संयुक्त परिवार ही है सबके विकास का सच्चा, सार्थक व सर्वोपयोगी पथ: अरुण कुमार
आज के तारीख में पता नहीं किया हो गया हैं कि सभी लोगों कि सोंच संयुक्त परिवार कि ओर ना होकर एकल परिवार कि ओर ज्यादा झुक रहा हैं किया कारण हैं कि एक परिवार में रहने वाले सभी सदस्य एक साथ मिलकर नहीं रहना चाह रहे हैं आप और हम अक्सर यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि परिवार के सदस्य एक दूसरे के प्रति वो विचारवादी सोंच नहीं रख पा रहे हैं जो कि आज के डेट में होना चाहिए।
यही विघटनकारी सोंच संयुक्त परिवार को दिमक कि तरह खायी जा रही हैं वैसे यहाँ एक बात और हैं कि आज हमसब कितने भी क्यों ना पढ़ लिख लिए हो किन्तु जब गृहस्ती कि जब बात आती हैं तो पता नहीं सबको किया हो जाता हैं, सभी सगे संबंधी हो या अपने कोई रिश्तेदार सबका रोना हैं कि ऐसे नहीं और वैसे नहीं तो श्रीमान एक बात तो यहाँ सपष्ट हो जाती हैं कि आज प्रायः लोगों के मन में एक बात घर कर ली हैं कि हम दो और हमारे दो, इसी तर्ज को ज्यादातर लोग तवज्जो दें रहे हैं और सभी गड़बड़ यही पर हो रही हैं किन्तु इसके विपरीत अगर हम अपने पूर्वज को ध्यान करते हैं तो हमसब पाते हैं कि जब हमारे दादा, दादी व माता पिताजी का समय था तो उनमें किस तरह का बनाव था वे बेशक पढ़े लिखे कम थे किन्तु जिंदगी जीने और घर परिवार का ज्ञान उनको हमलोगों से ज्यादा था अगर ये कहें तो गलत नहीं होगा वे सच में संयुक्त परिवार को एक संयोजक कि भाँति देखते थे तो फिर किया हम्सब्का ज्यादा पढ़ लेना ही तो नहीं भारी पड़ गया हैं ।
संयुक्त परिवार पर खैर अगर संयुक्त परिवार में जो भी कोई रह रहा हो वो अवश्य समझ जाएँगे कि परिवार कि अहमियत किया होती हैं या किया होना चाहिए किन्तु अब समय आ गया हैं कि सभी लोग उस हम दो और हमारे दो के सोंच से ऊपर उठकर संयुक्त परिवार को अहमियत दें जिससे कि पूरा परिवार एक संयोजक कि तरह आगे बढ़ कर अपने दायित्व को पूर्ण करने का कार्य करें, आभार।

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