16 फरवरी को होगी विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा, छात्र-छात्राओं में दिखा उत्साह, बाजारों में आई रौनक
सभी ऋतुओं के अपने रंग और अपना राग है, फिर भी बसंत के ठाठ कुछ निराले हैं। राजधानी रांची में आप अगर घूमने फिरने निकले तो देखकर हैरान रह जाएँगे के इस वक्त बसंत उत्सव के आगमन के लिए प्रकृति ने सोलह श्रृंगार किए हैं, पेड़ों से पत्ते झड़ रहे हैं और नई कोंपलों के लिए रास्ता हम वार हो रहा है, फिजा में आम के मंजर की भीनी-भीनी खुशबू और कोयल की कूक एक समा बांध रही है। बसंत प्रेम की ऋतु है, और इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। विद्या का अर्थ यदि जानने योग्य है तो वह जानने योग्य प्रेम ही तो है, बंगाली पंचांग के अनुसार माघ महीने की 1 तारीख से ही बसंत की शुरूआत हो जाती है। वहीं हिंदी पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी से बसंत मांस की शुरुआत होती है, और फिर बसंत उत्सव होली तक मनाया जाता है।
सभी ऋतुओं के अपने-अपने रंग और अपना-अपना राग होता है, फिर भी बसंत ऋतु के ठाठ कुछ निराले हैं. यह प्रेम की ऋतु है। मधुर श्रृंगार की बेला बसंत में ही आती है. मुक्त समीकरण में मादकता को उड़ने लगती है और आए हुए आम की शाखा पर कोकिल के स्वरों में डूबने के लिए कामदेव फूलों के कोमल तीर चलाते हुए चले आते हैं, वसंत ऋतुओं का राजा है, जो दूसरी ऋतु का भी बराबर ख्याल रखता है. रचनाधर्मिता से जुड़े हुए लोग इस ऋतु से बहुत प्रभावित होते हैं। चित्रकार नई-नई कल्पनाएं कैनवास पर उतारता है, तो संगीतकार बसंत राग आकर बसंत का स्वागत करता है, इंसान तो इंसान जानवर भी प्रकृति के श्रृंगार के दृश्य से अभिभूत हो जाता है. हवा में हर तरफ सुगंध ही सुगंध है. पुराने पत्ते पीले पड़ कर जब नीचे गिरते हैं, तो हवा में एक सर सर आहट की एक सनसनीखेज आवाज उभरती है।
इस बार 16 फरवरी को बसंत पंचमी है। माघ मांस के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। ये दिन ज्ञान, विद्या, बुद्धिमता, कला और संस्कृति की देवी माँ सरस्वती को समर्पित होती है।

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