जीएसटी: अभी तो शुरुआत है.
भारी ताम-झाम और राजनीतिक बयानबाजियों के बीच भारत में आखिर जीएसटी लागु हो ही गया वो भी 1 जुलाई की मध्य रात्रि से.
भारत में नयी शुरूआत के लिए मध्य रात्रि को ही चुना जाता है क्योंकि हमारा देश भी मध्य रात्रि को ही आजाद हुआ था.
अर्थनीति के जानकार जीएसटी को भारत की अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर मान रहे हैं तो कुछ व्यापारी वर्ग लगातार हड़ताल और विरोध प्रदर्शन किये जा रहे हैं. उधर कांग्रेस जीएसटी को लेकर अपना दावा ठोक रही है कि जीएसटी उसने लाया है.
आइये जानते हैं भारत में जीएसटी लागु होने का पूरा इतिहास ➫
- वर्ष 2000 में तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार जीएसटी का प्रस्ताव रखा.
- इसके अध्ययन एवं मसौदा तैयार करने के लिए उन्होंने एक कमिटि भी गठित किया .
- प0 बंगाल के वाममोर्चा सरकार के तत्कालिन वित्त मंत्री असीम दास गुप्ता को को इसका अध्यक्ष बनाया गया.
- वर्ष 2004 में केलकर समिति ने भारत में कई स्तरीय कर प्रणाली को समाप्त करके एकीकृत कर प्रणाली अपनाने की सिफारिश की.
- केलकर समिति को भारत के वित्त्तीय घाटे को कम करने एवं संतुलित बजट तैयार करने के उद्देश्य से एफआरएमबी एक्ट 2003 के संसोधन के लिए गठित किया गया था.
- पहली बार वर्ष 2006-7 के बजट भाषण में जीएसटी को लागु करने की घोषना की गयी. इसके लिए 1 अप्रैल 2010 की तारीख तय की गयी.
- जीएसटी को पूरे देश में लागु करने एवं इसका विस्तृत मसौदा तैयार करने लिए सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों की एक कमिटी बनायी गयी.
- कमिटी ने अपना पहला रिपोर्ट एक अप्रैल 2008 को सौंपा उसके बाद कई बातचीतों का दौर चला.
कांग्रेस अपने शासनकाल में जीएसटी लागु नहीं कर पायी
इसकी सबसे प्रमुख वजह थी राज्यों से मिलने वाला गतिरोध.
अपने पूरे शासनकाल में कांग्रेस राज्यों में आम सहमती नहीं बनवा पायी .
राज्यों की अपनी समस्याएं थी
- सबसे बड़ी समस्या थी भारत का संघीय ढांचा.
- इस ढांचे के तहत राज्यों को अपनी अर्थनीति के लिए कर लगाने की छूट है जिसे केन्द्र खत्म नहीं कर सकता है तो दूसरी ओर राज्य केन्द्र के द्वारा लगाये गये करों को खत्म नहीं कर सकती है.
- एकीकृत कर प्रणाली के तहत एक ही कर को पूरे देश में लागु होना था जिससे देश के संघीय ढांचे की मूल भावना ही समाप्त हो जाती.
- दूसरी समस्या थी नफे और नुकसान की.
- कई तरह के टैक्स बंद होने से राज्य के खजाने पर इसका सीधा असर पड़ रहा था.
- इसी बात को लेकर राज्य लगातार इसका विरोध कर रहे थे और किसी भी एक कर पर कोई आम सहमती नहीं बन पा रही थी.
- राज्यों के विरोध एवं आम सहमति न बन पाने कारण जीएसटी कांग्रेस सरकार पास नहीं करवा पायी.
मोदी सरकार ने निकाला रास्ता
- विश्व बाजार में पकड़ बनाने और नए निवेशकों को आकर्षित करने के लिए जीएसटी को लागु करना आवश्यक हो गया था क्योंकि पूरी दुनिया अब धीरे-धीरे जीएसटी कर प्रणाली की ओर बढ़ रही है .
