मोदी को ‘मोदी’ किसने बनाया …..?

यूं तो मोदी एक हिन्दू समाज के बनिया जाति की टाइटल है लेकिन वर्तमान में ‘मोदी’ सिर्फ एक टाइटल भर नहीं है यह विश्व में अपार जनमत और शक्तिशाली नेता के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला प्रतिकात्मक शब्द है। जैसे ‘गांधी जी’ कहने पर महात्मा गांधी का बोध होता है वैसे ही ‘मोदी जी’ कहने पर नरेंद्र मोदी का बोध होता है फिर चाहे दुनिया में कितने ही गांधी और मोदी टाइटल वाले लोग रहते हों।

मोदी विरोधियों ने मोदी को दिलाई वैश्विक पहचान

यूं तो मोदी बहुत पहले से ही संघ के कार्यों से जुड़े रहे हैं। वर्ष 1990 से वे राष्ट्रीय राजनीति में काफी सक्रिय हैं और लाल कृष्ण आडवाणी तथा मुरली मनोहर जोशी के रथयात्रा के सारथी रहे हैं लेकिन मोदी को पहली बार राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान मिली वर्ष 2002 के गुजरात दंगे से जिस वक्त वे पहली बार गुजरात के मुख्य मंत्री बने थे  ।

राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर मोदी को नफरत और घृणा का पर्याय बना दिया गया था । उनके लिए विपक्ष और अंतराष्ट्रीय मीडिया ने कई तरह शब्द का प्रयोग किया मसलन हत्यारा, ‘बूचर’ इत्यादि।  नफरत इतनी फैला दी गयी कि अमेरिका ने एक मुख्यमंत्री को वीजा देने देने से इंकार कर दिया । लेकिन गुजरात में मोदी एक हीरो बनकर उभरे । गुजरात दंगे के बाद मोदी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद के चुनाव में भाजपा वहाँ प्रचंड बहुमत से दुबारा सत्ता पर काबिज हुई।

गुजरात दंगे के लिए मोदी ने कभी भी खुद को या सरकार को दोषी नहीं माना और विपक्ष के बार-बार मांग के बावजूद कभी भी माफी नहीं मांगी । उनका कहना है कि गुजरात दंगे से निपटने के लिए उन्होने जरूरी सभी कदम उठाए थे, तुरंत सेना को बुला लिया था।

आधा सच , झूठ से भी खतरनाक होता है

गुजरात दंगे की शुरुआत हुई थी गोधरा नरसंहार से । अयोध्या से साबरमती ट्रेन से वापस लौट रहे कारसेवकों के डिब्बे में आग लगा दी गयी जिसमें 59 कारसेवक जिंदा जला दिये गए थे । इस घटना पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का संसद में दिया हुआ वह बयान याद आता है जिसमें उन्होने कहा था –

” जिस प्रकार गुजरात दंगे के लिए पूरे विपक्ष और मीडिया ने आँसू बहाये , निंदा की , उसका थोड़ा भी हिस्सा वे 59  जिंदा जला दिये गए कारसेवकों के प्रति व्यक्त करते तो शायद गुजरात दंगा होता ही नहीं। “

यह एक वास्तविक सच्चाई थी । उस जमाने में हमारे देश में एक आम चलन थी कि हिन्दू के प्रति देश में कहीं भी कोई हिंसक घटना घटती थी तो न तो नेता खुलकर निंदा करते थे और न मीडिया ही खुलकर रिपोर्टिंग करते थे , खबरें भी इशारे में ही छपती थी। पूरी बात स्पष्ट रूप में छापी या बताई नहीं जाती थी। इसके उलट किसी मुस्लिम के साथ कोई घटना घटती थी तो पूरे देश के नेता एक सुर में निंदा के लिए आगे आते थे और मीडिया में हफ्तों खबर चला करती थी।

आधा सच , झूठ से भी खतरनाक होता है और वही हुआ । भारतीय मीडिया और नेताओं के गैर-जिम्मेदाराना रवैये का लाभ उठाकर भाजपा समर्थक देश में यह माहौल बनाने में कामयाब रहे कि केवल मात्र भाजपा ही एक मात्र पार्टी है जो हिन्दू हित की बात करती है। साथ ही साथ एक समय ऐसा भी आया कि लोग कहने लगे कि देश में हिंदुओं की बात करने वाली एक मात्र पार्टी भाजपा और एकमात्र न्यूज़ चैनल “जी न्यूज़” है । वर्ष 2015-16 तक यही स्थिति बनी रही। जब न्यूज़ चैनलों के टीआरपी पर असर पड़ने लगा तो उनकी नींद खुली और जनभावना की दिशा उन्हें समझ में आई । उसके बाद तो फिर ऐसा होने लगा कि विपक्ष ने तो यहाँ तक कह दिया कि मोदी ने सभी चैनलों को खरीद लिया है पूरी मीडिया बिकी हुई है।

