प्रकृति को समर्पित सरहुल पर्व आज,आदिवासी समाज धूम-धाम से मना रहे है पर्व
बैंक में छुट्टी
सामाजिक संस्कृति व प्रकृति को समर्पित सरहुल पर्व आदिवासियों का एक प्रमुख पर्व हैं आज 4 अप्रैल को यह पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. यह आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है, किया बच्चे किया बूढ़े और किया नौजवानों सबके लिए यह पर्व एक खास मायने रखता हैं, प्रकृति और समाज का एक अनूठा मिलन भी आप इसको कह सकते हैं, तभी इस पर्व का नाम सरहुल पड़ा हैं क्योंकि इसकी उत्पति सर प्लस हुल से हुई हैं।
सर’ और ‘हुल’ से मिलकर बना है सरहुल
सरहुल दो शब्दों से बना हुआ है ‘सर’ और ‘हुल’. सर का मतलब सरई या सखुआ फूल होता है। , हुल का मतलब क्रांति होता है। इस तरह सखुआ फूलों की क्रांति को सरहुल कहा गया है। सरहुल में साल और सखुआ वृक्ष की विशेष तौर पर पूजा की जाती है। सरहुल त्यौहार प्रकृति को समर्पित है। इस त्यौहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है। आदिवासियों का मानना है कि इस त्यौहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग शुरू किया जा सकता है. “मुख्यतः यह फूलों का त्यौहार है” पतझड़ ऋतु के कारण इस मौसम में ‘पेंडों की टहनियों’ पर ‘नए-नए पत्ते’ एवं ‘फूल’ खिलते हैं। इस पर्व में ‘साल‘ के पेड़ों पर खिलने वाला ‘फूलों‘ का विशेष महत्त्व है। मुख्यत: यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। जिसकी शुरूआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया से होती है आदिवासी समाज के लिए यह पर्व सबसे बड़े पर्व के रूप में मनाई जाती हैं प्रकृति को समर्पित यह पर्व आज बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा हैं।

Copyright protected
पश्चिम बंगाल की महत्वपूर्ण खबरें

Quick View