1984 भारतीय इतिहास का काला दिन -गुरबिंदर
दंश आज भी है
वर्ष 1984 भारतीय इतिहास का वो काला दिन जिसे पीढियों तक जवाना भूल नहीं सकता. इस वर्ष के दिए जख्म शायद हमेशा हरे रहेंगे और नाशुर बनकर इंसानियत को टिस देने का काम करेंगे. इस काले दिन के 34 वर्ष बीत चुके है, लेकिन उस दर्दनाक दृश्य को अपनी आँखों से देख चुके कई बुजुर्गों को उसकी दंश आज भी झेलनी पड़ती है.
बदन शिहरता है
आँखों से उनके अश्रु धरा सी बह उठती है और कहते है उस घटना को याद करके आज भी बदन शिहर उठता है. विगत दिनों पटियाला कोर्ट ने 1984 के दंगो में मारे गए दो सिख युवकों का गुनाहगार मानते हुए दो लोगों को फांसी और उम्रकैद की सजा सुनाई. कोर्ट के इस फैसले से कइयों के यादें ताजा हो गई.
मानवता चूर-चूर हुई थी
कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कुल्टी गुरुद्वारा कमिटी के सचिव हरदीप सिंह और चिनाकुड़ी गुरुद्वारा कमिटी के सचिव गुरविन्दर सिंह ने कहा कि 1984 में मैं काफी छोटा था, लेकिन मानवता का गला घोटने वाली वे दृश्य आज भी जेहन में ताज़ा है और शायद ता-उम्र रहेगी. गुरविन्दर सिंह ने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रा गाँधी की हत्या के बाद तीन दिनों तक पूरे भारतवर्ष में हैवानियत का नंगा नाच चलता रहा था. खासकर दिल्ली, कानपुर और लखनऊ में एक समुदाय विशेष के लाशो के ढेर लग गए थे.
बड़े पेड़ गिरने से हलचल होती ही है
समुदाय के लोगों को लक्ष्य कर राशन कार्ड हाथों में लेकर उपद्रवियों ने मौत का तांडव किया. बड़े नेताओं के इशारे पर पुलिस मूकदर्शक बनी हुई थी. उस वक्त एक शीर्ष नेता ने कहा था कि जब बरगद के पेड़ गिरते है तो धरती में हलचल होती ही है. वो शब्द आज भी कानो में गूंजती है. वैसे उस घटना को लेकर सरकार द्वारा बहुत सारे कमीशन और कमिटियो का गठन हुआ, लेकिन पीड़ित समुदाय आज तक न्याय के इन्तेजार में है, कई सरकारे बदली लेकिन न्याय का रूप नहीं बदला. जाँच के दौरान कई बड़े नेताओं के नाम समाने आये, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा.
मलाल रहेगा
अब पटियाला कोर्ट ने फैसला सुनाकर कुछ राहत दी है, इससे पूरे समुदाय में ख़ुशी है और उम्मीद है कि उन बड़े नेताओं तक भी कानून के हाथ पहुँचेंगे, जो-जो इस कु-कृत्य में शामिल रहे थे. उन्होंने कहा कि पूरे भारतवर्ष में कत्ले आम हुआ, जिसमें उक्त समुदाय के बीस हजार से भी ज्यादा लोग मारे गए, लेकिन सजा का फैसला सिर्फ दो युवकों की हत्या की सुनाई गई, इसका भी मलाल रहेगा. चलो देर आये पर दुरुस्त आये. हमलोग कोर्ट के फैसले का स्वागत करते है और आशा करते है कि न्याय प्रणाली बड़े-बड़े अजगरो को भी नहीं बक्शे गा.
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