कोरोना महामारी ने लोक संस्कृति अर्थात बंगाल का मेला जयदेव , केंदुली, बाउल मेला को भी किया प्रभावित, मात्र दो दिनों के लिए लगा मेला
लोक संस्कृति का अनोखा बाउल मेला पर भी कोरोना का प्रभाव, रानीगंज , विशेष प्रतिनिधि कोरोना महामारी ने इस वर्ष सुप्रसिद्ध लोक संस्कृति अर्थात बंगाल का मेला जयदेव का केंदुली का बाउल मेला को भी काफी प्रभावित किया। गीत संगीत से सरोवर रहने वाली यह मेला मात्र पूजा अर्चना और स्नान पर ही सीमित हो गया है। देश के कोने-कोने से आने वाले बाउल गीतकार संगीतकार के धुन भी मात्र पूजा अर्चना में सिमट कर रह गई । एक सप्ताह तक चलने वाली है मेला मात्र 2 दिनों के लिए ही लगेगी।
बंगाल में लगने वाली प्रमुख मेला ओं में गंगासागर मेला के सामान है पश्चिम बर्द्धमान एवं बीरभूम जिला के केंद्र बिंदु पर अवस्थित केंदुली का जयदेव मेला । मान्यता है कि गंगासागर में स्नान करने वाले भक्तों को जो पूर्ण मिलती है पुण्य केंदुली के जयदेव अजय नदी मैं स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है दूसरी ओर पश्चिम बंगाल ही नहीं पूरे भारतवर्ष में इस मेले का एक अनोखा सुनाम है भारतीय संस्कृति में संस्कृति मेला व में बाउल संस्कृति गीत संगीत का भी विशेष स्थान है।
यह मेला कब और कैसे शुरू हुआ इसके बारे में बताया जाता है कि कवि साधक जयदेव हर साल मकर सक्रांति के पुण्य पर्व पर गंगासागर तीर्थ यात्रा पर जाया करते थे । एक बार वह बीमार पड़ गए और तीर्थ यात्रा पर जाने में असमर्थ हो गये। उन्होंने माँ गंगा से प्रार्थना की कि माँ कृपया इस बार पुत्र की इच्छा अधूरी रहेगी क्या? गंगा माँ प्रभावित हो गई और उन्होंने उन्हें स्वप्न दिया कि मकर सक्रांति के दिन मैं खुद तुम्हारे पास आऊँगी। अजय की धारा कुछ क्षणों के लिए उलटी दिशा में वहे तो इसे मेरा आगमन का प्रतीक मानना। माँ गंगा की कही बात सच हुई तभी से लोग इस मेले पर जयदेव केंदुली में अजय नदी के तट पर मकर सक्रांति के अवसर पर जमा होकर गंगा स्नान का पुण्य फल प्राप्त करने आते हैं।
कवि जयदेव का जन्म 12 वीं शताब्दी के मध्य में बीरभूम जिले के केंदु बिल्ला नामक गाँव में हुआ था। बचपन से अनाथ कवि जयदेव साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए बाहर गए। संस्कृत के अध्ययन में लीन थे। भक्ति भाव में डूबे स्थिति में कवि जयदेव को सपना आया कि उन्हें जगन्नाथपुरी बुलाया गया है। वह पूरी की पदयात्रा पर निकल कर 10 दिन में हुए पूरी पहुँचे।
वहाँ पर वह एक वृक्ष के नीचे निवास करते हुए मंदिर में पूजा अर्चना करते थे इन्हीं दिनों एक गरीब ब्राह्मण ने अपनी स्वप्न आदेश के अनुसार अपनी कन्या पद्मावती का विवाह जयदेव के साथ कर दिया। पत्नी के साथ में फिर गाँव केंदुली वापस लौटे वहीं उन्होंने “गीत गोविंद” की रचना की थी। जो उनकी अमर कीर्ति बन गई ।
गीत गोविंद के बारे में एक बार रोचक तथ्य यहाँ प्रसंग वस दिया जा रहा है । इसकी रचना के दौरान कवि जयदेव के सामने राधा रास का यह प्रश्न आया जिसमें कृष्ण राधा से मान भंग के लिए प्रस्तुत करें ,कृष्ण के अंध भक्तों को ऐसा प्रसंग अपनी रचना में शामिल करना नहीं जचा और अधूरी रचना छोड़कर वह स्नान करने नदी किनारे चले गए । जब वह स्नान करके लौटे तो उन्होंने देखा कि उक्त प्रसंग उनके ग्रंथ में अंकित था। पत्नी पद्मावती से पूछने पर उसने बताया कि अपने स्वयं ही तो कुछ समय पहले आकर इसे लिखा है। अर्थात भगवान स्वयं यहाँ आते हैं और उनके अधूरे प्रसंग को पूरा करते हैं।
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