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मेरी बात – ” संस्कार की कमी एक मौलिक समस्या ” लेखक सह पत्रकार ( अरुण कुमार )

मेरी बात –” संस्कार एक तंज ” आज का यह टॉपिक लिखने की जरुरत मुझे क्यों पड़ी तो मेरे प्रिय पाठकगण यहाँ यह ध्यान योग्य देने वाली बात हैँ कि इस टॉपिक का अभिप्राय किया है और मैंने इस टॉपिक का नया सलोगन संस्कार एक तंज को कहकर क्यों परिभाषित या सम्बोधन किया हैँ तो इसका उदाहरण आज हमसबके जीवन में आन पड़ी हैँ क्योंकि हमसबका जीवन चुकि हमलोग 19 वीं शदी के मूल आधार हैँ और हमने 20 वी शदी का अवलोकन भी अच्छी तरह से किया हैँ तथापि अब बात आ गई हैँ 21वी शदी की तो आज मैं उन सभी संस्कारी पुरुष पर कटाक्ष स्वरूप कहना चाहता हूँ कि अगर आप आज और अभी से नहीं चेते तो आपके बच्चे आपको कहीं का नहीं छोड़ेंगे ये मेरी अंतिम बार आपलोगों को सलाह हैँ वहीँ कुछ अभिभावक अपने बच्चे के संस्कार स्वरूप को देखकर ख़ुश होते हैँ किन्तु जब वहीँ बच्चा अपने मूल जड़ को खोने लगता हैँ तब बच्चे के अभिभावक को समझ में आता हैँ कि उन्होंने किया खोया और किया पाया और इस कलयुगी समाज में जोड़ तोड़ का हिसाब करके मुझे कितना बटे कितना में बटवारा प्राप्त हुआ हैँ यह बात बाद में समझ में आती हैँ वहीँ बात कड़वी मगर सच हैँ कि एक बूढा दादा अपने पोते को अपने बेटे के मूल से ज्यादा सूद समझ कर महत्व देता हैँ किन्तु वहीँ पोता और पोती ज़ब अपने उस बूढ़े दादा को तिरस्कार स्वरुप देखता हैँ तब जाकर बात समझ में आती हैँ कि अगर आपका पुत्र आपके स्वयं के होने के पिता को तवज्जो नहीं देता हैँ तो फिर दूसरों को किधर से देगा यहीं इस कलयुग रूपी समाज के लिए घोर निंदनीय बातें हैँ मेरी अपेक्षा और उपेक्षा व सहानुभूति आप सभी अभिभावकों के साथ था, हैं और हमेंशा रहेगा किन्तु मेरी समवेदना भी आप सभी के साथ आगे भी रहेगा, अब बात आती हैँ कि कमी कहाँ और किसमे रह गई और कौन कौन लोग अपनी उस गलती को मानेंगे जो की उन्होंने अनजाने में किया हैँ या आज भी कुछ कुछ गलतियां वे लोग जानबूझकर कर रहे हैं तो मेरी उन सभी अभिभावक गणों से कहना हैँ कि श्रीमान अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई हैँ समझदार बने और समझदारी से काम करें अन्यथा आपके बच्चे इस कलयुग में आपसे भी एकदम आगे निकल चुके हैँ अगर मेरी बात पर विश्वास ना हो रहा हो तो अपने बच्चों में हो रहे या हो चुके बदलाव को आप नजदीक से जाकर समझें तब आपकी आँखे खुली की खुली रह जायेगी की आपने किया बोया था और किया आपने काटा जबकि वैसे मैं सिक्स सेन्स का स्वयं से परिपूर्ण व्यक्तित्व वाला इंसान हूँ और मेरी बातें काफी हाई लेवल की होती हैँ वैसे जल्दी से मेरी बातें एक आम आदमी को समझ में नहीं आती हैँ किन्तु जबतक समझ में आती हैँ तबतक काफी देर हो जाती हैँ अब आप स्वयं से अपना आकलन कर ले की आप कितने सेन्स के हो और अब संस्कार कैसे बचेगा या जाएगा ये फैसला आप सबों को करना हैँ जबकि कहीं ज्यादा देर ना हो जाए और सिवाय पछताने के अलावे आपके पास कोई बिकल्प ना बचे यहीं हैँ आज का सच और इसकी कड़वी हैँ सच्चाई,

सबों को समर्पित,

Last updated: जनवरी 27th, 2024 by Arun Kumar
Arun Kumar
Bureau Chief, Jharia (Dhanbad, Jharkhand)
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