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लापरवाही: एलोक्विंट स्टील कारखाना में गर्म लौहे से झुलसा मज़दूर, चार की हालत गंभीर

सालानपुर। सालानपुर थाना क्षेत्र के देन्दुआ स्थित एलोक्विंट स्टील कारखाना में गुरुवार घटी घटना ने पुनः कारखाना प्रबंधन की लापरवाही को उजागर कर दिया है।

जानकारी के अनुसार एलोक्विंट स्टील कारखाना में गुरुवार की दोपहर करीब घटित भीषण हादसे में कार्यरत चार मज़दूर गंभीर रूप से घायल हो गए।

यह घटना एक बार फिर औद्योगिक क्षेत्र की फैक्ट्रियों में मज़दूर सुरक्षा के प्रति प्रबंधन की उदासीनता को दर्शाती है।

गर्म पिघले हुए लोहे के गर्म छींटों और भट्टी के खतरनाक वातावरण में मज़दूरों की जान जोखिम में डाली जा रही है, जबकि अधिकारी कोई ज़िम्मेदाराना कदम नहीं उठा रहे हैं। यह घटना सिर्फ़ एक हादसा नहीं, बल्कि मज़दूरों के प्रति फैक्ट्री अधिकारियों की लापरवाही का ज्वलंत उदाहरण है।

जानकारी के अनुसार एलोक्विंट स्टील कारखाना में दोपहर भट्टी से पिघला हुआ लोहा गिरने से चार मज़दूर गंभीर रूप से झुलस गए।

घायलों में अभिषेक रजक की हालत बेहद गंभीर है। बराकर निवासी अभिषेक को तत्काल दुर्गापुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

कुल्टी इलाके के रहने वाले तीन अन्य मज़दूरों को इलाज के लिए कुल्टी के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

बताया जा रहा है कि हादसे के दौरान एक मज़दूर ने अपनी जान बचाने के लिए लगभग दो मंज़िला भट्टी से छलांग लगा दी, लेकिन फिर भी वह झुलसने से बच नहीं सका।

यह घटना कारखाने की सुरक्षा व्यवस्था और निकम्मेपन को उजागर करती है।

हादसे के बाद, कारखाने के अधिकारियों ने घायलों को अस्पताल पहुँचाने के लिए दो एम्बुलेंस की व्यवस्था की और उनके परिवारों से संपर्क किया।

लेकिन क्या इतना व्यवस्था पर्याप्त है? अगर कारखाने में मज़दूरों की जान बचाने के लिए ज़रूरी सुरक्षा उपाय और सेफ़्टी उपकरण होते, तो क्या यह हादसा टाला नहीं जा सकता था?

मामले में सालानपुर प्रखंड आईएनटीटीयूसी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा, जहाँ तक मुझे सूचना मिली है पर्याप्त सावधानियों के बावजूद यह हादसा हुआ है। हम मामले को देख रहे हैं।

वही कारखानों में निरंतर घटित हो रही घटना मज़दूरों के प्रति इलाके के कारखाना प्रबंधन के बरती जा रही लापरवाही को दर्शा रही हैं।

उक्त कारखाने में बीते कुछ माह पहले ही हुई एक दुर्घटना में पिघले लोहे से 5 श्रमिक घायल हो गए थे।

जिसमें एक कि हालात अबतक ठीक नही हुई है। और इलाज चल रहा है। जिसके परिवार ने कारखाना प्रबंधन के खिलाफ सहियोग ना करने का आरोप लगाया था।

जिसकी शिकायत जिला शासक समेत अन्य विभाग को की गई।

पिछली घटनाओं के बाद भी श्रमिकों की सुरक्षा को दरकिनार कर उन्हें बिना सेफ़्टी उपकरण के ही कार्य कराया जा रहा है, जिससे ऐसी घटना घटित हो रही हैं।

यही नही इलाके के कई कारखानो में ऐसी ही श्रमिको के जीवन से खेला जा रहा है। बीते कुछ दिनों पहले ही इलाके के एमएसपीएल कारखाने में एक शेड गिर गया था, जिसमें कई मज़दूर घायल हो गए थे और बिहार गया जिला के एक मज़दूर की मौत हो गई थी।

उस घटना में तृणमूल मज़दूर संगठन के हस्तक्षेप से भले ही मृतक के परिवार को मुआवज़ा मिल गया हो, फिर भी ऐसी घटनाएँ बार-बार क्यों हो रही हैं?

