खतरनाक है यह चुप्पी

 

बीते 1 जुलाई को बसिरहाट और बदुरिया से भड़की सांप्रदायिक हिंसा पर करीब -करीब काबू पा लिया गया है.

हालाँकि बीते गुरूवार को एक बार फिर से हिंसा भड़क गयी थी जिसमें एक ६५ वर्षीय वृद्ध की मौत हो गयी.

स्थिति अब भी तनावपूर्ण ही बनी हुयी है.

लेकिन तीन-चार दिनों तक चली सांप्रदायिक हिंसा ने पश्चिम बंगाल को भारत के उन सभी राज्यों के बराबर लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ से गौ रक्षा के नाम पर हिंसा की ख़बरें आ रही है.

सरकार और पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े किये गए.

लेकिन इस पूरे प्रकरण ने आज हमारे समाज के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारा बंगाल भी अबउसी  दिशा में चल पड़ा है.

जहाँ भाईचारे के स्थान पर दिलों में नफरत  पनपने लगी है.

और यह केवल एक तरफ से नहीं बल्कि दोनों तरफ से हो रहा है.


6 जुलाई को पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा किया गया ट्वीट

 


हिन्दुस्तान धर्म निरपेक्ष नहीं एक धार्मिक देश है

आज से करीब दो साल पहले ही मैंने एक लेख में इस बात का जिक्र किया था कि बंगाल बहुत तेजी से ध्रुवीकरण की ओर जा रहा है.

सत्ताधारी दल इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराते हैं.

लेकिन देश के माहौल में जो बदलाव आया है उसके लिए तथाकथित सेक्युलर पार्टियाँ ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार है.

उनलोगों ने एक  गलत सिद्धांत देश के ऊपर लादने की कोशिश की कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है.

जबकि वास्तविकता यह है कि भारत के लोग धार्मिक प्रवृत्ति के हैं इसलिए इसे एक  धार्मिक देश  होना चाहिए.

यहाँ के लोगों के लिए धर्म और उसका पालन बहुत अहमियत रखता है.

सच को छुपाने से अफवाह फैलता है

हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है कि हमारे देश के बुद्धिजीवी और पत्रकार तब तक खुलकर बात नहीं रखते हैं जब तक कोई बहुत बड़ी घटना न हो जाये.

और हर बार भाजपा तथा आर एस एस को जिम्मेदार ठहरा कर बच निकलना चाहते हैं.

अपने बंगाल को ही ले लें तो यहाँ की सरकार की यह पूरी कोशिश रहती है कि साम्रदायिक तनाव की घटनाएं मीडिया में न आये.

बशीरहाट की घटना तीन दिन बाद सुर्ख़ियों में आई.

धुलागढ़ के मामले में तो खबर दिखाने के कारण मुकदमा भी कर दिया गया था  जिसे बाद में उच्च अदालत ने निरस्त कर दिया.

मेरे हिसाब से ऐसा करना  गलत है.

यदि कोई दंगा करता है या धार्मिक भावना भड़काता है तो तो उसे छुपाने की नहीं  बल्कि उस पर चर्चा करने  की जरुरत होती है.

अन्यथा अफवाह फ़ैलाने वाले अपने-अपने तरीके से घटनाओं की व्याख्या करते हैं और इससे धार्मिक भावनाएं और ज्यादा भड़कती है.

“आँख बंद कर लेने से कभी रात नहीं होती “

मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि “आँख बंद कर लेने से कभी रात नहीं होती .

यदि समस्याएं हैं तो आँख खोलकर उसका सामना करना होगा.

खुलकर आलोचना करनी होगी.

चुप रहने से दिल की दूरियां मिटती नहीं बल्कि बढती है.

तुष्टिकरण नीति है असली जिम्मेदार

विभिन्न राज्य सरकारों की तुष्टिकरण नीति  ने भी देश का माहौल खराब किया है.

हालाँकि मुस्लिम तुष्टिकरण निति से मुस्लिमों को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ .

पर इस नीति  ने देश की बहुसंख्यक आबादी में असुरक्षा की भावना को जन्म दे दिया.

जिससे धर्म की राजनीति करने वालों को बैठे-बिठाये अवसर मिलते रहे, वो कहते हैं न कि हिंग लगे न फिटकिरी और रंग होय चोक्खा .

सभी राज्य सरकारों तथा तथाकथित सेक्युलर पार्टियों को ये बात समझनी होगी कि अल्पसंख्यक की जितनी अधिक तुष्टिकरण करेंगे  बहुसंखयक उतना अधिक असुरक्षित महसूस करेंगे.

इससे दो समुदायों में दूरियां घटने के बजाय बढ़ेगी.

जब गुजरात दंगा हुआ था तब तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपायी ने कहा था कि सभी पार्टियों ने दंगा पीड़ितों के लिए जितनी हमदर्दी दिखाई उसका आधा भी यदि गोधरा में ट्रेन में जिन्दा जलाए गए कार सेवकों के प्रति दिखाते तो शायद गुजरात दंगा होता ही नहीं.

उस वक्त की सभी पार्टियाँ एवं सरकारें यही साबित करने में लगी रही कि ट्रेन को जलाया नहीं गया था बल्कि यह एक हादसा था.

जबकि गोधरा में ट्रेन जलाने वाले कई आरोपियों को सजा दी जा चुकी है.

कहने का तात्पर्य यह है कि जब आप सच को छुपाने की कोशिश करेंगे तो झूठ फैलेगा, नफरत फैलेगा  जो और भी ज्यादा नुकसानदेह होगा.

