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आज़ादी के बाद बनी ‘मैथन याच क्लब’ की अस्तित्व विलुप्त होने की कगार पर

कल्यानेश्वरी(गुलज़ार खान) अंग्रेजी हुकूमत समाप्ति के महज कुछ वर्ष बाद ही बंगाल-झारखंड की सीमा पर स्थित मैथन की झोली में मैथन बांध(डीवीसी) परियोजना की नींव पड़ी, नई नवेली दुल्हन की तरह सजी इस डैम का वर्ष 1957 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मैथन बांध और पनबिजली परियोजना का उदघाटन किया था।

प्राकृतिक की गोद मे बसा मैथन डैम की मनोरम पहाड़ियों और जलाशय के निकट में भी एक नीव पड़ी जिसका नाम “मैथन याच क्लब” था।

हालांकि इस क्लब की स्थापना विदेशी मूल के कर्मचारियों की अगुवाई में की गई थी। बताया जाता है कि आसनसोल स्थित बर्न स्टेंडर्ड एवं इस्को कंपनी के कार्यरत अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी एवं रूस समेत अन्य देश से आये अभियंता समेत वरिष्ठ अधिकारियों की नज़र मैथन की शांत और सुंदर काया पर पड़ी, मौज मस्ती के लिए यह स्थान किसी जन्नत से कम नहीं थी।

योजना बनते ही मैथन डैम की पहाड़ी एवं जलाशय के निकट मैथन याच क्लब के निर्माण किया गया। साथ ही यहाँ पहुँचने के लिए पहाड़ियों को काटकर रास्ता बनाया गया।

बताया जाता है कि उस समय इस क्लब में दुनियाभर की सभी सुख सुविधा उपलब्ध हुआ करती थी, ब्रिटिश रेस्तरां से लेकर बार तक कि व्यवस्था थी।

याच क्लब के मैन हाल को काँच से बनाया गया था। पूरा क्षेत्र बाहरी दुनिया से बिलकुल अनजान दूर और सुनसान स्थान पर आज भी विराजमान है।  इस स्थान पर किसी भी बाहरी लोगों का प्रवेश निषेध हुआ करती थी।

बताया जाता है कि देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत विदेशी मूल के समृद्ध और ओहदेदार कर्मचारियों की इस क्लब में जुटान हुआ करता था, जिसके बाद मैथन डैम की जलाशय में समय समय पर याच कंपीटिशन भी आयोजित  किया जाता था।

बाकायदा आज भी यहाँ की जर्जर पड़ी गैराज में कई पुरानी नाव और बोट बीते दिनों की साक्षी है। जानकर बतातें है कि धीरे धीरे कई प्रतिष्ठान बंद होने एवं इकाईयों में विदेशी कर्मचारियों की भागीदारी कम होने के बाद इस क्लब की रौनक समाप्त हो गई।

आज भी मैथन में स्थित इस जगह को बहुत कम लोग ही जानते हैं।

यहाँ पर कार्यरत केयर टेकर सुधीर मिर्धा अब बुजुर्ग हो चुके है, उनके सीनियर रहे केयर टेकर अभिमन्यु मिर्धा की मृत्यु हो चुकी है वे वर्ष 1961 से यहाँ कार्यरत थे।

पुरानी यादों को बयां करते हुए सुधीर मिर्धा बतातें है की में वर्ष 1962 में यहाँ आया था तब यहाँ की दुनियां बिलकुल अलग थी, गोरे लोगों की चहलकदमी और रईसों की पार्टियों का तांता लगा रहता था।

वर्ष 1971/72 मैं मैथन याच क्लब की स्वामित्व मैकनली भारत इंजीनियरिंग के पास चली गई। अब 2013 के बाद से इस क्लब पर डीवीसी की स्वामित्व है। बीतते वर्षो के साथ यहाँ की चकाचौंध फीकी पड़ती गई।

इस धरोहर की कई मालिक बदली किन्तु हमलोग आज भी इस धरोहर की रक्षा में तैनात है। अभिमन्यु मिर्धा के मौत के बाद से ही उनके दो पुत्र बबलू मिर्धा और डब्लू मिर्धा अपने परिवार के साथ यहाँ रहते है, मेरा भी परिवार यही है।

याच क्लब की कई मालिक तो बदल गई किंतु हमलोगों का मालिक कौन है पता नही। हमलोग आज भी यहाँ जंगल के बीच खंडहर में जंगली की तरह जीवन व्यतीत कर रहें हैं। हमलोगों की बेहतर जीवन और रोजगार के लिए किसी ने कुछ नही किया।

इधर बीते दिनों डीवीसी मैथन प्रबंधन द्वारा मैथन याच क्लब पर थोड़ा ध्यान जरुर दिया गया है। डीवीसी द्वारा याच क्लब जाने के लिए चौड़ी पीसीसी सड़क का निर्माण कराया जा रहा है, वही जर्जर क्लब का भी रखरखाव और मरम्मत कार्य किया जा रहा है।

विगत दिनों डीवीसी के तत्कालीन चेयरमैन ने भी इस स्थान का निरीक्षण किया जिससे पुनः एक बार फिर से यहाँ की रौनक लौटने की क्यास लगाई जा रही है।

Last updated: दिसम्बर 7th, 2024 by Guljar Khan
Guljar Khan
Correspondent : Salanpur/Chittranjan/Barabani (Pashchim Bardhman: West Bengal)
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