मानसिक तनाव से प्रति 40 सेकेण्ड में एक व्यक्ति कर रहा है आत्महत्या
मनुष्य का जीवन अनमोल है, किन्तु दुर्भाग्यवशमानसिक तनाव से प्रति 40 सेकेण्ड में एक व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है,वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अकड़े के अनुसार विश्व भर में हर साल 8 लाख लोग आत्महत्या का जीवन समाप्त कर रहे है ।
उक्त बातें शनिवार को रूपनारायणपुर में आयोजित मुफ्त चिकित्सा शिविर में न्यूरो साइकेट्रिस्ट डॉ० डी साहा ने कही. आधुनिक चकाचौंध, भाग दोड़ की जीवन और आपाधापी में आज लोग सेहत को नज़र अंदाज कर रहे है. एक शोध के अनुसार भारत के 14% लोग मानसिक रोग से ग्रसित है।
मानसिक रोग के कारण आत्महत्या की दर दूसरे देशों की अपेक्षा भारत के युवाओं में अधिक है, परन्तु विडम्बना यह है कि आज भी यहाँ सामाजिक बहिष्कार तथा अपमान के डर से 10 में से 1 लोग ही मानसिक चिकित्सा के लिए सामने आते है, क्योंकि कही लोग उन्हें पागल करार कर उनका सामाजिक बहिष्कार ना कर दे. चुकी मानसिक रोग कोई श्राप या अभिशाप नहीं है, यह रोग भी दूसरी रोगों की तरह ही है जिसका सही समय पर इलाज एवं काउंसिलिंग द्वारा निदान संभव है।
उन्होंने अभिभावकों को सचेत करते हुए कहा कि अपने बच्चों की तुलना किसी तेज़ बच्चे से बिल्कुल न करे,और न ही उसे निचा दिखाए आपके इस प्रयोग से बच्चे मानसिक रोग के शिकार हो जाते है,फलस्वरूप आज के युवा वर्ग आत्महत्या को ही अंतिम विकल्प मानने लगे है।
उन्होंने कहा कि डर की भावना, पारिवारिक कलह, चिड़चिड़ापन, अकारण क्रोध, आत्महत्या विचार, हीन भावना, खुद में बडबड़ाना, अकारण हँसनाया रोना, अत्यधिक संदेह करना, झूठ बोलना आदि मानसिक रोग के लक्षण हो सकते है,इसे कभी नजर अंदाज नहीं करें, तत्काल चिकित्सक की परामर्श लेना चाहिए ।
उन्होंने कहा क्रिमिनल मानसिकता और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने वाले लोग भी एक प्रकार के मानसिक रोग से ग्रस्त है, इस प्रकार की कोई भी प्रवृति अपने बच्चों में दिखाई देते ही आप मनोचिकित्सक से संपर्क करें ।
उन्होंने पबजी तथा अन्य गेम के कारण आत्महत्या के बारे में कहा किसी भी चीज आवश्यकता से अधिक खतरनाक होती है, गेम में निर्धारित लक्ष्य बच्चों को चिडचिडा बना देती है, और उन्हें मानसिक बीमार कर देता है, फलस्वरूप गेम में सफलता और असफलता उन्हें आत्महत्या की चौखट तक पहुँचा देती है । किन्तु हर गम खेलने वाला ऐसा नहीं करता है । सुबह शाम और रात रात भर गेम एडिक्ट होना आपको मानसिक रोगी बना सकता है ।
उन्होंने कहा कि वे स्वयं इन सभी समस्याओं के निदान के लिए सोशल मिडिया पर डॉ.डी साहा न्यूरो साइकेट्रिस्ट के नाम से अभियान चला रहे है, जिससे कुछ लोग सचेत होकर अपने परिवार तथा बच्चों को सुरक्षित कर सके ।
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