हिन्दी किसी भी क्षेत्रीय भाषा के लिए खतरा नहीं है अपितु यह तो दो क्षेत्रीय भाषाओं को जोड़ने वाली संपर्क भाषा है

बीते 4 सितंबर को दुर्गापुर माइकल मधुसूदन मेमोरियल काॅलेज के नये भवन उद्घाटन के अवसर पर मेयर दिलिप अगस्ती का उठकर चले जाने की घटना को लेकर हिन्दी भाषियों में एक तरफ झोभ का माहौल है तो दूसरी तरफ हिन्दी-बंगला का अनावश्यक विवाद एक बार फिर से छिड़ गया है। कुछ समझदार लोग इसे मेयर दिलिप अगस्ती का निजी विचार कह कर पल्ला झाड़ रहे हैं।

सार्वजनिक मंच पर मेयर की गतिविधि कभी भी निजी नहीं हो सकती है

सबसे पहले तो यह समझ लें कि मेयर किसी व्यक्ति का नाम नहीं बल्कि एक पद का नाम है इसलिए मेयर द्वारा की गयी कोई भी गतिविधि वह भी सार्वजनिक मंच पर कभी भी निजी नहीं हो सकते हैं। फिर भी मेयर पद पर बैठा व्यक्ति होता तो इंसान ही है और सभी इंसानों की तरह उनमें भी मान-अभिमान, राग-द्वेष इत्यदि की भावनाएं होती है जो स्वभाविक ही है। लेकिन यदि बात जब शुरू हुई है तो कहीं तो जरूर पहुँचेगी।

कार्यक्रम के दौरान मेयर को ऐसा क्यों लगा कि वे बिहार या झारखंड में पहुँच गये हैं ? इसलिए न कि कुछ वक्ताओं ने हिन्दी में अपना वक्तव्य दिया था। दुर्गापुर के प्रथम नागरिक के मन में यह असुरक्षा की भावना क्या अचानक इस कार्यक्रम के दौरान ही उत्पन्न हो गयी थी या इसकी कोई पृष्ठभूमि भी है, इस पर आगे चर्चा करेंगे, पहले यह समझ लेते हैं दुर्गापुर पहले से बंगलाभाषा बहुल शहर है। जिस काॅलेज में यह कार्यक्रम था उसके ज्यादातर शिक्षक और छात्र भी बंगलाभाषी ही हैं। मेयर दिलिप अगस्ती ने स्वयं कहा है कि कार्यक्रम में ज्यादातर लोग बंगलाभाषी ही थे । ऐसे में यदि कुछ वक्ताओं ने यदि हिन्दी में अपना वक्तव्य रखा तो यह तो बंगला भाषा के लिए सम्मान की बात है न कि अपमान की।

एक बहुसंख्यक भाषा-भाषी के बीच में अल्पसंख्यक भाषी को बोलने का मौका देना तो यह उस बहुसंख्यक भाषा के लिए बड़प्पन की बात है न कि अपमान की। इस बड़प्पन को हासिल करने में मेयर चूक गये। क्या कार्यक्रम वक्तव्य अंग्रेजी में हुई होती तब भी मेयर उठकर चले जाते या यह भावना केवल हिन्दी के लिए है।

हिन्दी कहीं की भी क्षेत्रीय भाषा नहीं है

जो लोग हिन्दी में दिये वक्तव्य को क्षेत्रीय भाषा का अपमान बता रहे हैं उनसे एक सवाल पूछना है कि जब आपके बच्चे अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ने जाते हैं तब क्षेत्रीय भाषा का अपमान नहीं होता है? हिन्दी गाना गाकर भिखारन से बाॅलिवुड गायिका बन गयी रानु मण्डल ने क्या क्षेत्रीय भाषा का अपमान नहीं किया है ? जब रानु मंडल के पोस्ट को आप शेयर कर रहे थे तब तो आपको ख्याल नहीं आया कि बंगला का अपमान हो रहा है ? ‘‘हिन्दी बनाम बंगला’’ एक ऐसा गलत मुद्दा है जिस पर मैं लिखना नहीं चाह रहा था लेकिन चुप रह जाना भी उचित नहीं था।

