दान देने देते समय मन को कलुषित न करें, दान योग्य पात्र को ही दें
चित्तरंजन/मिहिजाम। जैन धर्मावलंबियों द्वारा मिहिजाम दिगम्बर जैन मंदिर में दशलक्षण पर्व के आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म के रूप में मनाया गया।
बाल बह्मचारी अजय भैया ने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म का पालन किया जाता है। त्याग का अर्थ है मूर्च्छा का त्याग। त्याग का अर्थ है हीन भावों का त्याग, कुंठाओ से मुक्ति पाना तथा निर्भीकता पूर्वक छोड़ना । जिसमें अहमत्व निकल जाए, ममत्व निकल जाए अपना स्व अधिकार छूट कर सबका अधिकार हो जाए वह त्याग है। बिना तप के त्याग नहीं होता है। जिसमें स्व और पर दोनों का हित हो ऐसा अपना निजी द्रव्य स्वअर्जित द्रव्य को देना दान है ।
दान के अंदर दाता और पात्र दोनों होते है। योग्य पात्र को दिया गया छोटा सा दान भी वट वृक्ष के सामान है। नव आहार दान देना नौ प्रकार के पुण्य का साधन है। जो पाँच सूना से रहित हो, जिनकी चर्या पाप को नहीं करती, जिन्होंने सब आरंभ, सारभ, परिग्रह को छोड़ दिया हो ऐसे दिगम्बर साधू को दिया मर्यदित दान उत्तम पात्र को दिया दान होता है।
अनिल जैन कासिवाल एवं चंचल जैन ने बताया कि यदि हमारी भावना दान देने में किसी भी प्रकार से कलुषित या दुःखी होती है तो दिए हुए दान का कोई महत्त्व नहीं है । दान में त्याग में हमारा मन आनंद का अनुभव करता है तभी हमारा जीवन सार्थक है।

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