जॉयदेव बाउल मेला यहाँ स्नान करने पर गंगासागर का पुण्य प्राप्त होती है: विमल देव गुप्ता
रानीगंज। पश्चिम बंगाल में लोक संस्कृति पर आधारित मकर सक्रांति के अवसर पर जयदेव केंदुली का बाउल मेला पिछले 2 वर्षों के बाद इस वर्ष कोरोना महामारी के गाइड लाइन पर आयोजन किए । आयोजन को लेकर जब इस क्षेत्र के लोगों में बेहद खुशी है। मान्यता है कि यहाँ स्नान कर पूजा अर्चना करने वाले को गंगासागर का पुण्य प्राप्ति होती है।
यह मेला कब और कैसे शुरू हुआ इसके बारे में रोचक कथा है कहा जाता है कि कवि साधक एवं गीत गोविंद के रचयिता जयदेव हर साल मकर सक्रांति के पुण्य अवसर पर गंगासागर तीर्थ यात्रा पर जाया करते थे। एक बार वह बीमार पड़ गए और तीर्थ यात्रा पर जाने से असमर्थ हो गए। उन्होंने माँ गंगा से प्रार्थना की कि माँ क्या इस बार पुत्र की इच्छा अधूरी रहेगी। गंगा माँ प्रभावित हो गई और उन्होंने उन्हें स्वप्न दिया कि मकर सक्रांति के दिन मैं खुद तुम्हारे पास आऊँगी। अजय की धारा कुछ क्षण के लिए उलटी दिशा में बहे तो इससे मेरे आगमन का प्रतीक मानना। माँ गंगा की कही बात सच हुई। तभी से लोग इस मौके पर जयदेव केंदुली में अजय नदी के तट पर मकर सक्रांति के अवसर पर जमा होकर गंगा स्नान का पुण्य फल प्राप्त करने आते हैं।
दूसरी ओर इस मेला का एक और विशेषता यह है कि इस मेले को बाउल मेला भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल के लोक संस्कृति में बाउल गीत संगीत काफी लोकप्रिय रहा है। भले ही आज आधुनिक चौक चौक की वजह से यह लोग गीत संस्कृति सीमित हो गई है। लेकिन बाउल गीत एक तरफ जहाँ सभ्यता संस्कृति को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत की जाती है इसमें देवर भाभी साला साली पर्व त्यौहार पर आधारित बाउल गीत हृदय को छू जाती है। समय अनुसार यहाँ बाउल गीत संगीत के कलाकार यहाँ आकर अपनी प्रस्तुति विभिन्न अखाड़ों में करती रही है। हरि किस्टो बाउल करते हैं की अब मंच पर आधुनिक गीत संगीत का बोलबाला हो गया है। परंपरा से हटकर हम लोगों को भी मंच साझा करना पड़ता है।
जयदेव केंदुली रानीगंज के उत्तर दिशा के अजय नदी के किनारे पश्चिम बर्द्धमान एवं बीरभूम जिला के बीच अवस्थित है। जयदेव केंदुली के मंदिर को लेकर कहा जाता है कि जुगल किशोर मुखोपाध्याय के समय बर्द्धमान में दरबारी कवि थे। ऐसा कहा जाता है कि उनके अनुरोध पर महारानी ने 1683 में राधा विनोद मंदिर की स्थापना की थी। बाहर हाल यहाँ मेला लगी है बड़े ही सादगी और अनुशासन का स्वरूप यहाँ देखने को मिल रही है खुशी है लेकिन जो उत्साह यहाँ देखने को मिलती थी जगह-जगह बाउल का नित्य संगीत अखाड़ों में भीड़ सब कुछ बदला बदला सा था। पूरब एवं पश्चिम बर्द्धमान जिला कोविंद मॉनिटरिंग अधिकारी समरेस कुमार बसु ने बताया कि गोविंद नियम का पूरी तरह से पालन की जा रही है मेला में प्रवेश स्थलों पर सेंटर साइजर मांस की जहाँ व्यवस्था है मेला में प्रवेश करने वाले को मांस अनिवार्य है।
Copyright protected
झारखण्ड न्यूज़ की महत्वपूर्ण खबरें
Quick View