राजनीति के हाशिये पर गए लोग हिन्दी-बंगला के मुद्दे को उठा रहे हैं

प0 बंगाल में हिन्दी को जो सम्मान मिला है, जो उर्वर जमीन मिली है वह भारत के किसी अन्य अहिन्दी प्रदेश में नहीं मिला है। इसको अस्वीकार करना नाफरमानी होगी। वर्तमान ममता बनर्जी की सरकार….में हिन्दी को काफी सम्मान मिला है इसमें किसी को भी तनिक संदेह नहीं है तो फिर उसी ममता बनर्जी के बैनर तले कार्यरत मेयर को क्यों लगा कि बंगला का अपमान हुआ है। हालांकि यह भी जानना जरूरी है कि ममता बनर्जी भी एक बार हिन्दीभाषियों को मेहमान बता चुकी हैं।‘‘हिन्दी बनाम बंगला’’ प0 बंगाल में कोई मुद्दा ही नहीं है लेकिन कुछ लोग हैं जो या तो नयी राजनीतिक जमीन की तलाश कर रहे हैं या फिर अपनी पुरानी जमीन वापस लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं । वे बड़े जोर-शोर से हिन्दी-बांग्ला के नाम पर उन्माद भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। मेयर दिलिप अगस्ती भी स्वयं को इस उन्माद में बहने से रोक नहीं पाये।

हिन्दी संपर्क की भाषा है

दरअसल हिन्दी भारत की संपर्क भाषा है। भारत में ऐसे बहुत कम जगह हैं जहाँ लोग हिन्दी समझ नहीं पाते हैं और टूटी-फूटी हिन्दी नहीं बोल पाते हैं और जो सबसे बड़ी बात है वो ये कि हिन्दी किसी भी प्रदेश की भाषा ही नहीं है। किसी भी प्रदेश में हिन्दी क्षेत्रीय भाषा नहीं है क्योंकि हिन्दी तो एक कृत्रिम भाषा है। भारत के जिन राज्यों को हम हिन्दी भाषी कहते हैं वहाँ की क्षेत्रीय भाषा तो हिन्दी कभी थी ही नहीं।

हिन्दी एक किताबी भाषा है। भारतेंदू हरिशचंद को आधुनिक हिन्दी का जनक कहते हैं। हिन्दी भाषी प्रदेशों में बोली जाने वाली भाषाएं हिन्दी नहीं वरन् हिन्दी का अपभ्रंश है जैसे मगही, अवधि, खोरठा, भोजपूरी इत्यादि। यही कारण है कि भारत का एक भी पुरातन ऐतिहासिक दस्तावेज हिन्दी में नहीं है। वो या तो संस्कृत में है या फिर हिन्दी के अपभ्रंश के रूप में है।

हिन्दी तो संपर्क की भाषा है जिसका स्वतः जन्म हुआ है। अपभ्रंश से निकलकर शुद्ध हिन्दी सबसे पहले साहित्यकारों की भाषा बनी फिर धीरे-धीरे लोगों ने अपभं्रश को त्याग कर हिन्दी बोलना शुरू कर दिया। अब भी भारत में बहुत कम ऐसे घर होंगे जिसमें परिवार के सदस्य हिन्दी में बात करते हैं लेकिन लोग जब बाहर निकलते हैं तो अन्य लोगों से हिन्दी में ही बात करते हैं। इसलिए तो हिन्दी को संपर्क की भाषा कहा गया है। इसका जन्म ही संपर्क से हुआ है और यह दो अलग-अलग भाषाओं में संपर्क स्थापित करती है।

दो अलग-अलग अहिन्दी भाषी व्यक्ति हिन्दी में बात कर लेते हैं। हिन्दी समझने या टूटी-फूटी हिन्दी बोलने के लिए ज्ञानी होने की आवश्यकता नहीं है। अंग्रेजी बोलने में सक्षम स्वयं को महज्ञानी समझने वाले को भी अनजान जगहों में हिन्दी का ही सहारा लेना पड़ता है।

हिन्दी अपने गुणों के कारण स्वतः प्रसारित हुई है

महाराष्ट्र का मुंबई शहर जहाँ कुछ राजनेताओं ने तो हिन्दी विरोध को ही अपना राजनीतिक सीढ़ी बना लिया है। लेकिन यही मुंबई शहर का सबसे अधिक दोहन भी करता है। इस मुंबई शहर के बाॅलीवुड में सबसे अधिक कार्यरत तो अहिन्दीभाषी लोग ही हैं। फिल्म के प्रोड्युसर, डायरेक्टर, एक्टर, सिंगर इत्यादि में ज्यादातर लोग तो अहिन्दीभाषी ही हैं।

