
“हाइकु (जापानी कविता), प्रबंध काव्य (2010)’
“हाइकु ऋचायें (2011)”
“उत्तराखंड में महाप्रलय (2014)”
उन्होने वर्ष 1965 से “कविता श्री ” नामक साहित्यिक पत्रिका भी चलाई जिसमें देश के प्रसिद्ध हाइकु कवियों कि कविता प्रकाशित होती थी । यह पत्रिका उनके आखिरी समय तक प्रकाशित होती रही ।
Pankaj Chandravancee
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