आज के राजनेता जनता के दिल में जगह बनाये ना की दिमाग़ में – अरुण कुमार ( लेखक सह पत्रकार )
मेरी बात — “राजीनीति हलचल “@@ अरुण कुमार — एक राजनेता जनता का नुमाइंदा होता हैँ उनके लिए राज धर्म ही राष्ट्रधर्म भी होता हैँ किन्तु आज की इस विकट परिस्थिति के बीच राजीनीति एक राजनेता के लिए केवल एक प्रयोग की भांति के अलावे कुछ भी नहीं रह गया हैँ अब आप इसे संयोग कहे या प्रयोग ये तो आप पर ही निर्भर करता हैँ कहने को तो सभी जनप्रतिनिधि जनता के हीत के लिए ही काम करना चाहते हैँ किन्तु जब जब वे कुर्सी पर काबिज होते हैँ तो उनकी कथनी और करनी दोनों उनसे कोसों दूर हो जाती हैँ और वे अपना राजधर्म को भुलाकर स्वयं के विकास में मसगुल हो जाते हैँ इसी से सारी गड़बड़ी हो रही हैँ अब बात आती हैँ कि जिस जनता के दिल में एक राजनेता को घर करना था वे राजनेता उसी जनता जनार्दन के दिमाग़ में घर कर जाते हैँ जिसका परिणाम उन्हें चुनावों में देखने को मिलता हैँ या मिल भी रहा हैँ जिसके परिणामस्वरूप जनता किसी भी नेता पर विश्वास नहीं कर पाती हैँ और एक अच्छे और समझदार नेता क्षेत्र से विलुप्त हो जाते हैँ वहीँ आज के इस चुनावी संग्राम में भी यही सब देखने को मिल रहा हैँ हाँ एक बात और हैँ कि जो राजनेता जनभावनाओ को ध्यान में रखकर कार्य करता हैँ और जनकल्याण को ही सर्वोपरि जानकार कार्य करता हैँ वे राजनेता स्वयं तो निखरते ही हैँ उनका क्षेत्र भी चहुमुखी विकास की ओर अग्रसर होता हैँ जैसा की आज देश के कई कई क्षेत्रों में दिखाई भी पड़ रहा हैँ वहीँ जो राजनेता केवल अपने लिए राजनीती करते हैँ उन्हें जनता उन्ही की भाषा में वोट डालकर जवाब भी देती हैँ जैसा की अक्सर देखा जा सकता हैँ एक नेता देश हीत को अग्रसारित करता हैँ और एक नेता स्वयं के हीत को अब फैसला जनता के हाथ में हैँ क्योंकि चुनाव तो हर पाँच साल में आता हैँ किन्तु जनता हर साल चुनाव को ही झेलती हैँ मेरे विचार से सभी राजनेता कल का विकल्प को त्यागकर आज स्वयं में एक्टिव हो तो वे कल का विकल्प हो सकते हैँ जिसके उदाहरण आज कई राजनेता हैं अब फैसला एक राजनेता को करना हैँ वे जनता के दिल में जगह चाहते है या दिमाग़ में क्योंकि ये जनता हैँ सब जानती हैँ,और सबकी खबर भी रखती हैँ जबकि साथ ही साथ समय आने पर जवाब भी देना जानती हैँ,
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