कुछ लोग मानते हैं कि बाॅलीवुड ने भारत में हिन्दी फैलायी है, मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं मानता। हिन्दी सिनेमा के लोग कोई सामाजिक कार्यकर्ता नहीं हैं जो करोड़ों रुपये का फिल्म, हिन्दी के प्रसार के लिए बनायेंगे। ये लोग व्यापारी हैं, चुंकि हिन्दी पूरे भारत में समझी जाती है इसलिए इसका फायदा ये हिन्दी सिनेमा वाले लोग उठाते हैं और करोड़ों रुपया कमाते हैं। इस कतार में नया नाम रानु मंडल का भी जुड़ गया है।

बहूभाषी देश को हिन्दी ने ही एक सूत्र में बांध कर रखा है

कहने का लब्बोलुआब यह है कि जिन लोगों को लगता है कि हिन्दी से उनकी क्षेत्रीय अस्मिता पर आघात होता है उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दी ही वह भाषा है जिसने अलग-अलग भाषाएं बोलने वाली क्षेत्रों को एक धागे से बाँध कर पूरे हिन्दुस्तान को एकजुट बनाकर रखा है। आज कुछ पढ़े लिखे लोग हिन्दी बोलने के बजाय अंग्रेजी बोलकर यह समझते हैं कि उन्होंने अपने क्षेत्रीय भाषा की अस्मिता को बचा लिया है, वे लोग ऐसे हैं मानो कोई अपने भाई को नीचा दिखाने के लिए किसी लूटेरे को अपने घर बुला ले।

प० बंगाल के विकास में हिन्दी का भी योगदान है

प0 बंगाल में हिन्दी को कभी कोई बाधा नहीं मिली, हिन्दी भाषा ने बंगाली बाबुओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए दिन-रात पसीना बहाया है। बंगला भाषी कारखाने के मालिक को जब अपने अनपढ़ मजदूर से बात करनी होती है तब वे हिन्दी में ही बात करते हैं, जब बंगला भाषी सेठ को मोटिया-मजदूर को बुलानी होती है तो वे हिन्दी में ही बुलाते हैं। यहाँ हिन्दी ने कभी उनकी क्षेत्रीय अस्मिता को चोट नहीं पहुँचाया है लेकिन जब कोई अपने बराबर का व्यक्ति हिन्दी में बात करता है तो क्षेत्रीय अस्मिता आड़े आती है। हिन्दी को किसी प्रचार प्रसार की जरूरत ही नहीं है और न किसी पर थोपे जाने की। यदि ऐसी कोशिश करेंगे तो क्षेत्रीय अस्मिता की बात उठने लगेगी यह स्वभाविक भी है। हिन्दी तो संपर्क और जरूरत की भाषा है । इसका जन्म ही संपर्क और जरूरत से हुआ है। आज से करीब सौ साल पीछे जायेंगे तो भारत में हिन्दी का कोई लिखित अस्तित्व नहीं मिलता है लेकिन बोलचाल में हिन्दी आ चुकी थी।

जरूरत पड़ने पर हिन्दी ही काम आती है

उस वक्त एक भाषायी क्षेत्र से दूसरे भाषायी क्षेत्र में बहुत कम लोग जाते थे । लेकिन व्यापार ने उन्हें दूसरे भाषायी क्षेत्रों में जाने के लिए विवश कर दिया और धीरे-धीरे हिन्दी का जन्म होने लगा। आज के मेट्रो सिटी और औद्योगिकरण के दौर में लोग अब केवल अपने राज्य तक सीमित नहीं रह गये हैं ऐसे में हिंदी ही उनके लिए मददगार बनती है। कोई बंगाली बाबु जब महाराष्ट्र में नौकरी करने जाते हैं तो हो सकता है कि वे अपने सिनियर या साथी से अंग्रेजी में बात करें लेकिन जब आॅटो पर सवारी करने, सब्जी खरीदने या अन्य छोटे-मोटे लेकिन जरूरी कामों की जरूरत पड़ती है तो हिन्दी ही उनके काम आती है और वहाँ उन्हें अपने क्षेत्रीय अस्मिता की याद नहीं आती है।

Last updated: सितम्बर 10th, 2019 by Pankaj Chandravancee
Pankaj Chandravancee
Chief Editor (Monday Morning)
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