मेरी बात.. ✍️✍️ इंसानियत की परिभाषा,, ✍️✍️@लेखक सह पत्रकार अरुण कुमार
मेरी बात ✍️✍️,,….. इंसानियत की परिभाषा,, ✍️✍️……दोस्तों आज का यह दौर खुदगर्ज वाला दौर हो चूका हैँ आज के इंसान में इंसानियत लगभग ख़तम हो चुकि हैँ ऐसा मैं क्यों कह रहा हूँ तो फ्रेंड्स उसके पीछे भी एक कारण हैँ, चुकि आज का इंसान अपने आपको परिभाषित जो कर नहीं पा रहा हैँ वो चाहकर भी बहुत कुछ कर नहीं पाता हैँ जिसके वजह से उसकी इंसानियत भी समाज के सभी वर्ग में परिभाषित नहीं हो पाती हैँ जीवन का एक सार यह भी हैँ कि आपकी कल्पना मात्र से ही उस इंसान के साथ घटित हो रही कोई भी घटना उसके नाममात्र से ही ख़त्म हो जाए ऐसा सम्बन्ध उस इंसान का उसके द्वारा किए गए कार्यों के साथ मापा जाना चाहिए था किन्तु ठीक इसके विपरीत आज का वह इंसान अपनी उस इंसानियत को परिभाषित करने में कई साल गुजार देता हैँ और जब समय आता हैँ तो उस इंसान को भूलवस वो सारी भूली विसरी बातें उनके जेहन में कौंध जाती हैँ जब उस इंसान ने अपना कीमती समय उस इंसान को दिया था जिसकी नितांत आवश्यकता उस इंसान को उस टाइम में था जबकि कई कई मामलों में इंसान की इंसानियत को परिभाषित करने के कई सही मायने भी हैँ किन्तु समाज की परिभाषा उस इंसान के इंसानियत के सदैव एक कड़ी की भांति कार्य करता हैँ जिसकी कल्पना वो इंसान अपने इंसानियत को परिभाषित करने में जो लगा देता हैँ,तभी तो आज के इस कलयुग में एक इंसान की इंसानियत को परिभाषित करने में अच्छे अच्छो का तीन दिया का तेल निकल जाता हैँ वहीँ आज का यह दौर वाकई में खुदगर्ज वाला दौर हो चूका हैँ तभी तो अपने हमसे दूर और दूसरे हमसे जुड़ते जो जा रहें हैँ फिर कमी कहाँ रह गई और कौन गलत हैँ जबकि इंसान अपनी इंसानियत को भूलकर अपनी प्रतिबद्धता को जो भूल चूका हैँ उसे तो केवल और केवल अपनी परेशानी दिखाई देती हैँ ना की औरों की तभी तो आज के डेट में इंसान को परिभाषित करना सबके बस की बात भी नहीं हैँ,,
✍️✍️अरुण कुमार, लेखक सह पत्रकार ✍️✍️ मंडे मॉर्निंग न्यूज़ नेटवर्क, साप्ताहिक अख़बार,शाखा प्रबंधक, भागवत ग्रुप

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