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अंडाल -खास काजोड़ा के हनुमान मंदिर प्रांगन में चल रही श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के पांचवे दिन देवी चित्रलेखा जी ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और कंस वध का भजनों सहित विस्तार से वर्णन किया. उन्होंने कहा कि मनुष्य जन्म लेकर भी जो व्यक्ति पाप के अधीन होकर इस भागवत रुपी पुण्यदायिनी कथा को श्रवण नहीं करते तो उनका जीवन ही बेकार है और जिन लोगों ने इस कथा को सुनकर अपने जीवन में इसकी शिक्षाएं आत्मसात कर ली हैं तो मानों उन्होंने अपने पिता, माता और पत्नी तीनों के ही कुल का उद्धार कर लिया है. उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने गौवर्धन की पूजा करके इद्र का मान मर्दन किया. भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का साधन गौ सेवा है. श्रीकृष्ण ने गौमाता को अपना आराध्य मानते हुए पूजा एवं सेवा की. याद रखो, गोऊ सेवक कभी निर्धन नहीं होता. परन्तु आज हमारे समाज में गौमाता को खास कर बूढी गौमाता को या तो कसाई खाना में चन्द पैसे के लिए बेच देते हैं या फिर बीच रास्ते में छोड़ देते हैं याद रखिये वो दिन दूर नहीं जब शुद्ध दूध और देशी घी खोजने से भी नहीं मिलेगा इस लिये गौमाता की रक्षा करे और कसाई खाना में जाने से बचाएं. प्रत्येक व्यक्ति को कर्म के माध्यम से जीवन में अग्रसर रहना चाहिए. श्रीमद् भागवद् कथा साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन है.यह कथा बड़े भाग्य से सुनने को मिलती है. इसलिए जब भी समय मिले कथा में सुनाए गए प्रसंगों को सुनकर अपने जीवन में आत्मसात करें, इससे मन को शांति भी मिलेगी और कल्याण भीहोगा. कलयुग में केवल कृष्ण का नाम ही आधार है जो भवसागर से पार लगाते हैं. परमात्मा को केवल भक्ति और श्रद्धा से पाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि परिवर्तन इस संसार का नियम है यह संसार परिवर्तनशील है, मनुष्य अपना पुराना शरीर त्यागकर नया शरीर धारण करता है। ज्ञान यज्ञ में भक्तगण बाल कृष्ण गोपाल की लीलाओं को सुन आनंद से झूम रहे थे, उत्सव मना रहे थे. उन्होंने द्धालुओं को बताया कि बाल गोपाल ने अपनी अठखेलियों से अपने बाल स्वभाव के तहत मंद-मंद मुस्कान व तुतलाती भाषा से सबका मन मोह रखा था. उन्होंने अपने सखाओं संग मटकी फोड़ कर चोरी छुपे माखन खाते हुए यशोदा मैया एवं गोपियों को अपनी शरारतों से प्रेम व वात्सल्य से बांधेरखा. कृष्ण ने अपनी अन्य लीलाओं से पूतना, बकासुर, कालिया नाग, कंस जैसे राक्षसों का वध करते हुए अवतरण को सार्थक किया तथा त्रेतायुग में धर्म का प्रकाश फैलाया.
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