- यहाँ तक कि पड़ोस के पाकिस्तान में भी जीएसटी लागु करने के लिए कोशिशें तेज हो रही है.
- राज्यों की ओर से मिल रहे गतिरोध को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने तोड़ा
- उन्होंने प्रस्ताव दिया कि अगले पाँच वर्ष तक राज्यों को जो भी कर का नुकसान होगा उसे केन्द्र वहन करेगा.
- केंद्र सरकार के इस आश्वासन के बाद राज्यों का गतिरोध कुछ कम हुआ.
- संघीय ढांचे और राज्य की अर्थिनीति की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने दोहरी जीएसटी प्रणाली अपनाने की सिफारिश की.
- दोहरी प्रणाली के तहत जीएसटी को दो बराबर हिस्सों में बांट दिया गया। केन्द्र जीएसटी और राज्य जीएसटी.
- अर्थात जो जीएसटी का पैसा आप देंगे उसे केन्द्र और राज्य मिलकर आधा-आधा बांट लेंगे.
- अब समस्या थी कि कर कितना रखा जाये। क्योंकि कुछ वस्तुओं में कर काफी कम है तो कुछ वस्तुओं में कर बहुत ज्यादा ऐसे में सबको एक समान कर देने से भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता था.
- इस समस्या से निबटने के लिए चार टैक्स स्लैब बनाये गये
- 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत। इनमें कृषि एवं कुटीर उत्पादों तथा सस्ते होटलों को टैैक्स से छूट दिया गया है.
- राज्यों को सबसे बड़ी समस्या थी पेट्रालियम पदार्थों की क्योंकि पेट्रालियम पदार्थों पर टैक्स से राज्यों का आधा बजट चलता है.
- इस समस्या से निबटने के लिए पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी से बाहर रखा गया है.
कर को लेकर भी काफी गतिरोध था
कई अड़चनों को मिटाने के बाद आखिर जीएसटी यदि पास हो पाया तो इसके लिए वर्तमान सरकार एवं उसके मुखिया नरेन्द्र मोदी निस्संदेह बधाई के पात्र हैं.
वर्तमान जीएसटी अभी अपने आरम्भिक दौर में है तथा आने वाले समय में इसमें कई और सुधार होने है.
आने वाले दौर में टैक्स स्लैब में कमी आ सकती है. केवल एक टैक्स स्लैब में जाने में अभी समय लगेगा.
अभी अड़चने बाकी है
पूरा कर सुधार इस बात पर निर्भर करेगा कि जीएसटी लागु होने के बाद से कालाबाजारी पर कितनी रोक लगेगी. क्योंकि एक अनुमान के मुताबिक भारत की वास्तविक सकल घरेलु उत्पाद का बड़ा हिस्सा कालाबाजारी के जरिये लागों के पास जमा हो जाता है.
यदि कालाबाजारी और टैक्स की चोरी रूकी तो इससे सरकार की होने वाली आय में अप्रत्याशित वृद्धि होगी।
1986 में जब न्यूजीलैंड में पहली बार जीएसटी लागु की गयी तो वहाँ की सरकार को अनुमानित आमदनी से 45 प्रतिशत अधिक आमदनी प्राप्त हुई थी .
भारत में जीएसटी लागु हो जाने से सकल घरेलु उत्पाद में 24 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
यदि जीएसटी से सरकार की आय में बढ़ोत्तरी हुई तो इससे सरकार का वित्तीय घाटा कम होगा और देश के विकास में तेजी आयेगी.
व्यापार स्थापित करने में भी आसानी होगी तथा विदेशी निवेशक भी आकर्षित होगी.
टैक्स स्लैब में और भी कमी की जा सकेगी
अभी न्युनतम टैक्स 5 प्रतिशत तथा अधिकतम 28 प्रतिशत है. इस अंतर को कम किया जा सकेगा.
कुल मिलाकर देश और जनता को जीएसटी से फायदा ही होगा.
लेकिन यदि कालाबाजारी और टैक्स चोरी रोकने में कामयाबी नहीं मिली तो फिर यह पूरे देश के लिए एक अभिशाप सिद्ध होगा.

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