मुस्लिम हितैषी ही मुस्लिमों के असली दुश्मन

हमारे देश के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों  की एक आदत बन गयी है कि जब किसी मुस्लिम  के साथ कोई घटना होती है तो खूब हाय तौबा मचाते है

लेकिन जब किसी हिन्दू के साथ घटना होती है तो चुप्पी साध लेते है.

इससे समाज के बहुसंख्यक वर्ग में गलत सन्देश जाता है.

अल्प संख्यक समुदाय को ये समझना होगा कि हिन्दू उसके दुश्मन नहीं है

बल्कि उनके दुश्मन वे लोग हैं जो उनके साथ जरूरत से ज्यादा हमदर्दी दिखाने का नाटक करते है.

उनके दुश्मन वे लोग है जो उनकी गलतियाँ पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं.

उनके दुश्मन वे लोग हैं जो उनके हक़ के लिए लड़ने का ढोंग करते हैं.

“शरिया ” के हिसाब से नहीं चलेगा देश

जब भी देश में कहीं इस्लाम या पैगम्बर के खिलाफ कोई टिप्पणी का मामला आता है  सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो जाती है और सब फांसी  की सजा की मांग करने लगते हैं.

ऐसे लोगों को  यह भी समझना होगा कि भारत शरिया कानून के हिसाब से नहीं चलेगा.

पैगम्बर और मक्का पर आपत्तिजनक पोस्ट करने वाला बशीरहाट का वह लड़का निस्संदेह दोषी है पर उसे शरिया के अनुसार फांसी नहीं दी जा सकती है.

उसे सजा भारतीय कानून के हिसाब से ही मिलेगी.

यदि वह नाबालिग है तो नाबालिग कानून के हिसाब से ही उसे  सुधार के लिए रखा जाएगा.

हिन्दू समाज भी है भुक्तभोगी

धार्मिक टिप्पणी का शिकार हिन्दू समाज भी है.

एम्.एम् हुसैन से लेकर अस्ददुद्दीन ओवैसी जैसे कई नाम हैं जिसने समय-समय पर हिन्दू-देवीताओं पर आपत्तिजनक विचार दिए.

हिन्दू समाज से भी विरोध उठा. हंगामा  भी हुआ.

लेकिन फांसी की सजा की मांग  नहीं की गई.

राम, कृष्ण और शिव पर भी तरह-तरह  की आलोचनाएँ होती है पर हिन्दू समाज उसके लिए फांसी की सजा नहीं मांगता है.

तीखी प्रतिक्रिया से घटनाएँ रूकती नहीं बल्कि बढ़ जाती है.

आपने देखा होगा कि मोहल्ले में किसी एक बच्चे को सभी बच्चे मिलकर खूब चिढाते हैं.

बच्चा और उसके माँ-बाप लड़ाई करते-करते थक जाते हैं लेकिन बाकि बच्चे चिढाने की आदत से बाज नहीं आते है.

तब उनको एक आखिरी उपाय सूझता है कि सबको नजरंदाज कर दो.

यह तरीका काम कर जाता है.

जैसे ही आप किसी के आलोचना को नजरअंदाज करने लगते हैं वो आलोचना  करना भी  बंद कर देता है.

हिन्दुस्तान में न हिन्दू खतरे में है और न मुस्लिम

जब हम एक साथ रहते हैं तो लड़ाई- झगड़े तो होंगे ही .

यह एक सामान्य बात है और प्राकृतिक भी.

जब एक माता-पिता की संतानें  पूरा जीवन बिना लड़ाई किये नहीं रह सकते हैं तो फिर

ये सोचना बिलकुल बेवकूफी है कि दो समुदायों के बीच कभी झगड़ा नहीं होगा.

लेकिन हर बात को धार्मिक रंग देकर उसमें कूद जाने से समस्या कभी भी घटेगी नहीं बल्कि बढ़ेगी.

अपराधी को अपराधी समझें , हिन्दू-मुस्लिम नहीं

चाहे अखलाक की हत्या हो या जुनैद की या बसिरहाट के कर्तिक घोष की , जो अपराधी है वो सजा का हकदार है और सजा उसे कानून के हिसाब से मिलनी चाहिए भीड़ के हिसाब से नहीं.

यदि कोई गौ तस्करी करता है तो वो कानून का दोषी है और जिस राज्य में यह अवैध है वहां कानून के हिसाब से सजा मिलनी चाहिए.

अपनी आने वाली पीढ़ी को ख़राब कर लेंगे हम

यदि कोई कानून से बच जाता है तो इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि उसे भीड़  सजा दें .

ऐसा करके हम एक ऐसी नस्ल को तैयार करेंगे जो हर फैसले भीड़ के हिसाब से लेगा.

उस भीड़ का फायदा कुछ लोग उठाएंगे और भीड़तंत्र का हिस्सा बने लोग शोषण का शिकार हो जायेंगे.

भीड़तंत्र से अवसरवादियों को मौका मिलता है

बशीरहाट के मामले में वहां के लोगों का कहना है कि बंगलादेशी घुसपैठिये ने हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया.

ये बात सही भी हो सकती है लेकिन वहां के लोगों ने भीड़ जुटाने के बजाय कानून का सहारा लिया होता तो कोई उनका लाभ नहीं उठा पाता और इतनी बड़ी घटना न घटती .

– पंकज चंद्रवंशी (प्रधान संपादक ) – मंडे मोर्निंग

Last updated: अक्टूबर 19th, 2017 by Pankaj Chandravancee

Pankaj Chandravancee
Chief Editor (Monday Morning)
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