बाराबनी में सिलिकोसिस की पहली दस्तक: सालानपुर के साथ अब बाराबनी में भी मरीज की पुष्टि, अवैध क्रेशरों पर सवाल
सालानपुर / बाराबनी: सालानपुर प्रखंड में पहले से ही तेजी से फैल रहे घातक रोग सिलिकोसिस ने अब पड़ोसी बाराबनी प्रखंड में भी दस्तक दे दी है, जिससे पूरे क्षेत्र में निवासियों की चिंताएं और भय बढ़ गया है। गुरुवार को हुई सिलिकोसिस मेडिकल बोर्ड की बैठक में यह खुलासा हुआ कि बाराबनी प्रखंड में एक और सालानपुर प्रखंड में दो श्रमिकों में सिलिकोसिस की पुष्टि हुई है।
बाराबनी में पहला मामला
बाराबनी प्रखंड में सिलिकोसिस का यह पहला पुष्ट मामला सामने आया है। अभिरुप मिनरल्स के ऑपरेटर श्रमिक, एथोड़ा निवासी सरजीत मंडल में इस बीमारी की पुष्टि हुई है, जिसने प्रखंड में हड़कंप मचा दिया है।
सालानपुर में भी दो नए मामलों की पुष्टि हुई है:
कांसकुली इलाके के आदित्या मंडल के पत्थर क्रेशर के श्रमिक, सियाकुलबेड़िया निवासी हराधन बाउरी।
अलकुसा डीएमसी नामक पत्थर क्रेशर के श्रमिक, बोलकुंडा फुलबेड़िया ग्रामपंचायत निवासी सरवन बाउरी।
प्रदूषण और अवैध क्रेशरों पर गंभीर सवाल
यह पुष्टि ऐसे समय में हुई है जब सालानपुर में बीते साल से अब तक सिलिकोसिस के मरीजों की बढ़ती संख्या और इससे हो रही मौतों के कारण इलाके में प्रदूषण और पत्थर क्रेशर के संचालन पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह आरोप लगाया गया है कि सालानपुर और बाराबनी दोनों में चल रहे अवैध पत्थर क्रेशर सिलिकोसिस को दावत दे रहे हैं।
गरीब श्रमिक इस बीमारी का शिकार बन रहे हैं, और स्थानीय निवासियों का आरोप है कि अवैध क्रेशरों की पहचान और उन पर कार्रवाई की मांग के बावजूद प्रशासन केवल जांच के नाम पर खानापूर्ति कर मामले को रफा-दफा कर रहा है।
श्रमिकों के जीवन से खिलवाड़ और पलायन का डर
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि कई क्रेशर और सिरेमिक कारखाने नियमों की अनदेखी कर खुले में संचालित हो रहे हैं। सबसे गंभीर आरोप यह है कि श्रमिकों के जीवन को दांव पर लगाकर कार्य कराया जा रहा है। स्थानीय श्रमिकों की जगह जानबूझकर बिहार एवं झारखंड से श्रमिकों को मंगवा कर काम कराया जा रहा है, ताकि बीमार होने पर श्रमिक अपने घर चले जाएं और मामला दब जाए।
स्थानीय निवासियों और जनप्रतिनिधियों का सवाल है कि प्रशासन, जिसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, फैक्ट्री डाइरेक्टोरेट, श्रम विभाग, स्थानीय पुलिस, प्रखंड प्रशासन एवं जिला प्रशासन शामिल हैं, श्रमिकों के जीवन के मूल्य को कब समझेंगे और इस ‘मौत’ पर कब अंकुश लगाएंगे?

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