पानी के विवाद में दो गुट आमने – सामने
ये कोई उन्मादी भीड़ तंत्र नहीं हैँ और ना ही कोई किसी के परिचय का मोहताज ही हैँ फिर भी मन में इतनी कुंठा पाले हुए हैँ या ये कहे कि केवल और केवल राजीनीतिक परंपरा का बोध और सम्बन्ध ही है जो कि आज छोटी छोटी सी बातों पर भी जनता मजदूर संघ परिवार एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो जा रहे हैँ जबकि अगर मुझे जहाँ तक याद हैँ और जितना की मैं जनता मजदूर संघ परिवार को जानता हूँ कि वे लोग बड़े से बड़ा फैसला कतरास मोड़ के कार्यालय में मिनटों में सुलझा दिया करते थे चुकि मैं स्वयं एक समय इसका प्रमाण हूँ और ये मेरी आँखों देखी बातें हैँ और ना ही मैं आज इस झरिया क्षेत्र में आया हूँ कि मैं जनता मजदूर संघ को ना जानू और आज सम्भवतः ऐसी विडंबना आ गई हैँ कि जनता मजदूर संघ परिवार फैसला करने में स्वयं अपने आपको अपेक्षित महसूस कर रहा हैँ और हाँ अब बात करेंगे उस मुद्दे कि जिसने मुझे आज यह बात को लिखने को मजबूर कर दिया हैँ कि पानी की यह समस्या कोई नई समस्या नहीं हैँ और ना ही जल्द खत्म होने वाली हैँ किन्तु कुछ लोग स्वयं को आगे दिखाने की होड़ में इस कदर अपने आपको हावी दिखा रहे हैँ कि अपनी अपनी बातों को सही साबित करने पर आमदा हैँ जबकि पुरे मामले को लेकर एक बात स्पष्ट हो जाती हैँ कि जो फैसला पहले घर की चारदिवारी में हो जाता था आज वो फैसला सड़क पर हो रहा हैँ अब पाठकगण स्वयं आकलन करें कि किया सही हैँ और किया गलत वहीँ इस पानी की लड़ाई में कुछ खास लोगों का वजूद का भी सवाल हैँ और इसी सवाल में इसका जवाब भी हैँ,कि पुरे मामले का पटाक्षेप कैसे होगा और कौन करेगा इसी सवाल के जवाब में??????

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