मेरी बात — * पट्टीदार नहीं परिवार बनें * लेखक सह पत्रकार ( अरुण कुमार )
मेरी बात — आज का खास मुद्दा,पट्टीदार नहीं परिवार बनें,—- आज का यह खास मुद्दा की पट्टीदार का हिस्सादार नहीं परिवार के हिस्सेदार बनें और सबों की जिम्मेदारी अपने ऊपर लें और स्वयं के होने का अहसास अपने परिवार को अवश्य दिलाये और अपना एक कदम आगे बढाकर अपने दाईत्व का निर्वाहन करने से परहेज ना करें,यह सच मुझे आज उन सारे सगे संबंधियों और महानुभावों से कहना और व्यक्त करना हैँ जो की अपने आपमें ही जिए जा रहे हैँ जिसकी कथनी और करनी भी एकदूसरे के साथ मेल नहीं खा पा रही हैँ और वे स्वयं आभाव और एक संसय मात्र में ही अपने जीवन को नीरस भाव के साथ जिए जा रहे हैँ ना ही आगे कोई विजन और ना ही किसी प्रकार का कोई भी सामाजिक परिवेश का प्रकार और संस्कार वे सब व्यक्तिगत रूप से चोटिल हुए पड़े हैँ या हो गए हैँ मानो ऐसा ही लग रहा हैँ जबकि आज अगर हम परिवार की बात करें तो हम दो हमारे दो पर ही आकर बात रुक जाती हैँ या ये कहे की ख़त्म ही हो जाती हैँ तो ये कहना कहीं से भी कदापि गलत नहीं होगा वहीँ सब के सब वर्तमान को भुलाकर अपने भविष्य की आशा में जिए जा रहे हैँ जबकि उस भविष्य का कोई औचित्य दूर दूर तक ना ही दिखाई देता हैँ और ना ही उसकी एक बानगी ही जान पड़ती हैँ, मैं स्वयं यह दावे के कह सकता हूँ कि ज़ब मैं खुद अपना भविष्य नहीं गढ़ पाया तो दूसरों का किया बना पाऊंगा और कैसे ? इस सवाल का जवाब बड़ा ही साधारण हैँ कि अगर आप सभी लोग आकलन करें की आपसबों ने अपने लिए अपने भविष्य में किया बनने की इच्छा किए थे और किया बन गए तो सारी बातें क्लियर हो जायेगी की सच्चाई किया हैँ और हमसब फालतू के उस भविष्य के भावुक पल में पड़कर आज अपने अतीत के साथ साथ वर्तमान को छोड़कर भविष्य की ओर रुख कर रहे हैँ यही गड़बड़ हो गई हैँ और इसी चक्कर में परिवार तो दूर पट्टीदार को भी सभी लोग खोते जा रहे हैँ एक परिवार बनने और बनाने के लिए पट्टीदार का होना नितांत ही आवश्यक हैँ क्योंकि परिवार और पट्टीदार एक दूसरे के पूरक हैँ और दोनों ही उपयोगी हैँ क्योंकि ज़ब आप इनदोनों के बीच का सामंजस्य स्थापित कर लेंगे तो निश्चित ही आपकी समाज में कभी भी उपेक्षा नहीं होगी ऐसा मेरा मानना हैँ अब मैं स्वयं की मर्जी तो आप सबों पर नहीं थोप सकता हूँ क्योंकि आप सभी लोग स्वयं में ही काफी समझदार हैँ तो फिर समझदारी का परिचय दें और अपने परिवार को पट्टीदार ना बनने दें अन्यथा परिवार के साथ साथ समाज भी आपसबों को कभी माफ़ नहीं करेगा अब मर्जी हैँ आपकी की आगे आपसबों को कैसे अपनी जिंदगी जीनी हैँ, क्योंकि अगर हाथ से एक बार समय निकल गया तो चाहकर भी आप सब उसे फिर से वापस नहीं ला सकते हैँ इसीलिए परिवार के साथ रहकर अपने धर्म को अवश्य निभाए क्योंकि परिवार ही आज के तारीख में सबसे अनमोल वस्तु हैँ इसको व्यर्थ समझने की भूल कभी भी ना करें,✍️✍️
सबों का आभार,
अरुण कुमार लेखक सह पत्रकार
मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क
(भागवत ग्रुप कारपोरेशन )

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