कोरोना महामारी के कारण फीकी रही जमाई षष्ठी पूजन का व्रत
साहिबगंज -प्रखंड मुख्यालय सहित अन्य प्रखंड की माताओं ने बुधवार को जमाई षष्ठी पूजा का व्रत रखा। बांग्ला कैलेंडर के मुताबिक जेठ महीने के शुक्ल पक्ष तिथि को जमाई षष्ठी का व्रत किया जाता है। महिलाओं में यह पर्व एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। नाम के अनुसार ही इस व्रत में जमाई यानि दामाद की अच्छे से खातिरदारी की जाती है। महिलायेंं अपने बच्चों के अच्छी सेहत की प्रार्थना भी करती हैं। यह पर्व, परंपरा और व्यवहारिक महत्त्व के संबंधों को मजबूत करता है। महिलाओं द्वारा यह पर्व बीमारियों से बचने के लिए भी किया जाता है।
जमाई षष्ठी का महत्त्व पौराणिक काल से लेकर आधुनिक काल तक रहा है। क्योंकि भारतीय संस्कृति में जमाई यानि दामाद को भी आने बेटे की तरह ही माना जाता है। इस साल यह पर्व 16 जून बुधवार यानि आज मनाई जा रही है।
परंपरा के अनुसार इस दिन महिलायें सुबह जल्दी नहाधो कर षष्ठी देवी की पूजा करती हैं। देवी की पूजा के बाद बेटी और दामाद के घर आते ही दोनों की पूजा की जाती है। थाली में गंगाजल, दूभ घास, पान का पत्ता, सुपारी, मीठा दही, चंदन, अक्षत, फूल और फल रखे जाते हैं। देवी को गंगाजल छिड़का जाता है। इसके बाद उनकी आरती की जाती है। दही का तिलक लगाया जाता है और षष्ठी माता क पीला धागा बांधकर, हर बुरी बला से रक्षा और लंबी उम्र की कामना की जाती है।
बता दें कि षष्ठी तिथि के दिन सुबह, माँ बहते जल में नहाकर बच्चों को जल देती हैं। स्नान के बाद संतान और जमाई की लंबी उम्र की कामना से षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। इसके लिए एक दिन पहले तैयारियाँ शुरू हो जाती है। खजूर की डाली काटकर सूप जैसा आकार बनाती हैं और उसी में पूजा की सामग्री रखकर षष्ठी माँ की पूजा करती हैं। ताकि संतान, ताउम्र हर तरह की शारीरिक परेशानियों से दूर रहें। बच्चों के हाथों में आम लीची और मौसमी फल दिया जाता है। इसके साथ ही नए कपड़े भी दिए जाते हैं। मुख्यतः यह त्यौहार बंगाल, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड में मनाया जाता है।
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