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मेरी बात – “अपना घर ” – अरुण कुमार (लेखक सह पत्रकार )

” मेरी बात अपना घर ”

” घर की परिभाषा ” ———- आज का यह टॉपिक कई मायनों में खास हैँ और हो भी क्यों ना जब बात आ जाती हैँ अपने घर की तो इसकी बानगी के किया कहने वहीँ आज का यह माहौल कई कई बातों को जन्म देता हैँ कि एक घर को बनाने में ना जाने कितने लोगों ने कुर्बानी दी होगी और कइयों की कुर्बानी के पश्चात एक घर का निर्माण होता हैँ जबकि आज कुछ लोग घर को केवल ईट, बालू, सीमेंट एवं छड़ का बना हुआ ही मानकर चलते हैँ या समझने की कोशिश कर रहे होते हैँ और यही सारी गड़बड़ी हो जाती हैँ जबकि मेरे विचार से आज का इंसान अपने मूल मुद्दों से भटक सा गया हैँ क्योंकि उन्हें इन बातों का अहसास ही नहीं होता हैँ कि उनके बाद भी दुनिया रहेगी और श्रीमान अगर किसी को अभी तक मेरी बात का अहसास नहीं हुआ हैँ तो आप सब अपने – अपने पूर्वजों को याद कर लें कि वे पहले ही आये थे और आज वे सब हमारी केवल यादों में हैँ और यही हाल आगे हमसबके साथ भी होने वाला हैँ जबकि हमसब अब भी भ्र्म में जी रहे हैँ हाँ एक बात जान लें की आप सब किसी भ्र्म में ना रहे अब बात मुद्दों की अगर करें तो एक बात तो यहाँ साफ हो जाती हैँ कि घर की परम्परा का मान और सम्मान जिसने किया हैँ वही इंसान वास्तव में आज का युगपुरुष हैँ क्योंकि एक घर को बनाने में कितनी ऊर्जा लगती हैँ ये तो कोई उस बनाने वाले से पूछे जिसने एक घर को बनाने में कितने जतन किये हैँ जबकि उस घर को बनाने वाले ने किया खोया हैँ और किया पाया हैँ ये तो उस बनाने वाले को ही पता होगा जिसने एक घर को परिभाषित करने में ना जाने कितनी जिम्मेदारीयों के साथ समझौता किया होगा मेरी बातें थोड़ी अटपटी और हाईलेवल की होती हैँ क्योंकि ज़ब भी मैं कोई आर्टिकल लिखता हूँ तो उसमें संबंधों का तड़का अवश्य डालता हूँ चुकि परिस्थिति अगर विकट आती हैँ तो संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैँ कि कैसे और कहाँ कमी रह गई हैँ यह तब तक कोई जान नहीं पाता हैँ जबकि मेरे विचार से आज कुछ लोग धन – धन के चक्कर में पड़े हुए हैँ किन्तु वो धन कब विलुप्त हो जाता हैँ पता ही नहीं चलता हैँ वहीँ ज़ब आप अपने एक घर को नहीं बचा सके हैँ तो यह जान ले की उस समय आपसे बड़ा निर्धन भी कोई नहीं हैँ क्योंकि एक घर को श्रृंगार करने व साजो सम्मान के साथ बसाने में किया जतन नहीं करना पड़ा होगा ये तो उस अभिभावक से पूछे जो वास्तव में घर को घर की तरह समझ कर एक घर को बनाया हैँ एक घर तो घर ही होता है किन्तु घर को घर बनाना पड़ता हैँ जैसा आज के डेट में नहीं हो रहा हैँ,वैसे एक बात और हैँ कि अगर आप कल की चिंता में रहेंगे तो आपसे आपका आज भी आपके हाथ से निकल जाएगा तो दोस्तों आप स्वयं घर को एक घर बनाने में अपना दिमाग़ लगाए घर को जोड़कर चले अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब एक घर तो होगा किन्तु उस घर में आप नहीं होंगे,

सबों को समर्पित,

Last updated: सितम्बर 29th, 2024 by Arun Kumar
Arun Kumar
Bureau Chief, Jharia (Dhanbad, Jharkhand)
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