मोदी विरोधियों ने वो काम कर दिया जो मोदी स्वयं कभी नहीं कर सकते थे

लेकिन इतने वर्षों में भारतीय मीडिया , विपक्ष और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने वो काम कर दिया जो स्वयं मोदी कभी नहीं कर सकते थे। नरेंद्र मोदी और भाजपा को मुस्लिम विरोधी के रूप में खूब प्रचारित किया गया। देश के मुस्लिम तबके को भाजपा के खिलाफ खड़ा करने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी गयी । वाम खेमे के तथाकथित बुद्धिजीवी इस काम में सबसे आगे थे।

नरेंद्र मोदी को लोकप्रिय बनाने में उन लोगों का सबसे अधिक योगदान है जो उन्हें अलोकप्रिय बनाना चाहते थे। भाजपा ने भी मौके को लपकते हुये अपने कुछ नेताओं को आग में घी डालने के लिए खुला छोड़ दिया था जबकि न नरेंद्र मोदी और न किसी शीर्ष नेता ने कभी भी सार्वजनिक रूप से स्वयं को मुस्लिम विरोधी के रूप में स्थापित करने वाला कोई बयान दिया।

ब्रांड गुजरात मोदी का सारथी बन गया

इन सबके बीच मोदी गुजरात के बहुत बड़े नायक के रूप में स्थापित हो चुके थे। गुजरात का विकास मॉडल उस वक्त पूरे देश में चर्चा का विषय था जिस वक्त भारत में हर हफ्ते एक घोटाले का खुलासा होता था। मोदी को अलोकप्रिय बनाने वाली कोशिशों के खिलाफ जनमानस में उभर रहे गुस्से को भाजपा ने सही समय पर पहचान लिया था । यही वजह थी जिसके कारण भाजपा ने वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में घोषित किया था। गुजरात के विकास मॉडल ने भी मोदी के प्रचार में बहुत अहम भूमिका थी।

कीचड़ के बीच कमल के तरह खिलते चले गए नरेंद्र मोदी

पूरे भारत में अलग-अलग पार्टियों द्वारा शासित अलग-अलग राज्यों में मुस्लिमों के प्रति होने वाली हर हिंसा के लिए मोदी को ही जिम्मेदार ठहराया जाने लगा । भारत का विपक्ष , अवार्ड वापसी और टुकड़े-टुकड़े गैंग तथा कुछ मीडिया ने प्रधान मंत्री पद के लिए मोदी के नाम की घोषणा के पहले ही बहुत आक्रामक रुख अख़्तियार कर लिया । मोदी को देश के लिए खतरा साबित करने के ऐसे-ऐसे हथकंडे अपनाए जिसमें वे खुद ही उलझते चले गए और मोदी उन्हे सीढ़ी बनाते हुये ऊपर उठते गए। वर्ष 2019 में 2014 से भी अधिक सफलता मिलने की असली वजह यही है कि इन पाँच वर्षों में मोदी विरोध में इतने प्रकार के गलत हथकंडे अपनाए गए कि आम जनता पूरे विपक्ष से खिन्न हो गयी।

मोदी और भाजपा को मुस्लिम विरोधी बनाने वाली कोशिशों के प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दू समाज गोलबंद होने लगे । विशेषकर अपने-अपने सीट पर कमजोर पार्टियों के मतदाता दो खेमे में बंट गए । बहुसंख्यक हिन्दू तबका का अधिकांश वोट मोदी समर्थन में चला गया मानों मोदी स्वयं हर सीट पर खड़े थे और अल्पसंख्यक मुस्लिम तबका का अधिकांश वोट मोदी विरोध में चला गया , उस प्रत्याशी के समर्थन में जिनमें भाजपा प्रत्याशी को हराने का दम था । इसका स्पष्ट प्रमाण प० बंगाल के वोटिंग पैटर्न से समझ सकते हैं जहां कमजोर हो चुकी वाम मोर्चा का पूरा वोट मोदी और ममता खेमे में बंट गया । वाम का मुस्लिम वोट बैंक पहले ही ममता खेमे में शिफ्ट हो चुका था। बाकी बचे हिन्दू वोट वो इस बार भाजपा खेमे में शिफ्ट हो गए।

वोटों के ध्रुवीकरण के लिए मोदी नहीं विपक्ष जिम्मेदार है

यदि वोटों का ध्रुवीकरण हुआ है तो उसके लिए मोदी नहीं विपक्ष जिम्मेदार है। विपक्ष ने मोदी और गुजरात दंगे का डर दिखाकर हर बार मुस्लिमों को अपने पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश की है तो फिर प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दू वोटों की गोलबंदी स्वाभाविक थी। लेकिन इसके बावजूद भी हिन्दू वोट उस पैमाने पर गोलबंद नहीं हुये जिस पैमाने पर मुस्लिम वोटबैंक की गोलबंदी हुई है।

ऐसा नहीं है कि मोदी के नाम पर मुस्लिम वोट नहीं पड़े हैं। मैं ऐसे कई मुस्लिम युवकों से मिला हूँ जिन्होने भाजपा को वोट दिया और खुले आम समर्थन भी किया लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कम है, बहुत कम। मोदी के अपने लोकसभा क्षेत्र से उन्हें काफी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं द्वारा वोट देने की खबर हैं। भाजपा का अल्पसंख्यक सेल भी है जो मुस्लिम बहुल इलाकों में काफी सक्रिय है और वोट लेने में कामयाब भी रहा है लेकिन अभी इस सेल को लंबी दूरी तय करनी है।

