मेरी बात – ” कान का कच्चा इंसान “- लेखक सह पत्रकार – ( अरुण कुमार )
मेरी बात — “कान का कच्चा इंसान, इंसानियत से हैँ कोशों दूर ” – लेखक सह पत्रकार — (अरुण कुमार ) — जी हाँ आज का यह टॉपिक कई मायनों में सच की ओर इशारा करती हैँ क्योंकि ज़ब आप बात करते हैँ एक इंसान की जो की कान का काफी कच्चा होता हैँ तो वैसे इंसान को आत्मचिंतन करने की आवश्यकता आज के डेट में आन पड़ी है क्योंकि उस कान के कच्चे इंसान को अपनी अंतरात्मा में एक बार अवश्य झांकने की जरुरत हैँ मैं हमेशा मेरे हिसाब से अपनी बातों को कहता और रखता हूँ क्योंकि समाज के कुछ वैसे इंसान जो की सब कुछ सुनकर व जानकार कई बातों को अनसुनी व नजरअंदाज कर देता हो वैसे इंसान को ही कान का कच्चा कहा जाता हैँ, जो की जानता तो सबकुछ हैँ किन्तु ना जानने का ढोंग का पिटारा उनके पास आप सबों को अक्सर मिल जाएगा या ये कहे कि जान के अनजान बनने की जो कला या महारथ इनको हासिल हैँ वो शायद ही आपसबों को और किसी दूसरे इंसान में देखने को मिले!हालांकि अक्सर कई मामलों में यह इंसान किसी विवाद को जाने अनजाने में जन्म दे जाता हैँ जहाँ तक उस समय की अगर आप बात करेंगे तो इन जैसे लोगों को अफ़सोस कम का ही आभास और बोध होता हैँ वहीँ ये लोग चाहकर भी कुछ भी अच्छी बातें समाज के प्रति नहीं सोच सकते हैँ और ना ही करना ही चाहते हैँ देख के अनसुना करना की भी आप इसे संज्ञा दे सकते हैँ जैसा की अक्सर कई कई मामलों में देखा जा सकता हैँ वहीँ कान का कच्चा इंसान सब कुछ जानकर इस भूल भूलैया में मसगुल रहता हैँ कि कोई भी उसे समझ नहीं पायेगा किन्तु एक कहावत हैँ ना कि जो इंसान अपने आपको परिभाषित कर चूका हैँ वैसे इंसान को जरा भी समझने में देर नहीं लगती हैँ कि सामने वाला किस टाइप का प्राणी हैँ जबकि समझना तो उस कान के कच्चे इंसान को होगा कि वो जो कर रहा होता हैँ या कर चूका हैँ उसकी बातें जगजाहिर हो चुकी हैँ और वो सचमुच में कान का एक कच्चा इंसान ही बनकर रह गया हैँ,
अरुण कुमार – लेखक सह पत्रकार
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