इससे साफ़ है कि प्रबंधन मज़दूरों की सुरक्षा को महत्व नहीं दे रहे हैं। तृणमूल श्रमिक संगठन ने कहा है कि वे इस दुर्घटना के बाद भी घायल मज़दूरों की चिकित्सा और अन्य सुविधाओं की निगरानी कर रहे हैं। लेकिन क्या मज़दूरों की जान की क़ीमत सिर्फ़ मुआवज़े से आंकी जा सकती है?

इस घटना की जाँच के लिए जब फ़ैक्टरी इंस्पेक्टर देबब्रत चक्रवर्ती से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें अभी तक घटना की कोई खबर नहीं मिली है, लेकिन वे इसकी जाँच करेंगे।

यह उदासीनता मज़दूरों के प्रति अधिकारियों के गैर-ज़िम्मेदाराना रवैये का एक और सबूत है। बार-बार हो रही दुर्घटनाओं के बावजूद, कारखानों की सुरक्षा व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ है। भट्टियों जैसे खतरनाक वातावरण में काम करने वाले मज़दूरों के लिए उचित प्रशिक्षण, सुरक्षा उपकरण और आपातकालीन साधन प्रणाली का होना बेहद ज़रूरी है। लेकिन ये कारखाना संचालक सिर्फ़ अपने उत्पादन लक्ष्य को पूरा करने में लगी हुई हैं।

मज़दूरों की सुरक्षा उनके लिए मात्र मगरमच्छ की आंसू समान है।

मज़दूर सुरक्षा की यह अनदेखी सिर्फ़ देन्दुआ ही नहीं, बल्कि पूरे औद्योगिक क्षेत्र की एक दीर्घकालिन समस्या है।

ये घटनाएँ न सिर्फ़ मज़दूरों की जान को ख़तरे में डाल रही हैं, बल्कि उनके परिवारों पर भी गहरा असर डाल रही हैं। अगर कोई मज़दूर घायल होता है या मौत हो जाती है, तो उसके परिवार को आर्थिक मानसिक और पारिवारिक रूप से अपूर्णीय क्षति होती है।

फिर भी, कारखाना प्रबंधन सिर्फ़ मुआवज़े का टुकड़ा गरीब की झोली में डाल कर जीवन भर के लिए परिवार की ख़ुशी छीन लेतें है।

लेकिन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कोई कारगर या ठोस कदम नहीं उठाते। अगर यही स्थिति रही, तो मज़दूरों की जान और भी ख़तरे में पड़ जाएगी।

सरकार, मज़दूर संगठनों और कारखाना प्रबंधन को इन घटनाओं पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और सुरक्षा उपायों को मज़बूत करना चाहिए। नियमित निरीक्षण, मज़दूरों का प्रशिक्षण और आधुनिक सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल सुनिश्चित करना ज़रूरी है। मज़दूर कारखाना की रीढ़ होते हैं और उनकी सुरक्षा की अनदेखी करके उद्योग जगत को बेहतर नहीं बनाया जा सकता।

देंदुआ में हुई यह दुर्घटना सभी के लिए फिर एक सबक है। क्या मज़दूरों की जान की क़द्र होगी, या फ़ैक्टरी का मुनाफ़ा ही सब कुछ होगा?

Last updated: अगस्त 28th, 2025 by Guljar Khan
Guljar Khan
Correspondent : Salanpur/Chittranjan/Barabani (Pashchim Bardhman: West Bengal)
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