मित्रता हर रिश्ते की नींव होती है

रक्षा बंधन

मित्रता  हर रिश्ते की नींव होती है

हमारे जीवन का कोई भी ऐसा रिश्ता नहीं है जो मित्रता के निभाई जा सकती है।

माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, पिता-पुत्र, माँ – बेटा, शिक्षक – छात्र  चाहे किसी भी रिश्ते का नाम लें

बिना मित्रता के सब अधूरा है।

यह सबसे आसान रिश्ता है ….

हमारे जीवन का सबसे आसान रिश्ता “मित्रता” ही है।

ट्रेन में सफर कर रहे हैं या बस स्टॉप पर खड़े है

हम भारतीय हर जगह मित्र बना लेते हैं।

मित्र बनाना जितना आसान है उसे छोड़ना भी उतना ही आसान है।

और सबसे कठिन भी ……

बात जब मित्रता निभाने की आती है तो यह सबसे कठिन रिश्ता बन जाता है।

क्योंकि मित्रता आपसे आपके कीमती समय मांगती है।

जिसे आप बांटना तो चाहेंगे लेकिन शायद देना नहीं चाहेंगे।

कई प्रकार के होते हैं मित्र

हम अपने जीवन में कई तरह के मित्र बनाते हैं ।

ट्रेन में सफर करते हुये भी मित्र बनाते हैं और सफर के साथ ही मित्रता भी खत्म हो जाती है।

स्कूल के मित्र कॉलेज जाने पर छूट जाते हैं और कॉलेज के मित्र नौकरी पाने पर।

मित्रता दो कारणों से होती है

पहला  दो लोगों के विचार का समान होना और दूसरा  एक-दूसरे के काम आने की स्थिति का होना।

मित्रता चाहे अल्पकालिक हो या दीर्घकालिक होती इनही दो कारणों से।

फेसबुक ने मित्रता के आयाम बदल दिये

इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय मित्र बनाने में सबसे आगे है।

फेसबुक में आपको हर रोज कई अनजान लोगों से फ्रेड रिक्वेस्ट आते हैं।

उनमें से ज़्यादातर लोग स्वीकार भी कर लेते हैं।

भला हो फेसबुक का जिसने अधिकतम 5000 मित्र बनाने की सीमा निर्धारित कर रखी है।

वरना कईयों के तो लाखों मित्र होते भले ही उन्हें अपने मित्रों का नाम भी न पता हो।

फेसबुक पर लड़ते-झगड़ते भी हैं पर कोई भी किसी को अमित्र करना नहीं चाहता है।

यही हमारी व्यावहारिक जीवन में भी होता है।

हम लड़ते-झगड़ते हैं पर मित्र बने रहना चाहते हैं।

मित्रता हमारी जीवनशैली का हिस्सा है

मित्रता हमारे जीवनशैली पर निर्भर है और उसका हिस्सा बन चुका है।

हम जहां रहते हैं वहाँ मित्र बनाते हैं।

जहां काम करते हैं वहाँ मित्र बनाते हैं।

जगह और काम बदलने से मित्र भी बदल जाते हैं।

इस कारण स्थाई मित्रता होने की संभावनाएं भी बहुत कम हो गई हैं,

क्योंकि हमारी जीवनशैली ही ऐसी हो गई है कि हमें हर बार नए मित्रों  की  आवश्यकता पड़ती है।

आज के समय में सच तो यही है कि कोई व्यक्ति जब हमारे काम आ जाएं, उसी समय वह हमारा मित्र हो जाता है।

समय की कुर्बानी ही मित्रता है

मित्रता की कीमत समय है।

आपको मित्रता बचाए रखनी है तो उसे अपना समय देना होगा।

समय के अभाव में मित्रता स्वतः ही समाप्त हो जाती है।

मित्रता को बोझ न बनने दें

आज मित्रता जरूरत और समय के अनुसार बदलती रहती है।

इसलिए जब ऐसा लगने लगे कि आपको किन्हीं कारणों से पूराने मित्रों से मित्रता समाप्त करनी है तो

मित्र के साथ बिताने वाले समय को धीरे-धीरे कम कर दें

इससे मित्रता बनी भी रहेगी और बोझ भी नहीं बनेगी।

मित्रता छोड़ते समय ध्यान रखें कि संबंध खराब न हो और मित्रता अपमानित भी न रहे।

मित्रता को पुनर्जीवित करना आसान नहीं होता है

कई बार जीवन में ऐसे मौके आते हैं जो आपको आपके पुराने मित्र के पास ले आते हैं।

यदि आप दोनों की जरूरते मिलती हो तो मित्रता फिर से जीवित हो जाती है

अन्यथा ऐसी मित्रता बोझ ही बन जाती है।

आप चाहे या न चाहें आपके जीवन में नए मित्र आते रहेंगे और पुराने जाते रहेंगे। यही है मित्रता की सच्चाई। इसलिए मित्रता जब तक है उसे ईमानदारी से निभाएँ।

-पंकज चंद्रवंशी (प्रधान संपादक , मंडे मॉर्निंग)


 

Last updated: अक्टूबर 4th, 2017 by Pankaj Chandravancee

Pankaj Chandravancee
Chief Editor (Monday Morning)
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