ठोस रणनीति और अवसर की पहचानने में माहिर

कभी जाति तो कभी धर्म, कभी सर्जिकल स्ट्राइक तो कभी पाकिस्तान प्रेम, कभी मुस्लिम तुष्टीकरण तो कभी राम नाम से नफरत  । विपक्ष के आत्मघाती मुद्दे से जनता में पनप रहे आक्रोश को भुनाने में  भाजपा ने तनिक भी देरी नहीं की । अमित शाह जैसे कुशल रणनीतिकार ने कृष्ण की तरह सारथी बनकर अर्जुन रूपी नरेंद्र मोदी को 2019 का महाभारत जिताने में अहम भूमिका निभाई।

बिना ठोस आधार के दुष्प्रचार का उल्टा असर होता है

राजनीति में सकारात्मक प्रचार की जितनी भूमिका है उतनी ही भूमिका नकारात्मक प्रचार की भी है। यदि बिना किसी ठोस आधार पर किसी नेता के खिलाफ बार-बार विष-वमन किया जाये तो इसका उल्टा असर होता है और जनमानस में उस नेता के प्रति सहानुभूति की भावना जागती है। वाम जमाने में ममता बनर्जी के खिलाफ अनर्गल दुष्प्रचार का लाभ ममता बनर्जी को मिला तो इस बार मोदी के खिलाफ पूरे विपक्ष द्वारा बेवजह दुष्प्रचार का लाभ नरेंद्र मोदी को मिला।

विपक्ष का अनावश्यक दुष्प्रचार ,मोदी की राहें आसान करता गया

नरेंद्र मोदी अपने पूरे पाँच साल में आम जनता से जुड़े रहे। आम जनता से सीधे संवाद करने की वर्तमान में किसी भी नेता के पास नहीं है । चाहे वह नोटबंदी का मुद्दा हो , जीएसटी का , सर्जिकल स्ट्राइक का या फिर राष्ट्रवाद का नरेंद्र मोदी हर मुद्दे पर आम जनता को अपने साथ जोड़े रखने में कामयाब रहे । ऐसे में विपक्ष के बेजा दुष्प्रचार ने उल्टा नरेंद्र मोदी को फायदा ही पहुंचाया है। सीमा सुरक्षा और आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी विपक्ष के अनावश्यक दुष्प्रचार ने लोगों के मन में विपक्षी नेताओं के प्रति नफरत बढ़ाने का ही काम किया है।

चौकीदार चोर नहीं रक्षक है

अपनी सफलता के मूल कारण नरेंद्र मोदी ने स्वयं बताएं हैं। उहोने कहा कि ये पहली बार है कि चुनाव में भ्रष्टाचार और मंहगाई कोई मुद्दा नहीं थी। यह बात सोलह आने सत्य है। राहुल गांधी के “चौकीदार चोर है ” के नारे के खिलाफ जनता ने नरेंद्र मोदी को ही अपना रक्षक माना है। राफेल मुद्दे पर राहुल की जिद ने कांग्रेस का नुकसान ही किया है।

आरोप लगाओ और लोकप्रियता पाओ का जमाना बीत गया

अब वो जमाना बीत गया जब केजरीवाल केवल आरोपों के बुनियाद पर ही सत्ता में आ गए थे । बस आरोप लगाओ और लोकप्रियता पा लो। बाद में उन्हें अपने सभी आरोपों के लिए लिखित माफी मांगनी पड़ी।

आज के सूचना क्रांति के जमाने में लोग सटीक जानकारी निकाल लेते हैं । उन्हें नेताओं के भाषण का इंतजार नहीं रहता है। उनके पास पहले से ही पक्की जानकारी होती है और जब नेता झूठी जानकारी उनके दिमाग में घुसाने की कोशिश करते हैं तो जनता उन्हें नकार देती है।

रोम जल रहा था और नीरो बंशी बजा रहा था

विपक्ष के नीचे से जमीन खिसक रही थी लेकिन आत्ममुग्ध तथाकथित बुद्दिजीवियों के भ्रमजाल में उलझे  विपक्षी नेता को इसकी भनक भी नहीं लगी। जिस प्रकार वे मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे थे उसी प्रकार मोदी समर्थन में बोलने वालों को भक्त कहकर उनकी बातों की अनदेखी करने लगे। पत्रकार, अखबार और टीवी चैनलों को भी भक्त, बिका हुआ इत्यादि के तरह-तरह के संज्ञा देकर उनकी अवहेलना करने लगे। नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार लेने वाली पत्रकार से तो राहुल गांधी ने बात करने से भी इंकार कर दिया। यही हाल पूरे देश में था। जो भी मीडिया नरेंद्र मोदी के पक्ष में खबरें दिखाता था उसका बहिष्कार किया जाने लगा और अंत में ये सभी स्वयं बहिष्कृत हो गए ।

Last updated: मई 25th, 2019 by Pankaj Chandravancee

Pankaj Chandravancee
Chief Editor (Monday Morning)
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