चलो बदलाई, एबारे बंगाली प्रधानमंत्री चाई

अगला प्रधानमंत्री होगा कौन
आसनसोल -इन चार वर्षों के दौरान कई राज्यों में विभिन्न चुनाव हो गये. कही भाजपा ने बहुमत पाई तो कही बिना बहुमत के ही जोड़तोड़ कर सरकार बनाई. लेकिन सबसे अहम् वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव होगा और सभी की निगाहे अबकी बनने वाली सरकार और प्रधानमंत्री पर टिकी है. मोदी को घेरने के लिये पूरा विपक्ष एकजुट हो रहा है, जिसकी झलक हाल के उपचुनाव नतीजों एवं कर्णाटक में देखने को मिली है। लेकिन उनकी सामने अभी भी यक्ष प्रश्न खड़ा है प्रधानमंत्री का चेहरा कौन होगा ? क्योंकि राहुल गाँधी अब तक अपनी उम्मीदवारी साबित नहीं कर पाएं हैं। ऐसे में कई नए चेहरों के भीतर भी उम्मीद कुलांचे मार रही है उन्ही में से एक है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी।
विपक्षी खेमा में ममता बनर्जी एक मजबूत दावेदार
तृणमूल खेमा का यकीन उन पर और बढ़ता जा रहा है. अग्निकन्या और दीदी के नाम से प्रचलित पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेकर तृणमूल खेमे में काफी उत्साह है और वे इसबार उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते है. समर्थकों का उत्साह बढ़ता ही जा रहा है. जिसके लिए “चलो बदलाई,एबार बंगाली प्रधानमंत्री चाई” नाम से एक अभियान शुरू हुआ है. हालाँकि इस अभियान में तृणमूल कांग्रेस की मुहर नहीं है. जानकारी के अनुसार दीदी के समर्थक और उन्हें चाहने वाले उक्त नाम से सोशल मिडिया पर एक अभियान चला रहे है और वे लोग ममता बनर्जी को अगला प्रधानमंत्री देखना चाहते है और जनमत एकत्र करने के मकसद से उक्त अभियान चलाया जा रहा है, जिस को काफी रिस्पोंस मिलने की खबर है. उल्लेखनीय है कि कई बार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी खुद प्रधानमंत्री बनने की बात कह चुकी है.
ईमानदारी और सादगी की प्रतीक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले योग गुरु बाबा रामदेव ने वर्ष 2016 में कोलकाता में आयोजित इंफोकॉम सेमिनार में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा करते हुए कहे थे कि प्रधानमंत्री बनने के लिए ममता के पास पर्याप्त गुण हैं. राजनीति में उनकी विश्वसनीयता को लेकर कोई सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए, अगर एक चाय वाला प्रधानमंत्री बन सकता है तो ममता बनर्जी क्यों नहीं बन सकती हैं. बाबा ने आगे कहा था राजनीति में ममता बनर्जी ईमानदारी और सादगी की प्रतीक हैं, वह चप्पल और साधारण साड़ियाँ पहनती हैं, उनकी सादगी वाली छवि दुनियाँ को अच्छी लगती हैं।
कुछ अहम् घटनाओं ने छवि को धूमिल किया है जिसका असर उनकी उम्मीदवारी पर रहेगा
पंचायत चुनाव
हाल में हुए पंचायत चुनाव में हुयी भारी हिंसा ने ममता बनर्जी की चुप्पी ने उनकी छवि को कुछ नुकसान पहुंचाई है।
अवैध कोयला खदानों पर रोक एक छलावा साबित हुआ
वर्ष 2011 के सत्ता परिवर्तन चुनाव में पश्चिम बंगाल से अवैध कोयला खदानों को बंद करना एक प्रमुख नारा था। उनके पहले कार्यकाल में तो इस नारे को सख्ती से लागू किया गया। कई कोयला माफिया या तो सलाखों के पीछे हैं या फिर बंगाल से बाहर हैं लेकिन उनके दूसरे कार्यकाल में इस नारे को भुला दिया गया। पूरे कोयलांचल में अवैध कोयला खदान खुले आम, दिन के उजाले में और डंके की चोट पर चलाये जा रहे हैं। ममता बनर्जी की ईमानदारी की छवि को अवैध कोयला खदानों ने कुछ तो कालिख जरूर लगायी है।
कानून व्यवस्था हुयी ढीली
हाल में आसनसोल रानीगंज में हुए दंगे में लोगों ने पुलिस की जैसी लापरवाही देखी उससे लोगों को पूर्व का माकपा शासन ही बेहतर लगा जिसमें कभी भी इतना व्यापक सांप्रदायिक तनाव नहीं देखा गया था।
अन्य उम्मीदवारों से बेहतर
कुछ किंतु-परंतु के बावजूद विपक्षी खेमे में अन्य उम्मीदवारों के मुकाबले ममता बनर्जी की उम्मीदवारी काफी मजबूत प्रतीत होती है। यही कारण है कि उनके समर्थकों में उत्साह बढ़ता ही जा रहा है।

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