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शिल्पांचल में शारदीय नवरात्र को लेकर विभिन्न मंदिरों, पंडालो व घरों में माँ की आराधना की गई. सुबह से लेकर शाम तक वैदिक मंत्रोच्चार से चारों दिशाएं गुंजायमान रहा, जिससे वातावरण भक्तिमय हो गया. मंदिरों तथा पूजा पंडालों में श्रद्धालुओं की भीड़ रही. सुबह से मंदिर व घरों में परंपरागत श्रद्धा के साथ कुंवारी कन्या का पूजन हुआ. नवरात्र के मौके पर सीतारामपुर स्थित रामजानकी शिव मंदिर में प्रख्यात ज्योतिषाचार्य डॉ.सदाशिव त्रिवेदी के सानिध्य में पूजन अनुष्ठान का भव्य आयोजन होता है.
शक्ति के बिना शिव शव के समान
गुरुवार को मंदिर प्रांगण में 51 कुँवारी कन्याओं का पूजन के साथ उन्हें प्रसाद ग्रहण कराया गया. इसके साथ ही हजारों श्रद्धालुओं को भोजन कराया गया. इस दौरान बंगाल सहित झारखण्ड से भी कई श्रद्धालु उपस्थित हुए थे. इस बाबत डॉ.सदाशिव त्रिवेदी ने बताया कि शारदीय नवरात्र में कुंवारी कन्या पूजन का विशेष महत्त्व होता है. क्योंकि मां दुर्गा का अवतरण कुंवारी कन्या के रूप में हुआ था. जिसे सर्वशक्तिमान भी मन जाता है. उन्होंने कहा कि शास्त्रों में वर्णित है कि ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश ने भी देवी की इस उपासना को स्वीकार किया है, भगवान शिव ने भी कहा है कि शक्ति के बिना शिव शव के समान है. कहा कि नवरात्र में जो भक्तगण मां के साथ-साथ प्रतिदिन कन्या पूजन कर उन्हें भोग लगाते है, उनकी मनोकामनाएँ अतिशीघ्र पूर्ण होती है तथा मां भगवती की कृपा उनके उपर सदा बनी रहती है.
कुंवारी कन्या के रूप में भगवती को प्रसन्न करने का प्रयास
नवमी पूजा के दिन दर्जनों कुंवारी कन्याओं की पूजा मां दुर्गा के समक्ष होती है, भक्तजन कन्याओं को नये वस्त्रों तथा श्रृंगार से सुशोभित कर मंदिर में लेकर आते हैं. मंदिर में इन कन्याओं को कतार में बिठाकर उनके पैरों पर फूल और जल चढाकर उनकी पूजा की जाती है. इस पूजन के माध्यम से भक्तगण कुंवारी कन्या के रूप में भगवती को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं. अंतिम प्रक्रिया में भक्तजन हाथ जोड़कर कुंवारी कन्याओ से हंसने का आग्रह करते हैं. दुर्गा रूपी कुंवारी कन्या भक्तों की विनती को स्वीकार कर हंस पड़ती हैं. इन कन्याओं से आशीर्वाद लेने की होड़ सी लग जाती है. छोटी-छोटी कन्याओं द्वारा बुजुर्गों के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते देखना एक अविस्मरणीय प्रसंग से कम नहीं होता है.
व्रत रखने से अधिक फलदायी कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना
नवरात्र में कुंवारी कन्याओं के भोजन कराने पर पुण्य और कल्याण की प्राप्ति होती है. ऐसा माना जाता है कि कन्याएं देवी का रूप होती हैं. पुराणों में यह उल्लेख कई स्थानों पर मिलता है कि कुंवारी कन्याओं की पूजा करने, उन्हें वस्त्र, आभूषण आदि दान देने से मनुष्य का हर कष्ट दूर होता है, देवी प्रसन्न होती हैं और उस मनुष्य के सामने आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं. ऐसी भी मान्यता है कि व्रत रखने से कही अधिक फलदायी कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना तथा उनकी पूजा करना है. नवरात्र की नवमी को यह कार्य कराने वाला पुण्य का भागीदार होता है. इसलिए लोग स्वविवेक और उत्साह के साथ नौ कुंवारी कन्याओं को भोजन कराकर पुण्य कमाते हैं.
दोहरी मानसिकता
डॉ.त्रिवेदी जी ने कहा कि आज देखा गया कि हर तरफ कुंवारी कन्याओं को लोग श्रद्धा के साथ पूजा कर रहे थे, उनसे आशीर्वाद भी ले रहे थे. उनमे देवी का रूप देख रहे थे. लेकिन क्या ऐसा दृश्य हमेशा देखने को मिलता है. क्यों किसी कन्या को हम बुरी नजर से देखने के पहले आज का दिन भूल जाते है. जबकि बड़े-बुजुर्ग सभी आज इन कन्याओं के समक्ष श्रद्धा के साथ खड़े थे और आशा कर रहे थे उन्हें इन कन्याओ का शीर्वाद प्राप्त हो जाए. सालभर में इन 9 दिनों का दृश्य और बाकी के दिनों का दृश्य भिन्न क्यों हो जाता है. क्यों ये कन्याये सिर्फ भोग की वस्तु दिखती है. हम इन्हें आज की तरह हमेशा सम्मान क्यों नहीं दे पाते है. जिस कन्या को आज हम देवी की तरह पूज रहे थे. कल उनके प्रति वासना और तृष्णा का भाव कैसे उत्पन्न हो जाता है, हम इस दोहरी नीति से कब बाहर आ पाएंगे.
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